दुमका: दीपावली नजदीक है तो दुमका में कुम्हार समाज के चाक काफी तेजी से घूम रहे हैं. ये दिन रात एक कर, दीये के निर्माण में लगे हैं. हाल के कुछ वर्षों में चाइनीस लाईट्स के प्रति लोगों का काफी आकर्षण था. फिर स्वदेशी वस्तुओं के प्रति जागरूकता फैलाई गई. इसका काफी सार्थक असर पड़ा. दीपक जलाने से होने वाली रौनक और इसके धार्मिक महत्व को देखते हुए लोगों का रुझान फिर से दीपक की तरफ हुआ है. इसी बात को देखते हुए कुम्हार समाज के लोग जिला प्रशासन से बाजार की मांग कर रहे है (Potters demanding market from dumka administration).
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पारंपरिक पेशे से जुड़े हैं दुमका में सैकड़ों कुम्हार परिवारः दुमका में लगभग तीन हजार कुम्हार परिवार रहते हैं. इनमें काफी संख्या में अपने परंपरागत मिट्टी का सामान बनाने से जुड़े हुए हैं. दुमका में दीपक के निर्माण में लगे मनोज पंडित बताते हैं कि वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना संकट की वजह से काफी प्रतिबंध लगा था. जिससे दीपावली पर हमारा मार्केट बहुत ही फीका रहा, लेकिन इस बार परिस्थितियां सामान्य है. अब कोरोना दूर जा चुका है, ऐसे में इस बार बेहतर बाजार की उम्मीद है. हमने इस बार काफी मात्रा में दीया का निर्माण किया है.
समस्याओं से घिरे कुम्हारः मिट्टी के दीयों के निर्माण में लगे मनोज पंडित, विजय पंडित अपनी समस्याएं बताते हुए कहते हैं कि हमारे धंधे की सबसे बड़ी परेशानी मिट्टी की उपलब्धता को लेकर है. पहले तो शहर के बाहर जहां खाली जमीन मिलती थी वहां की मिट्टी मुफ्त में ले आते थे पर शहर का काफी विस्तार हुआ है. अब मिट्टी मिलने में समस्या आ रही है. अभी एक बैलगाड़ी मिट्टी की कीमत एक हजार रुपया लग जाता है, जिससे हमारी लागत बढ़ जाती है.
बिक्री के लिए बाजार का ना होनाः दीया बनाने में जुटे विजय पंडित कहते हैं कि इस बार काफी बढ़िया तैयारी है. मिट्टी की उपलब्धता के साथ एक बड़ी समस्या इसकी बिक्री को लेकर है. हम जब अपने दीयों को लेकर बाजार में बेचने जाते हैं तो वहां जगह की समस्या होती है. अगर सड़क के किनारे बैठते हैं तो ट्रैफिक जाम होता है. अगर किसी के दुकान के सामने बैठते हैं तो वो आपत्ति जताते हैं.
जिला प्रशासन से कर रहे हैं मांग: दीया बनाने वाले जिला प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि कुछ वर्षों से जैसे पटाखे बेचने वालों को शहर के एक मैदान में जगह उपलब्ध कराया जाता है. वहां सामूहिक रूप से सभी दुकानदार आतिशबाजी का सामान बेचते हैं. ऐसी व्यवस्था हम मिट्टी के सामान बेचने वालों के लिए भी की जाए. हमारे लिए भी शहर का एक मैदान तय कर दिया जाए ताकि हम आसानी से अपने दीये और पूजा में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी के अन्य सामान बेच सके.
जिला प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता: मिट्टी का दीया और अन्य सामान बनाने वाले ये सभी लोग इस पुरानी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. ऐसे में जिला प्रशासन का कर्तव्य है कि इन्हें अपने व्यवसाय में जो भी परेशानी आ रही है उस पर गंभीरता दिखाए और उनकी परेशानी को दूर करे.