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Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary 2023: सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं मजदूरों के भी थे नेता

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जुड़ाव जमशेदपुर से भी था. नेताजी टाटा स्टील कंपनी की लेबर एसोशिएशन में 1928 से 1938 तक अध्यक्ष पद पर रहे और मजदूरों के हित में आवाज उठाई. इस दौरान मजदूरों के हित में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज मील का पत्थर साबित हो रहा है.

Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary
सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानी ही नही मजदूरों के भी थे नेता
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Published : Jan 23, 2023, 8:10 AM IST

Updated : Jan 23, 2023, 8:40 AM IST

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जमशेदपुरः भारत के स्वतंत्रता सेनानी आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ना सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि मजदूरों के भी नेता थे. आजादी की लड़ाई से पहले जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील कंपनी के लेबर यूनियन के तीसरे अध्यक्ष रहे हैं. नेताजी के अध्यक्षीय कार्यकाल में कंपनी और मजदूरों को लेकर लिए गए फैसले मील का पत्थर साबित हुआ. टाटा वर्कर्स यूनियन कार्यालय में आज भी उनसे जुड़ी यादें को सजो कर रखा गया है. आज भी टाटा स्टील के मजदूर नेताजी को याद कर गौरवान्वित महसूस करते हैं.

यह भी पढ़ेंः सरकार ने नेताजी से जुड़े स्थानों को बढ़ावा देने की योजना तैयार की

जमशेदपुर शहर ना सिर्फ ग्रीन सिटी है, बल्कि क्लीन सिटी स्टील सिटी और औद्योगिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है. इस शहर का अपना एक इतिहास है. इस इतिहास के पन्नों में कई ऐसे चर्चित चेहरे हैं, जिनका जुड़ाव जमशेदपुर से था. आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का संबंध भी जमशेदपुर से था. आजादी से पहले इस्पात के क्षेत्र में औद्योगिक क्रांति लाने वाली टाटा स्टील कंपनी के लेबर एसोसिएशन में नेताजी 1928 से 1938 तक अध्यक्ष पद पर रहे और उनके कार्यकाल में कई ऐसे अहम फैसले लिए गए, जो आज मील का पत्थर साबित हुआ है. टाटा स्टील कंपनी की लेबर एसोशिएशन, जो टाटा वर्कर्स यूनियन के नाम से जाना जा रहा है.

23 जनवरी 1897 को जन्मे नेता जी का हम 126वीं जयंती मना रहे हैं. वे आईसीएस परीक्षा में चौथे स्थान पर आए थे और उनका चयन हो गया था. लेकिन वे एक विदेशी सरकार के अधीन काम नहीं करना चाहते थे. उन्होंने 23 अप्रैल 1921 को अपनी सिविल सेवा की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए. नेताजी के गुरु चित्तरंजन दास थे. भारतीय औद्योगिक संबंधों के साथ नेताजी का पहला जुड़ाव वर्ष 1922 में हुआ था.

नेताजी के राजनीतिक गुरु देशबंधु चित्तरंजन दास ने उन्हें लाहौर ट्रेड यूनियन कांग्रेस से जोड़ा. साल 1923 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव बने. चित्तरंजन दास द्वारा स्थापित समाचार पत्र फॉरवर्ड के संपादक भी थे. अपने गुरु सीआर दास की सलाह पर मजदूर वर्ग के प्रति उनकी रुचि को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी में मजदूरों की समस्या को हल करने के लिए जमशेदपुर भेज दिया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जमशेदपुर का दौरा किया. इस दौरान तीन महीने से कंपनी के कर्मचारी हड़ताल पर थे. 19 अगस्त 1928 को नेताजी बिष्टुपर टाउन मैदान में 10 हजार हड़ताली मजदूरों को संबोधित किया और उनसे अनुशासन बनाए रखने और बेहतरी के लिए संगठित होने का अनुरोध किया.

20 अगस्त 1928 को उन्हें जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन में तीसरे अध्यक्ष के रूप में चुना गया. मजदूरों और प्रबंधन के साथ कई बैठकें करने के बाद 12 सितंबर 1928 को हड़ताल समाप्त हुई, जो 3 महीने 12 दिनों तक चली थी. यह कंपनी का आखिरी हड़ताल था. नेताजी के संघर्षों के परिणामस्वरूप अध्यक्ष एनबी सकलतवाला, महाप्रबंधक सीए अलेक्जेंडर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था.

