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जमशेदपुर: ओड़िया समुदाय का खास होता है दुर्गा पूजा, प्रसाद के लिए एक महीने पहले लेना पड़ता है टोकन

जमशेदपुर में ओड़िया भाषी लोग अपने परंपरा और संस्कृति से हर वर्ष दुर्गा पूजा मनाते हैं. ये पूरे विधि विधान से दुर्गा पूजा संपन्न करते हैं. महाअष्टमी के दिन मिलने वाला प्रसाद कर्निका की काफी मांग रहती है. इस प्रसाद के लिए लोग एक महीने पहले से ही कूपन कटा लेते हैं.

दुर्गा पूजा
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Published : Oct 6, 2019, 9:37 PM IST

Updated : Oct 6, 2019, 10:22 PM IST

जमशेदपुरः लौहनगरी की पहचान मिनी भारत के रूप में की जाती है. नवरात्र के समय में सब लोग अलग-अलग ढंग से मां दुर्गा की आराधना करते हैं. उन्हीं में से शहर के रहने वाले ओड़िया भाषी दुर्गा पूजा अपनी विधि विधान से संपन्न करते हैं. महाअष्टमी के दिन मिलने वाला प्रसाद की काफी मांग रहती है. इस प्रसाद के लोग एक माह पहले से ही कूपन कटा लेते हैं.

देखें पूरी खबर

यह भी पढ़ें- दुमकाः दुर्गा पूजा को लेकर प्रशासन सतर्क, पूजा पंडालों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

ओडिशा से आते हैं पंडित

जमशेदपुर के साकची स्थित उत्कल एसोसिएशन के परिसर में ओड़िया भाषियों के द्वारा धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. यहां पर पूजा करने के लिए ओडिशा से पंडित लाए जाते हैं. इस जगह शहर के सारे ओड़िया समुदाय के लोगों का जुटान होता है. उत्कल एसोसिएशन में महाअष्टमी के दिन मिलने वाला भोग का काफी महत्व है. आम तौर पर प्रसाद के रूप मे खिचड़ी दी जाती है, लेकिन यहां मिलने वाले भोग को कर्निका कहा जाता है जिसे साधारण भाषा में पुलाव कहते हैं. इस प्रसाद में दिया जाने वाला पीठा ओडीशा से मंगाया जाता है. इसके अलावा प्रसाद में और कई तरह के व्यंजन रहते हैं. इस प्रसाद की इतनी मांग रहती है कि हर साल 200 से 300 हांडी प्रसाद बढ़ा दिया जाता है.

जमशेदपुरः लौहनगरी की पहचान मिनी भारत के रूप में की जाती है. नवरात्र के समय में सब लोग अलग-अलग ढंग से मां दुर्गा की आराधना करते हैं. उन्हीं में से शहर के रहने वाले ओड़िया भाषी दुर्गा पूजा अपनी विधि विधान से संपन्न करते हैं. महाअष्टमी के दिन मिलने वाला प्रसाद की काफी मांग रहती है. इस प्रसाद के लोग एक माह पहले से ही कूपन कटा लेते हैं.

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ओडिशा से आते हैं पंडित

जमशेदपुर के साकची स्थित उत्कल एसोसिएशन के परिसर में ओड़िया भाषियों के द्वारा धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. यहां पर पूजा करने के लिए ओडिशा से पंडित लाए जाते हैं. इस जगह शहर के सारे ओड़िया समुदाय के लोगों का जुटान होता है. उत्कल एसोसिएशन में महाअष्टमी के दिन मिलने वाला भोग का काफी महत्व है. आम तौर पर प्रसाद के रूप मे खिचड़ी दी जाती है, लेकिन यहां मिलने वाले भोग को कर्निका कहा जाता है जिसे साधारण भाषा में पुलाव कहते हैं. इस प्रसाद में दिया जाने वाला पीठा ओडीशा से मंगाया जाता है. इसके अलावा प्रसाद में और कई तरह के व्यंजन रहते हैं. इस प्रसाद की इतनी मांग रहती है कि हर साल 200 से 300 हांडी प्रसाद बढ़ा दिया जाता है.

Intro:एंकर।
जमशेदपुर शहर की पहचान मीनी भारत के रूप में की जाती है। नवरात्र के समय में सभी धर्मों के लोग अलग-अलग ढंग से मां दुर्गा की आराधना करते हैं ।उन्हीं में से शहर के रहने वाले उड़िया भाषा भाषी के लोग दुर्गा पूजा पूरी तरह अपनी विधि विधान से संपन्न करते हैं ।महा अष्टमी के दिन मिलने वाला प्रसाद का काफी मांगे रहती हैं इस प्रसाद के लोग एक माह पहले से ही कूपन कटा लेते हैं ।
वी ओ 1 - शहर के साकची स्थित उत्कल एसोसिएशन के परिसर में उड़िया भाषा भाषियों के द्वारा धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है ।यहां पर पूजा करने के लिए उड़ीसा से पंडित लगाए जाते हैं इस जगह शहर के सारे उड़िया समुदाय के लोगों का जुटान होता है।
बाईट -श्री कांत पति, अध्यक्ष जमशेदपुर उत्कल एसोसिएशन


Body:वी ओ -2 उत्कल एसोसिएशन में महा अष्टमी के दिन मिलने वाला भोग का काफी महत्व है ।सामान्यत प्रसाद के रूप मे खिचड़ी दिया जाता हैं लेकिन यहा मिलने भोग को कर्निका कहा जाता है जिसे हम साधारण भाषा में पुलाव कहते हैं। इस प्रसाद में दिया जाने वाला पीठा उड़ीसा से मंगाया जाता है। इसके अलावा प्रसाद में और कई तरह के व्यंजन रहते हैं इस प्रसाद का इतनी मांग रहती है कि की हर साल 200 से 300 हांडी प्रसाद बढ़ा दिया जाता है।
बाईट -
जे के पटनायक,महासचिव,,दुर्गा पूजा कमेटी


Conclusion:मालूम हो कि जमशेदपुर में उड़िया भाषा भाषी लोग काफी संख्या में रहते हैं और अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन इनके द्वारा किया जाता रहा है ।उसी क्रम में यहां पर दुर्गा पूजा वर्ष 1936 से आयोजन किया जाता है।
रवि झा ईटीवी भारत जमशेदपुर
Last Updated : Oct 6, 2019, 10:22 PM IST
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