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सोहराय पर्व में दिखी आदिवासी संस्कृति की झलक, मांदर की थाप पर झूमे आम और खास

सोहराय पर्व आदिवासी समाज का एक मुख्य पर्व है. पूरे झारखंड में इस पर्व को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दुमका में भी सोहराय पर्व की धूम है. फसल कटने के बाद पूस महीने में जनवरी के दूसरे सप्ताह में इस पर्व को मनाया जाता है. यह पर्व पांच दिनों का होता है.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
सोहराय की धूम
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Published : Jan 8, 2021, 9:44 PM IST

दुमका: जिले में आदिवासी संथाल समाज के सोहराय पर्व की धूम है. पर्व फसल कटने के बाद पूस महीने में जनवरी के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है. यह मनुष्यों के प्रकृति और घरेलू पशुओं के बीच आपसी प्रेम और श्रद्धा को दर्शाता है. इस अवसर पर लोग अपने सगे संबंधियों को घर में आमंत्रित करते हैं. खासतौर पर विवाहित बेटियों और बहनों को पूरे मान सम्मान के साथ बुलाया जाता है. यह त्योहार भाई-बहन के प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाता है.

देखें स्पेशल स्टोरी

पांच दिनों तक चलता है सोहराय

पांच दिनों तक चलने वाले सोहराय पर्व में देवी-देवताओं के साथ-साथ घर के पालतू पशुओं जैसे गाय, बैल, भैंस, काड़ा की भी पूजा होती है. इस पर्व में अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं रहता. आपसी प्रेम सदभाव से ढोल, मांदर की थाप पर सभी नाचते-झूमते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
छात्राओं के साथ थिरकती कुलपति



सोहराय में नजर आती है संथाल समाज की संस्कृति और रीति रिवाज

आदिवासी संथाल समाज का यह सोहराय पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है. इस पर्व में हर उम्र के स्त्री, पुरूष, बच्चे, युवा सभी पूरे हर्षोल्लास के साथ खाते-पीते हैं और ढोल-मांदर की थाप पर नाचते गाते हैं. पांच दिनों के इस पर्व में हर दिन की अलग-अलग विशेषताएं हैं. पहले दिन को ऊम हिलोक कहा जाता है. इसका मतलब है स्नान का दिन. इस दिन लोग अपने-अपने घरों के साथ पूरे गांव की सफाई करते हैं. सफाई के बाद नहा-धोकर गांव के मैदान में पहुंचते हैं. पूरे गांव के लोग वहां एकत्रित होते हैं. गांव के आमलोगों के साथ-साथ गांव के मांझी, परगनैत, नाईकी (पुजारी) भी मौजूद रहते हैं. मैदान में लोग अपने देवता मरांग बुरु को मुर्गा की बलि देते हैं. मैदान में ही मुर्गा, चावल और खिचड़ी बनाकर खाते हैं. खाने पीने के बाद सभी ढोल-मांदर की थाप पर नाचते-गाते हुए अपने घरों की ओर जाते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
कार्यक्रम का आनंद लेती छात्राएं

घर में मौजूद मवेशियों की भी होती है पूजा
सोहराय पर्व के दूसरे दिन को दकाय हिलोक कहा जाता है. इस दिन घर में तरह-तरह के व्यंजन बनते हैं. पूरा दिन खाना-पीना होता है, साथ ही परिवार के सभी सदस्य सगे संबंधियों, आस पड़ोस और गांव वालों के साथ मांदर की थाप पर जमकर नाचते गाते हैं और खुशियां मनाते हैं. तीसरे दिन को खूंटाव कहा जाता है. यह दिन मवेशियों की पूजा और सम्मान का होता है. आदिवासी समुदाय के लोगों का मानना है कि हमारी जो खेती हो रही है, उसमें हमारे घर के मवेशी का काफी सहयोग रहता है, इस दिन गाय-बैल को सजाया जाता है, कहीं-कहीं मवेशियों के सींगों पर धान की बाली बांधी जाती है, जिस आंगन या घर के बाहर ये मवेशी बंधे रहते हैं, उस घर के लोग मवेशियों के सामने नाचते गाते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
कॉलेज में सोहराय की धूम

