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Makar Sankranti 2022: जानिए वो पुरानी पद्धति, जिससे मकर संक्रांति में मिठास अब भी है कायम?

झारखंड में मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. आदिवासियों के लिए मकर संक्रांति खास है. आदि संस्कृति में रचे यहां के व्यंजन आज भी लोगों की जुबान में मिठास घोल रहे हैं. ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट से आप भी जानिए कि आखिर वो कौन-सा पकवान है, जिसे मकर संक्रांति के वक्त खास तौर पर तैयार किया जाता है.

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Published : Jan 13, 2022, 8:16 PM IST

Updated : Jan 13, 2022, 9:19 PM IST

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झारखंड में मकर संक्रांति

जमशेदपुरः झारखंड में आदिवासियों के लिए मकर संक्रांति पर्व सबसे खास होता है. जिसे लेकर समाज के लोग एक माह से तैयारी में जुट जाते हैं. इस पर्व में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते है. लेकिन पीठा उनमें सबसे खास होता है. ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं आज भी पुरानी पद्धति से पीठा बनाती हैं. पूर्वजों की बनाई इस पुरानी पद्धति से बनी पीठा की मिठास आज भी कायम है. मकर संक्रांति के मौके पर तीन तरह का पीठा बनाया जाता है.

इसे भी पढ़ें- मकर संक्रांति के दिन तिल का दान करें, शनि दोष से मिलेगी मुक्ति

झारखंड में जितनी भी भाषा-भाषी के लोग हैं सबकी अपनी पुरानी परंपरा से संस्कृति पर्व त्योहारों में अक्सर देखने को मिलता है. वहीं झारखंड में आदिवासी समाज द्वारा साल के प्रथम माह जनवरी के 14 तारीख को मकर पर्व मनाया जाता है. जिसके लिए एक महीने से तैयारी की जाती है. घरों की साफ सफाई के बाद महिलाएं घरों को आकर्षक रंगों से सजाती हैं. 14 जनवरी मकर पर्व के लिए महिलाएं मकर संक्रांति के लिए पकवान बनाती है, जिनमें पीठा सबसे खास होता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
जमशेदपुर शहर के आसपास ग्रामीण इलाके में महिलाएं मकर संक्रांति के लिए पीठा बनाने में लग जाती हैं. आज आधुनिक युग में काम को आसान करने के लिए कई तरह के मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन ग्रामीण महिलाएं मकर संक्रांति में पीठा बनाने के लिए पुरानी परंपरा को निभाती आ रही हैं. पूर्वजों द्वारा बनाए गए लड़की की मशीन, जिसे बोलचाल की भाषा में ढेकी भी कहा जाता है, उसका इस्तेमाल करती हैं. आज यह ढेकी कुछ ही घरों में देखने को मिलता है. इस ढेकी से कूटा हुआ चावल से बना पीठा का आज भी खास महत्व और इसका स्वाद भी अलग है.
ढेकी से पिसे चावल से बनता है पीठा: घर के मिट्टी के आंगन में छह फिट से ज्यादा लंबी लकड़ी से बना ढेकी जिसके एक छोर को महिलाएं अपने पैर से दबाती है और लकड़ी के दूसरे छोर से चावल की कुटाई होती है. ढेकी बनाने के लिए सिर्फ बड़ी और भारी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में जिसके घर ढेकी रहता है आसपास की महिलाएं वहां आकर पीठा बनाने के लिए चावल की कुटाई करती हैं. जमशेदपुर के करनडीह क्षेत्र में रहने वाली शांति मार्डी बताती हैं कि ढेकी हमारे पूर्वजों की देन है. मकर संक्रांति पर्व में जिससे पीठा बनाने के लिए चावल की कुटाई के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. ढेकी के चावल से बना पीठा का स्वाद अलग होता है, यह खराब नहीं होता है. अरवा चावल को पहले भींगाया जाता है फिर पानी से निकाल कर ढेकी में कुटाई करते हैं और पिसे हुए चावल से गुड़ या चीनी का पीठा बनाया जाता है. मकर संक्रांति में पीठा एक दूसरे को खिलाते हैं. आज मशीन के जरिए घंटों का काम मिनटों में हो जाता है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज की पीढ़ी भी ढेकी से प्रभावित है. उन्हें लकड़ी की ढेकी चलाने में अच्छा लगता है. लक्ष्मी मार्डी बताती हैं कि ढेकी से बना पीठा सबको पसंद है और इस पद्धति को हम कायम रखना चाहते हैं.
Jharkhand Tribals sweet Pitha famous in Makar Sankranti
ढेकी पर चावल कूटती महिलाएं