नेताजी ने टाटा स्टील में प्रमुख पदों पर अधिक से अधिक भारतीयों को नियुक्त की जाए. इसको लेकर प्रबंधन के साथ संघर्ष किया. ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. टाटा स्टील के तत्कालीन अध्यक्ष एनबी सकलतवाला को नेताजी ने 12 नवंबर 1928 के अपने पत्र के माध्यम से कहा कि कंपनी के सामने सबसे महत्वपूर्ण समस्या भारत के वरिष्ठ अधिकारियों की कमी है. यदि आप टिस्को के भारतीयकरण की अपनी नीति के साथ आगे बढ़ते हैं तो आप अपने भारतीय कर्मचारियों और मजदूरों को अपनाने में सक्षम होंगे. इस पत्र को टाटा ने गंभीरता से लिया और उस कंपनी में प्रमुख पदों पर अधिक भारतीयों की नियुक्ति की गई.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रयास से टिस्को की महिला कर्मचारियों के लिए मातृत्व लाभ को लागू किया गया और टिस्को श्रमिकों के सभी वर्गों के लिए ग्रेच्युटी और पेंशन की शुरुआत की गई. उनके प्रयास से ही टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए बोनस की शुरुआत हुई. भारतीय श्रमिकों के लिए लाभ-साझाकरण बोनस केवल वर्ष 1965 में बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की शुरुआत के साथ स्वतंत्र भारत में वैधानिक हो गया था.

8 अप्रैल 1929 को नेताजी टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. 1928 से 1937 तक नौ वर्षों के लिए टाटा यूनियन के अध्यक्ष थे. नेताजी ने न्यूनतम मजदूरी के लिए रॉयल श्रम आयोग की सिफारिशों का कड़ा विरोध किया था. पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मजदूरी की समानता की पुरजोर वकालत करने वाले पहले नेताओं में थे. 4 जुलाई 1931 को ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अपने भाषण में नेताजी ने घोषणा की कि मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि भारत की मुक्ति, दुनिया के रूप में समाजवाद पर निर्भर करती है. लेकिन भारत को अपना पर्यावरण विकसित करने में सक्षम होना चाहिए.

टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम कहते हैं कि नेताजी से जुड़ी यादें आज भी यूनियन के कार्यालय में रखा गया है. नेताजी द्वारा लिखे गए पत्र के अलावा कई ऐसे दस्तावेज है, जो सुरक्षित रखा गया है. सुभाष चंद्र बोस के कार्यकाल में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज मजदूरों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. यही वजह है कि वैश्विक मंदी और कोरोना काल जैसे संकट के समय भी कंपनी और मजदूर मिलकर साथ काम करते रहें और कोई परेशानी नहीं हुई. हम जिस यूनियन में हैं, उस यूनियन के अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रहे हैं. उनकी जयंती पर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

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जमशेदपुरः भारत के स्वतंत्रता सेनानी आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ना सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि मजदूरों के भी नेता थे. आजादी की लड़ाई से पहले जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील कंपनी के लेबर यूनियन के तीसरे अध्यक्ष रहे हैं. नेताजी के अध्यक्षीय कार्यकाल में कंपनी और मजदूरों को लेकर लिए गए फैसले मील का पत्थर साबित हुआ. टाटा वर्कर्स यूनियन कार्यालय में आज भी उनसे जुड़ी यादें को सजो कर रखा गया है. आज भी टाटा स्टील के मजदूर नेताजी को याद कर गौरवान्वित महसूस करते हैं.

यह भी पढ़ेंः सरकार ने नेताजी से जुड़े स्थानों को बढ़ावा देने की योजना तैयार की

जमशेदपुर शहर ना सिर्फ ग्रीन सिटी है, बल्कि क्लीन सिटी स्टील सिटी और औद्योगिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है. इस शहर का अपना एक इतिहास है. इस इतिहास के पन्नों में कई ऐसे चर्चित चेहरे हैं, जिनका जुड़ाव जमशेदपुर से था. आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का संबंध भी जमशेदपुर से था. आजादी से पहले इस्पात के क्षेत्र में औद्योगिक क्रांति लाने वाली टाटा स्टील कंपनी के लेबर एसोसिएशन में नेताजी 1928 से 1938 तक अध्यक्ष पद पर रहे और उनके कार्यकाल में कई ऐसे अहम फैसले लिए गए, जो आज मील का पत्थर साबित हुआ है. टाटा स्टील कंपनी की लेबर एसोशिएशन, जो टाटा वर्कर्स यूनियन के नाम से जाना जा रहा है.

23 जनवरी 1897 को जन्मे नेता जी का हम 126वीं जयंती मना रहे हैं. वे आईसीएस परीक्षा में चौथे स्थान पर आए थे और उनका चयन हो गया था. लेकिन वे एक विदेशी सरकार के अधीन काम नहीं करना चाहते थे. उन्होंने 23 अप्रैल 1921 को अपनी सिविल सेवा की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए. नेताजी के गुरु चित्तरंजन दास थे. भारतीय औद्योगिक संबंधों के साथ नेताजी का पहला जुड़ाव वर्ष 1922 में हुआ था.

