जमशेदपुरः झारखंड में आदिवासियों के लिए मकर संक्रांति पर्व सबसे खास होता है. जिसे लेकर समाज के लोग एक माह से तैयारी में जुट जाते हैं. इस पर्व में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते है. लेकिन पीठा उनमें सबसे खास होता है. ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं आज भी पुरानी पद्धति से पीठा बनाती हैं. पूर्वजों की बनाई इस पुरानी पद्धति से बनी पीठा की मिठास आज भी कायम है. मकर संक्रांति के मौके पर तीन तरह का पीठा बनाया जाता है.
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झारखंड में जितनी भी भाषा-भाषी के लोग हैं सबकी अपनी पुरानी परंपरा से संस्कृति पर्व त्योहारों में अक्सर देखने को मिलता है. वहीं झारखंड में आदिवासी समाज द्वारा साल के प्रथम माह जनवरी के 14 तारीख को मकर पर्व मनाया जाता है. जिसके लिए एक महीने से तैयारी की जाती है. घरों की साफ सफाई के बाद महिलाएं घरों को आकर्षक रंगों से सजाती हैं. 14 जनवरी मकर पर्व के लिए महिलाएं मकर संक्रांति के लिए पकवान बनाती है, जिनमें पीठा सबसे खास होता है.
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मकर संक्रांति में तीन तरह का पीठाः मकर संक्रांति में पकवान का काफी महत्व है. आदिवासी समुदाय में भी तरह-तरह के पकवान और व्यंजन संक्रांति के मौके पर बनाए जाते हैं. इसमें तीन तरह का पाठी बनाया जाता है. जिसमें गुड़ पीठा, चीनी पीठा और मांस पीठा, जो नॉनवेज होता है जिसे जील पीठा भी कहते हैं. मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलाकर मिट्टी के बर्तन में पीठा बनता है. मिट्टी के बर्तन में पहले गुड़ या चीनी का पाक यानी चाशनी बनाई जाती है. उसमें कूटे हुए अरवा चावल को डालकर मिलाया जाता है. वहीं पास में मिट्टी का दूसरा चूल्हा भी बनाते हैं जिसमे सरसो या रिफाइन तेल के अलावा तिल के तेल में भी पीठा बनाते हैं.
पीठा बनाने वाली ज्योत्सना मुर्मू ने बताया कि मकर संक्रांति में पीठा का खास महत्व है. नए धान के चावल का पीठा बनता है, मिट्टी का नया बर्तन में इसे बनाया जाता है. गुड़ और चीनी का पीठा एक महीने तक खराब नहीं होता है, इससे शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होता है. लकड़ी के चूल्हे पर पकाने के कारण इसका स्वाद और बढ़ जाता है. मकर संक्रांति के दिन सुबह तिलकुट और तिल पूजा में चढ़ाते हैं और फिर एक दूसरे को पीठा देकर मकर संक्रांति मानते हैं. यह हमारी पुरानी परंपरा चली आ रही है. मकर संक्रांति में घर आने वाले मेहमानों को पीठा दिया जाता है.
पीठा बनाने में घर की सभी महिलाएं शामिल रहती हैं. आज की युवा पीढ़ी भी इस पुरानी परंपरा को निभाने में व्यस्त हैं, वो भी पीठा बनाने में साथ दे रही हैं. कॉलेज की छात्रा अंजली मुर्मू बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण वो जमशेदपुर अपने घर में है और पीठा बनाने को लेकर वो काफी उत्साहित हैं. लकड़ी से बनी ढेकी अब लुप्त होता जा रहा है, कुछ ही घरों में इसे रखा गया है. लेकिन इस आदि परंपरा को बचाने की जरूरत है.