इसे भी पढ़ें- झारखंड के आदिवासियों की अनोखी परंपराः खौलते तेल से निकालते हैं पकवान, हर साल लगता है मेला

मकर संक्रांति में तीन तरह का पीठाः मकर संक्रांति में पकवान का काफी महत्व है. आदिवासी समुदाय में भी तरह-तरह के पकवान और व्यंजन संक्रांति के मौके पर बनाए जाते हैं. इसमें तीन तरह का पाठी बनाया जाता है. जिसमें गुड़ पीठा, चीनी पीठा और मांस पीठा, जो नॉनवेज होता है जिसे जील पीठा भी कहते हैं. मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलाकर मिट्टी के बर्तन में पीठा बनता है. मिट्टी के बर्तन में पहले गुड़ या चीनी का पाक यानी चाशनी बनाई जाती है. उसमें कूटे हुए अरवा चावल को डालकर मिलाया जाता है. वहीं पास में मिट्टी का दूसरा चूल्हा भी बनाते हैं जिसमे सरसो या रिफाइन तेल के अलावा तिल के तेल में भी पीठा बनाते हैं.

पीठा बनाने वाली ज्योत्सना मुर्मू ने बताया कि मकर संक्रांति में पीठा का खास महत्व है. नए धान के चावल का पीठा बनता है, मिट्टी का नया बर्तन में इसे बनाया जाता है. गुड़ और चीनी का पीठा एक महीने तक खराब नहीं होता है, इससे शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होता है. लकड़ी के चूल्हे पर पकाने के कारण इसका स्वाद और बढ़ जाता है. मकर संक्रांति के दिन सुबह तिलकुट और तिल पूजा में चढ़ाते हैं और फिर एक दूसरे को पीठा देकर मकर संक्रांति मानते हैं. यह हमारी पुरानी परंपरा चली आ रही है. मकर संक्रांति में घर आने वाले मेहमानों को पीठा दिया जाता है.

Jharkhand Tribals sweet Pitha famous in Makar Sankranti
पीठा बनाती ग्रामीण महिलाएं


पीठा बनाने में घर की सभी महिलाएं शामिल रहती हैं. आज की युवा पीढ़ी भी इस पुरानी परंपरा को निभाने में व्यस्त हैं, वो भी पीठा बनाने में साथ दे रही हैं. कॉलेज की छात्रा अंजली मुर्मू बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण वो जमशेदपुर अपने घर में है और पीठा बनाने को लेकर वो काफी उत्साहित हैं. लकड़ी से बनी ढेकी अब लुप्त होता जा रहा है, कुछ ही घरों में इसे रखा गया है. लेकिन इस आदि परंपरा को बचाने की जरूरत है.

जमशेदपुरः झारखंड में आदिवासियों के लिए मकर संक्रांति पर्व सबसे खास होता है. जिसे लेकर समाज के लोग एक माह से तैयारी में जुट जाते हैं. इस पर्व में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते है. लेकिन पीठा उनमें सबसे खास होता है. ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं आज भी पुरानी पद्धति से पीठा बनाती हैं. पूर्वजों की बनाई इस पुरानी पद्धति से बनी पीठा की मिठास आज भी कायम है. मकर संक्रांति के मौके पर तीन तरह का पीठा बनाया जाता है.

