जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिले के परसुडीह में हलुदबनी तिलकागढ़ मैदान में बुधवार को शहीद बाबा तिलका मांझी की जयंती मनाई गई. इस मौके पर सांस्कृतिक और पारंपरिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने हिस्सा लिया.
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद सेनानी और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ शस्त्र उठाने वाले वीर योद्धा बाबा तिलका मांझी की 270वीं जयंती जमशेदपुर में मनाई गई. इस मौके पर परसुडीह के तिलकागढ़ मैदान में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जहां ढोल-नगाड़ों, आदिवासी परंपरा और गीत-नृत्य के साथ राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने का स्वागत किया गया. इस दौरान राज्यपाल ने कहा है कि आदिवासी समाज को नशा मुक्त होने की जरूरत है. साथ ही राज्यपाल ने कहा कि झारखंड का इतिहास एक बार और लिखा जाना चाहिए.
तिलकागढ़ मैदान को बेहतर बनाने का निर्देश
तिलकागढ़ मैदान में आदिवासी परंपरा अनुसार ढोल नगाड़ा मांदर की थाप के साथ महिलाएं हाथ में तीर धनुष लेकर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का स्वागत किए. महामहिम राज्यपाल तिलकागढ़ मैदान में बने बाबा तिलका मांझी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इस दौरान जिला पार्षद उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह, पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी, उपायुक्त रविशंकर शुक्ला के अलावा आदिवासी समाज के कई प्रबुद्ध लोग शामिल हुए. इस दौरान राज्यपाल आदिवासी लोक नृत्य का आनंद भी लिया और तिलकागढ़ मैदान को बेहतर तरीके से घेराबंदी कर स्टेडियम बनाने के लिए जिला उपायुक्त को निर्देश दिया है.
और पढ़ें- महिलाओं की नहीं सुनी तो थानेदार भी जाएंगे जेल, डीजीपी ने दिया आदेश
इतिहास एक बार फिर लिखा जाना चाहिए
तिलकागढ़ गांव स्थित तिलका मांझी मैदान में बाबा तिलका मेमोरियल क्लब की ओर से आदिवासी महिलाओं ने कई सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किए. इस दौरान लोक नृत्य में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं का साथ दिया. वहीं, राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी समाज को नशा मुक्त बनने की जरूरत है. उन्हें पढ़ाई-लिखाई और विकास पर ध्यान देना चाहिए. झारखंड में आदिवासियों का विकास हो रहा है. सरकार अपना काम करती है, लेकिन सरकार के साथ-साथ आम जनता को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है. वहीं राज्यपाल ने झारखंड के वीर शहीदों के इतिहास को दोहराते हुए कहा है कि कई ऐसे वीर शहीदों का झारखंड के इतिहास में जिक्र नहीं किया गया है, जिनका नाम होना चाहिए था. इसलिए झारखंड का इतिहास एक बार और लिखा जाना चाहिए.