जाले माहा में बनता है विशेष व्यंजन

चौथे दिन को जाले माहा कहा जाता है. यह पूरा दिन नाचने-गाने और खाने-पीने में व्यतीत होता है. सोहराय के अंतिम दिन को सकरात कहते हैं. इस दिन सेंदरा यानी शिकार करने की परंपरा है. घर के पुरुष सदस्य तीर-धनुष लेकर अगल-बगल के जंगलों में चले जाते हैं और छोटी पक्षी हो या कोई छोटा-मोटा शिकार लेकर गांव के मैदान में जमा होते हैं. गांव में इस दिन तीरंदाजी प्रतियोगिता भी होती है और उसमें जो विजयी होता है, उसे गांव का तीरंदाज घोषित किया जाता है, उस युवक को गांव वाले कंधे पर उठाकर गांव में घूमाते हैं. इस बीच ढोल मांदर बजते रहता है.


इसे भी पढ़ें: हजारीबाग बाजार समिति ने डिजिटल पेमेंट में देश में हासिल किया नौवां स्थान, उत्पाद बेचकर बनाया कीर्तिमान

संथाल परगना महाविद्यालय में धूमधाम से मना सोहराय पर्व सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के संथाल परगना महाविद्यालय में शुक्रवार को सोहराय पर्व मनाया गया. इसमें विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाझरिया मिंज, विधायक बसंत सोरेन, शिकारीपाड़ा विधायक नलिन सोरेन, बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम सहित काफी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया. कार्यक्रम में विधायकों ने खूब मांदर बजाया, जबकि कुलपति सोनाझरिया मिंज भी छात्राओं के साथ झूमती नजर आईं.



विधायक बसंत सोरेन ने दी शुभकामनाएं
विधायक बसंत सोरेन ने कहा कि यह हमारा सबसे बड़ा पर्व है, हमलोग काफी हर्षोल्लास से मनाते हैं, इस पर्व में काफी उत्साह का वातावरण रहता है. उन्होंने सोहराय की सभी को शुभकामनाएं भी दीं.

दुमका: जिले में आदिवासी संथाल समाज के सोहराय पर्व की धूम है. पर्व फसल कटने के बाद पूस महीने में जनवरी के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है. यह मनुष्यों के प्रकृति और घरेलू पशुओं के बीच आपसी प्रेम और श्रद्धा को दर्शाता है. इस अवसर पर लोग अपने सगे संबंधियों को घर में आमंत्रित करते हैं. खासतौर पर विवाहित बेटियों और बहनों को पूरे मान सम्मान के साथ बुलाया जाता है. यह त्योहार भाई-बहन के प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाता है.

देखें स्पेशल स्टोरी

पांच दिनों तक चलता है सोहराय

पांच दिनों तक चलने वाले सोहराय पर्व में देवी-देवताओं के साथ-साथ घर के पालतू पशुओं जैसे गाय, बैल, भैंस, काड़ा की भी पूजा होती है. इस पर्व में अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं रहता. आपसी प्रेम सदभाव से ढोल, मांदर की थाप पर सभी नाचते-झूमते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
छात्राओं के साथ थिरकती कुलपति



