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दुमका: सदियों से वास कर रहे पहाड़िया समुदाय की अनोखी जीवनशैली, जानिये क्या है इनकी खासियत

दुमका में सदियों से निवास कर रहे पहाड़िया समुदाय के लोग जंगलों-पहाड़ों में रहना पसंद करते हैं. इनका मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है. पहाड़िया समाज में दहेज रहित शादी होती है.

पहाड़िया समुदाय के लोग
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Published : Aug 4, 2019, 12:01 AM IST

दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका में सदियों से आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय निवास कर रहे है. इस समाज के लोग जंगलों-पहाड़ों में निवास करना पसंद करते हैं. इस समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि दुमका में 610 गांव में लगभग सात हजार पहाड़िया परिवार हैं और 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या लगभग 35 हजार थी.

देखें पूरी खबर

क्या कहते हैं पहाड़िया समाज के लोग?
पहाड़िया समाज के नेता नवल सिंह का कहना है कि उनके समाज सादगी पसंद है और किसी भी विवाद से अपने को दूर रखता है. यही वजह है कि केस मुकदमा हमारे समाज में नहीं के बराबर है. उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक सहभागिता की बात है तो आदिकाल में इस क्षेत्र में पहाड़िया राजा हुआ करते थे, लेकिन आज के समय में यह समाज इस मामले में वंचित है और आज तक पहाड़िया समाज से एक भी विधायक या सांसद निर्वाचित नहीं हुए.

कृषि और पशुपालन है मुख्य रोजगार
पहाड़िया समाज का मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है. वे मुख्य रूप से अरहर, मकई, बाजरा, बरबटी की खेती करते हैं. पशुपालन में बकरा-बकरी, गाय-बैल पालते हैं. पहाड़ के ऊपर रहने के विषय में उनका कहना है कि उनके पूर्वज वहां आनंद से रहते थे और उन्हें भी वहां आनंद मिलता है.


पहाड़िया समाज की अनूठी रीति रिवाज

पहाड़िया समाज में दहेज रहित शादी होती है. लड़की-लड़का पसंद करने के लिए दुर्गापूजा, काली पूजा, शिवरात्रि के दौरान लगने वाले मेले का इंतजार होता है. वधू पक्ष को शगुन के तौर पर 51 रुपये या 101 रुपये देते हैं. गांव की महिला लीलामुनी ने बताया कि जिस महिला का प्रसव होता है उसे लगभग 6 माह तक आराम दिया जाता है. छह माह तक वह चूल्हा से दूर रहती है मतलब खाना नहीं पकाती है और उसे कुएं से पानी भी नहीं भरना पड़ता है. इस दौरान गांव घर की दूसरी महिला या फिर उसके नहीं रहने पर महिला का पति ही भोजन बनाता है. छह माह के बाद बच्चे का नामकरण होता है और उस दिन गांव में सामूहिक भोज का आयोजन होता है.


सरकार चला रही है कई योजनाएं
पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है. इस समाज के लिए अलग से अस्पताल और आवासीय विद्यालय की व्यवस्था है. वहीं घर-घर मुफ्त अनाज पहुंचाने के लिए डाकिया योजना चल रही है. कैराबनी गांव स्थित बालिका आवासीय विद्यालय की शिक्षिका पार्वती देहरी का कहना है कि इस समाज की बच्चियों का आइक्यू लेवल काफी ऊंचा है. वह कहती हैं कि शिक्षकों की कमी की वजह से कुछ परेशानी है.

क्या कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में पहाड़िया कल्याण से जुड़े अधिकारी राजेश कुमार राय ने बताया कि सरकार पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है. वे कहते हैं कि इस समाज के लिए कई कल्याणकारी योजना चलाए जा रहे हैं.

दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका में सदियों से आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय निवास कर रहे है. इस समाज के लोग जंगलों-पहाड़ों में निवास करना पसंद करते हैं. इस समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि दुमका में 610 गांव में लगभग सात हजार पहाड़िया परिवार हैं और 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या लगभग 35 हजार थी.