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झारखंड में जितनी भी भाषा-भाषी के लोग हैं सबकी अपनी पुरानी परंपरा से संस्कृति पर्व त्योहारों में अक्सर देखने को मिलता है. वहीं झारखंड में आदिवासी समाज द्वारा साल के प्रथम माह जनवरी के 14 तारीख को मकर पर्व मनाया जाता है. जिसके लिए एक महीने से तैयारी की जाती है. घरों की साफ सफाई के बाद महिलाएं घरों को आकर्षक रंगों से सजाती हैं. 14 जनवरी मकर पर्व के लिए महिलाएं मकर संक्रांति के लिए पकवान बनाती है, जिनमें पीठा सबसे खास होता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
जमशेदपुर शहर के आसपास ग्रामीण इलाके में महिलाएं मकर संक्रांति के लिए पीठा बनाने में लग जाती हैं. आज आधुनिक युग में काम को आसान करने के लिए कई तरह के मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन ग्रामीण महिलाएं मकर संक्रांति में पीठा बनाने के लिए पुरानी परंपरा को निभाती आ रही हैं. पूर्वजों द्वारा बनाए गए लड़की की मशीन, जिसे बोलचाल की भाषा में ढेकी भी कहा जाता है, उसका इस्तेमाल करती हैं. आज यह ढेकी कुछ ही घरों में देखने को मिलता है. इस ढेकी से कूटा हुआ चावल से बना पीठा का आज भी खास महत्व और इसका स्वाद भी अलग है.
ढेकी से पिसे चावल से बनता है पीठा: घर के मिट्टी के आंगन में छह फिट से ज्यादा लंबी लकड़ी से बना ढेकी जिसके एक छोर को महिलाएं अपने पैर से दबाती है और लकड़ी के दूसरे छोर से चावल की कुटाई होती है. ढेकी बनाने के लिए सिर्फ बड़ी और भारी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में जिसके घर ढेकी रहता है आसपास की महिलाएं वहां आकर पीठा बनाने के लिए चावल की कुटाई करती हैं. जमशेदपुर के करनडीह क्षेत्र में रहने वाली शांति मार्डी बताती हैं कि ढेकी हमारे पूर्वजों की देन है. मकर संक्रांति पर्व में जिससे पीठा बनाने के लिए चावल की कुटाई के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. ढेकी के चावल से बना पीठा का स्वाद अलग होता है, यह खराब नहीं होता है. अरवा चावल को पहले भींगाया जाता है फिर पानी से निकाल कर ढेकी में कुटाई करते हैं और पिसे हुए चावल से गुड़ या चीनी का पीठा बनाया जाता है. मकर संक्रांति में पीठा एक दूसरे को खिलाते हैं. आज मशीन के जरिए घंटों का काम मिनटों में हो जाता है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज की पीढ़ी भी ढेकी से प्रभावित है. उन्हें लकड़ी की ढेकी चलाने में अच्छा लगता है. लक्ष्मी मार्डी बताती हैं कि ढेकी से बना पीठा सबको पसंद है और इस पद्धति को हम कायम रखना चाहते हैं.
Jharkhand Tribals sweet Pitha famous in Makar Sankranti
ढेकी पर चावल कूटती महिलाएं

इसे भी पढ़ें- झारखंड के आदिवासियों की अनोखी परंपराः खौलते तेल से निकालते हैं पकवान, हर साल लगता है मेला

मकर संक्रांति में तीन तरह का पीठाः मकर संक्रांति में पकवान का काफी महत्व है. आदिवासी समुदाय में भी तरह-तरह के पकवान और व्यंजन संक्रांति के मौके पर बनाए जाते हैं. इसमें तीन तरह का पाठी बनाया जाता है. जिसमें गुड़ पीठा, चीनी पीठा और मांस पीठा, जो नॉनवेज होता है जिसे जील पीठा भी कहते हैं. मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलाकर मिट्टी के बर्तन में पीठा बनता है. मिट्टी के बर्तन में पहले गुड़ या चीनी का पाक यानी चाशनी बनाई जाती है. उसमें कूटे हुए अरवा चावल को डालकर मिलाया जाता है. वहीं पास में मिट्टी का दूसरा चूल्हा भी बनाते हैं जिसमे सरसो या रिफाइन तेल के अलावा तिल के तेल में भी पीठा बनाते हैं.

पीठा बनाने वाली ज्योत्सना मुर्मू ने बताया कि मकर संक्रांति में पीठा का खास महत्व है. नए धान के चावल का पीठा बनता है, मिट्टी का नया बर्तन में इसे बनाया जाता है. गुड़ और चीनी का पीठा एक महीने तक खराब नहीं होता है, इससे शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होता है. लकड़ी के चूल्हे पर पकाने के कारण इसका स्वाद और बढ़ जाता है. मकर संक्रांति के दिन सुबह तिलकुट और तिल पूजा में चढ़ाते हैं और फिर एक दूसरे को पीठा देकर मकर संक्रांति मानते हैं. यह हमारी पुरानी परंपरा चली आ रही है. मकर संक्रांति में घर आने वाले मेहमानों को पीठा दिया जाता है.

Jharkhand Tribals sweet Pitha famous in Makar Sankranti
पीठा बनाती ग्रामीण महिलाएं


पीठा बनाने में घर की सभी महिलाएं शामिल रहती हैं. आज की युवा पीढ़ी भी इस पुरानी परंपरा को निभाने में व्यस्त हैं, वो भी पीठा बनाने में साथ दे रही हैं. कॉलेज की छात्रा अंजली मुर्मू बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण वो जमशेदपुर अपने घर में है और पीठा बनाने को लेकर वो काफी उत्साहित हैं. लकड़ी से बनी ढेकी अब लुप्त होता जा रहा है, कुछ ही घरों में इसे रखा गया है. लेकिन इस आदि परंपरा को बचाने की जरूरत है.

Last Updated : Jan 13, 2022, 9:19 PM IST
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