नेताजी के राजनीतिक गुरु देशबंधु चित्तरंजन दास ने उन्हें लाहौर ट्रेड यूनियन कांग्रेस से जोड़ा. साल 1923 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव बने. चित्तरंजन दास द्वारा स्थापित समाचार पत्र फॉरवर्ड के संपादक भी थे. अपने गुरु सीआर दास की सलाह पर मजदूर वर्ग के प्रति उनकी रुचि को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी में मजदूरों की समस्या को हल करने के लिए जमशेदपुर भेज दिया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जमशेदपुर का दौरा किया. इस दौरान तीन महीने से कंपनी के कर्मचारी हड़ताल पर थे. 19 अगस्त 1928 को नेताजी बिष्टुपर टाउन मैदान में 10 हजार हड़ताली मजदूरों को संबोधित किया और उनसे अनुशासन बनाए रखने और बेहतरी के लिए संगठित होने का अनुरोध किया.

20 अगस्त 1928 को उन्हें जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन में तीसरे अध्यक्ष के रूप में चुना गया. मजदूरों और प्रबंधन के साथ कई बैठकें करने के बाद 12 सितंबर 1928 को हड़ताल समाप्त हुई, जो 3 महीने 12 दिनों तक चली थी. यह कंपनी का आखिरी हड़ताल था. नेताजी के संघर्षों के परिणामस्वरूप अध्यक्ष एनबी सकलतवाला, महाप्रबंधक सीए अलेक्जेंडर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था.

नेताजी ने टाटा स्टील में प्रमुख पदों पर अधिक से अधिक भारतीयों को नियुक्त की जाए. इसको लेकर प्रबंधन के साथ संघर्ष किया. ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. टाटा स्टील के तत्कालीन अध्यक्ष एनबी सकलतवाला को नेताजी ने 12 नवंबर 1928 के अपने पत्र के माध्यम से कहा कि कंपनी के सामने सबसे महत्वपूर्ण समस्या भारत के वरिष्ठ अधिकारियों की कमी है. यदि आप टिस्को के भारतीयकरण की अपनी नीति के साथ आगे बढ़ते हैं तो आप अपने भारतीय कर्मचारियों और मजदूरों को अपनाने में सक्षम होंगे. इस पत्र को टाटा ने गंभीरता से लिया और उस कंपनी में प्रमुख पदों पर अधिक भारतीयों की नियुक्ति की गई.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रयास से टिस्को की महिला कर्मचारियों के लिए मातृत्व लाभ को लागू किया गया और टिस्को श्रमिकों के सभी वर्गों के लिए ग्रेच्युटी और पेंशन की शुरुआत की गई. उनके प्रयास से ही टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए बोनस की शुरुआत हुई. भारतीय श्रमिकों के लिए लाभ-साझाकरण बोनस केवल वर्ष 1965 में बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की शुरुआत के साथ स्वतंत्र भारत में वैधानिक हो गया था.

8 अप्रैल 1929 को नेताजी टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए. 1928 से 1937 तक नौ वर्षों के लिए टाटा यूनियन के अध्यक्ष थे. नेताजी ने न्यूनतम मजदूरी के लिए रॉयल श्रम आयोग की सिफारिशों का कड़ा विरोध किया था. पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मजदूरी की समानता की पुरजोर वकालत करने वाले पहले नेताओं में थे. 4 जुलाई 1931 को ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अपने भाषण में नेताजी ने घोषणा की कि मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि भारत की मुक्ति, दुनिया के रूप में समाजवाद पर निर्भर करती है. लेकिन भारत को अपना पर्यावरण विकसित करने में सक्षम होना चाहिए.

टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम कहते हैं कि नेताजी से जुड़ी यादें आज भी यूनियन के कार्यालय में रखा गया है. नेताजी द्वारा लिखे गए पत्र के अलावा कई ऐसे दस्तावेज है, जो सुरक्षित रखा गया है. सुभाष चंद्र बोस के कार्यकाल में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज मजदूरों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. यही वजह है कि वैश्विक मंदी और कोरोना काल जैसे संकट के समय भी कंपनी और मजदूर मिलकर साथ काम करते रहें और कोई परेशानी नहीं हुई. हम जिस यूनियन में हैं, उस यूनियन के अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रहे हैं. उनकी जयंती पर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

Last Updated : Jan 23, 2023, 8:40 AM IST
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