देखें पूरी खबर

क्या कहते हैं पहाड़िया समाज के लोग?
पहाड़िया समाज के नेता नवल सिंह का कहना है कि उनके समाज सादगी पसंद है और किसी भी विवाद से अपने को दूर रखता है. यही वजह है कि केस मुकदमा हमारे समाज में नहीं के बराबर है. उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक सहभागिता की बात है तो आदिकाल में इस क्षेत्र में पहाड़िया राजा हुआ करते थे, लेकिन आज के समय में यह समाज इस मामले में वंचित है और आज तक पहाड़िया समाज से एक भी विधायक या सांसद निर्वाचित नहीं हुए.

कृषि और पशुपालन है मुख्य रोजगार
पहाड़िया समाज का मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है. वे मुख्य रूप से अरहर, मकई, बाजरा, बरबटी की खेती करते हैं. पशुपालन में बकरा-बकरी, गाय-बैल पालते हैं. पहाड़ के ऊपर रहने के विषय में उनका कहना है कि उनके पूर्वज वहां आनंद से रहते थे और उन्हें भी वहां आनंद मिलता है.


पहाड़िया समाज की अनूठी रीति रिवाज

पहाड़िया समाज में दहेज रहित शादी होती है. लड़की-लड़का पसंद करने के लिए दुर्गापूजा, काली पूजा, शिवरात्रि के दौरान लगने वाले मेले का इंतजार होता है. वधू पक्ष को शगुन के तौर पर 51 रुपये या 101 रुपये देते हैं. गांव की महिला लीलामुनी ने बताया कि जिस महिला का प्रसव होता है उसे लगभग 6 माह तक आराम दिया जाता है. छह माह तक वह चूल्हा से दूर रहती है मतलब खाना नहीं पकाती है और उसे कुएं से पानी भी नहीं भरना पड़ता है. इस दौरान गांव घर की दूसरी महिला या फिर उसके नहीं रहने पर महिला का पति ही भोजन बनाता है. छह माह के बाद बच्चे का नामकरण होता है और उस दिन गांव में सामूहिक भोज का आयोजन होता है.


सरकार चला रही है कई योजनाएं
पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है. इस समाज के लिए अलग से अस्पताल और आवासीय विद्यालय की व्यवस्था है. वहीं घर-घर मुफ्त अनाज पहुंचाने के लिए डाकिया योजना चल रही है. कैराबनी गांव स्थित बालिका आवासीय विद्यालय की शिक्षिका पार्वती देहरी का कहना है कि इस समाज की बच्चियों का आइक्यू लेवल काफी ऊंचा है. वह कहती हैं कि शिक्षकों की कमी की वजह से कुछ परेशानी है.

क्या कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में पहाड़िया कल्याण से जुड़े अधिकारी राजेश कुमार राय ने बताया कि सरकार पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है. वे कहते हैं कि इस समाज के लिए कई कल्याणकारी योजना चलाए जा रहे हैं.

Intro:दुमका -
झारखंड की उपराजधानी दुमका में सदियों से आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय निवास कर रहे हैं । इस समाज के लोग जंगलों- पहाड़ों में निवास करना पसंद करते हैं । इस समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि दुमका में 610 गांव में लगभग सात हज़ार पहाड़िया परिवार है और 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या लगभग 35 हजार थी ।

क्या कहते हैं पहाड़िया समाज के लोग ।
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पहाड़िया समाज के नेता नवल सिंह पहाड़िया जो कि सदर प्रखंड के सरुआ पंचायत के पूर्व मुखिया हैं उनका कहना है कि हमारा समाज सादगी पसंद है और किसी भी विवाद से अपने को दूर रखता है । यही वजह है कि केस मुकदमा हमारे समाज में नहीं के बराबर है । जहाँ तक राजनीतिक सहभागिता की बात है तो आदिकाल में इस क्षेत्र में पहाड़िया राजा हुआ करते थे लेकिन आज यह समाज इस मामले में वंचित रहा है और आज तक पहाड़िया समाज से एक भी विधायक या सांसद निर्वाचित नहीं हुए ।