सोहराय में नजर आती है संथाल समाज की संस्कृति और रीति रिवाज

आदिवासी संथाल समाज का यह सोहराय पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है. इस पर्व में हर उम्र के स्त्री, पुरूष, बच्चे, युवा सभी पूरे हर्षोल्लास के साथ खाते-पीते हैं और ढोल-मांदर की थाप पर नाचते गाते हैं. पांच दिनों के इस पर्व में हर दिन की अलग-अलग विशेषताएं हैं. पहले दिन को ऊम हिलोक कहा जाता है. इसका मतलब है स्नान का दिन. इस दिन लोग अपने-अपने घरों के साथ पूरे गांव की सफाई करते हैं. सफाई के बाद नहा-धोकर गांव के मैदान में पहुंचते हैं. पूरे गांव के लोग वहां एकत्रित होते हैं. गांव के आमलोगों के साथ-साथ गांव के मांझी, परगनैत, नाईकी (पुजारी) भी मौजूद रहते हैं. मैदान में लोग अपने देवता मरांग बुरु को मुर्गा की बलि देते हैं. मैदान में ही मुर्गा, चावल और खिचड़ी बनाकर खाते हैं. खाने पीने के बाद सभी ढोल-मांदर की थाप पर नाचते-गाते हुए अपने घरों की ओर जाते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
कार्यक्रम का आनंद लेती छात्राएं

घर में मौजूद मवेशियों की भी होती है पूजा
सोहराय पर्व के दूसरे दिन को दकाय हिलोक कहा जाता है. इस दिन घर में तरह-तरह के व्यंजन बनते हैं. पूरा दिन खाना-पीना होता है, साथ ही परिवार के सभी सदस्य सगे संबंधियों, आस पड़ोस और गांव वालों के साथ मांदर की थाप पर जमकर नाचते गाते हैं और खुशियां मनाते हैं. तीसरे दिन को खूंटाव कहा जाता है. यह दिन मवेशियों की पूजा और सम्मान का होता है. आदिवासी समुदाय के लोगों का मानना है कि हमारी जो खेती हो रही है, उसमें हमारे घर के मवेशी का काफी सहयोग रहता है, इस दिन गाय-बैल को सजाया जाता है, कहीं-कहीं मवेशियों के सींगों पर धान की बाली बांधी जाती है, जिस आंगन या घर के बाहर ये मवेशी बंधे रहते हैं, उस घर के लोग मवेशियों के सामने नाचते गाते हैं.

People of tribal society celebrating Sohray festival in Dumka
कॉलेज में सोहराय की धूम

जाले माहा में बनता है विशेष व्यंजन

चौथे दिन को जाले माहा कहा जाता है. यह पूरा दिन नाचने-गाने और खाने-पीने में व्यतीत होता है. सोहराय के अंतिम दिन को सकरात कहते हैं. इस दिन सेंदरा यानी शिकार करने की परंपरा है. घर के पुरुष सदस्य तीर-धनुष लेकर अगल-बगल के जंगलों में चले जाते हैं और छोटी पक्षी हो या कोई छोटा-मोटा शिकार लेकर गांव के मैदान में जमा होते हैं. गांव में इस दिन तीरंदाजी प्रतियोगिता भी होती है और उसमें जो विजयी होता है, उसे गांव का तीरंदाज घोषित किया जाता है, उस युवक को गांव वाले कंधे पर उठाकर गांव में घूमाते हैं. इस बीच ढोल मांदर बजते रहता है.


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संथाल परगना महाविद्यालय में धूमधाम से मना सोहराय पर्व सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के संथाल परगना महाविद्यालय में शुक्रवार को सोहराय पर्व मनाया गया. इसमें विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाझरिया मिंज, विधायक बसंत सोरेन, शिकारीपाड़ा विधायक नलिन सोरेन, बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम सहित काफी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया. कार्यक्रम में विधायकों ने खूब मांदर बजाया, जबकि कुलपति सोनाझरिया मिंज भी छात्राओं के साथ झूमती नजर आईं.



विधायक बसंत सोरेन ने दी शुभकामनाएं
विधायक बसंत सोरेन ने कहा कि यह हमारा सबसे बड़ा पर्व है, हमलोग काफी हर्षोल्लास से मनाते हैं, इस पर्व में काफी उत्साह का वातावरण रहता है. उन्होंने सोहराय की सभी को शुभकामनाएं भी दीं.

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