बाईट - नवल सिंह पहाड़िया , पहाड़िया नेता


कृषि और पशुपालन हे मुख्य रोजगार ।
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इनका मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है । वे मुख्य रूप से अरहर , मकई , बाजरा , बरबटी की खेती करते हैं । पशुपालन में बकरा - बकरी , गाय - बैल पालते हैं । पहाड़ के ऊपर रहने के विषय में उनका कहना है कि हमारे पूर्वज भी यहां आनंद से रहते थे और हमें भी यही आनंद मिलता है ।

बाईट - सुनील पुजहर , पहाड़िया युवक


Body:पहाड़िया समाज के अनूठे रीति रिवाज ।
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अगर हम पहाड़िया समाज के रीति रिवाजों की चर्चा करें तो आज भी इस समाज में दहेज रहित शादी होती है । लड़की लड़का पसंद करने के लिए दुर्गापूजा , काली पूजा , शिवरात्रि के दौरान लगने वाले मेले का इंतजार होता है । वधू पक्ष को शगुन के तौर पर 51 रुपये या 101 रुपये देते हैं । गांव की महिला लीलामुनी जो कि आंगनवाड़ी सेविका है उन्होंने बताया कि जिस महिला का प्रसव होता है उसे लगभग 6 माह तक आराम दिया जाता है ।। छह माह तक वह चूल्हा से दूर रहती है मतलब खाना नहीं पकाती है और उसे कुएँ से पानी भी नहीं भरना पड़ता है । इस दौरान गांव घर की दूसरी महिला या फिर उसके नहीं रहने पर महिला का पति ही भोजन बनाता है । छह माह के बाद बच्चे का नामकरण होता है और उस दिन गांव में सामूहिक भोज का आयोजन होता है ।

बाईट - शंकर सिंह पहाड़िया , पहाड़िया युवक
बाईट - लीलामुनी , पहाड़िया महिला सह आंगनबाड़ी सेविका


Conclusion:सरकार चला रही है कई योजनाएं ।
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पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है । पहाड़िया समाज के लिए अलग से अस्पताल और आवासीय विद्यालय की व्यवस्था है । वही घर घर मुफ्त अनाज पहुंचाने के लिए डाकिया योजना चल रही है । हमने कैराबनी गांव स्थित बालिका आवासीय विद्यालय की शिक्षिका पार्वती देहरी से बात की जो स्वयं भी पहाड़िया समाज से आती है उनका कहना है कि हमारे समाज की बच्चियों का आइक्यू लेवल काफी ऊंचा है । वह कहती है कि शिक्षकों की कमी की वजह से कुछ परेशानी है । वही पहाड़िया अस्पताल का संचालन कर रहे हैं मोतीलाल गृही कहते हैं कि हमारे समाज में बच्चों में कुपोषण और महिलाओं में एनीमिया की गंभीर समस्या है ।

बाईट - पार्वती देहरी , शिक्षिका
बाईट - मोतिलाल गृही , स्वास्थ्यकर्मी ।

क्या कहते हैं अधिकारी ।
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इस संबंध में जब हमने पहाड़िया कल्याण से जुड़े अधिकारी राजेश कुमार राय से बात की उन्होंने बताया कि सरकार पहाड़िया समाज के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है । वे कहते हैं । कई कल्याणकारी योजना हम इनके लिए चला रहे हैं ।

बाईट - राजेश कुमार राय , परियोजना निदेश समन्वयिक अनुसूचित जनजाति विकास अभिकरण , दुमका

फाईनल वीओ -
अब जब सरकार इस आदिम जनजाति पहाड़िया समाज के लिए इतनी विकास योजना चला रही है तो आशा की जानी चाहिए कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा ।
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