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उपराजधानी के 20 साल पूरे, आज भी विकास की बाट जोह रहा दुमका

झारखंड स्थापना दिवस पूरे राज्य में धूमधाम से मनाया जा रहा है. 15 नवंबर 2000 को झारखंड बिहार से अलग होकर राज्य बना था. उसके बाद ही दुमका राज्य की उपराजधानी बना, लेकिन 20 साल बाद भी उपराजधानी में विकास की कमी है. आज भी जिले के लोग विकास की बाट जोह रहे हैं.

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उपराजधानी में विकास का अभाव
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Published : Nov 15, 2020, 9:06 PM IST

दुमका: 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड नया राज्य बना तो दुमका राज्य की उपराजधानी बना. झारखंड के बिहार से ही अलग होने के बाद दुमका के लोगों में यह उम्मीद जगी की सरकार ने उपराजधानी का दर्जा दिया है, तो यहां का विकास भी तेजी से होगा. सभी क्षेत्रों में यहां के विकास को प्राथमिकता मिलेगी और उपराजधानीवासियों को बेहतर सुविधा मिलेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आज भी यहां के लोग विकास की बाट जोह रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी


दुमका के तीन जनप्रतिनिधियों को मिला राज्य का बागडोर संभालने का मौका
दुमका को उपराजधानी बनाने के पीछे दो उद्देश्य थे एक तो संथालपरगना प्रमंडल के जिलों से राजधानी रांची की दूरी लगभग 300 से 400 किलोमीटर दूर था. वहीं, दूसरी ओर राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण था. दुमका के तीन जनप्रतिनिधि बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन को राज्य का बागडोर संभालने का मौका मिला. वहीं, सांसद के तौर पर बाबूलाल मरांडी और शिबू सोरेन भारत सरकार में मंत्री भी बने. दुमका जिला से विधायक रहे नलिन सोरेन और लुईस मरांडी ने राज्य में कैबिनेट मंत्री के पद पर बैठकर भी शोभा बढ़ाई, लेकिन विकास के मामले में दुमका काफी पिछड़ा रह गया. ये सभी जनप्रतिनिधि अगर बेहतर तरीके से अपनी भूमिका निभाते तो उपराजधानी का ये हालात नहीं होता.


स्वास्थ्य - शिक्षा सुविधा के मामले में काफी पिछड़ा
दुमका सबसे अधिक स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में कमजोर है. हालांकि रघुवर सरकार के समय में दुमका मेडिकल कॉलेज की स्थापना तो हुई. यहां के सदर अस्पताल को दुमका मेडिकल कॉलेज अस्पताल का नाम दिया गया, लेकिन यह सभी सिर्फ दिखावे का रह गया. आज भी डीएमसीएच में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. डॉक्टरों की काफी कमी है. इसके साथ ही पारा मेडिकल स्टाफ और अन्य आधारभूत संरचना की कमी से दुमका मेडिकल कॉलेज जूझ रहा है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति भी यही है. स्वीकृत पद के आधे से कम संख्या में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी नियुक्त हैं. लोगों को मामूली बीमारियों में ही यहां स्वास्थ्य सुविधा मिल पाती है, अन्यथा उन्हें पश्चिम बंगाल या अन्य राज्यों में जाना पड़ता है. दुमका को उपराजधानी का दर्जा मिले 20 साल हो गए, लेकिन अत्यंत जरूरी स्वास्थ्य सुविधा के मामले में दुमका में बड़े बदलाव की आवश्यकता है. दुमका में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति भी अच्छी नहीं है. साल 1992 में यहां सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, लेकिन महज 5 साल पहले इस विश्वविद्यालय को अपना परिसर मिला है, लेकिन विश्वविद्यालय में आज भी प्रोफेसरों, कर्मियों और अन्य सुविधाओं की काफी कमी है.



उद्योग धंधे - सिंचाई की व्यवस्था नदारद
दुमका में उद्योग धंधे के नाम पर कुछ स्टोन क्रशर - माइंस हैं, जो व्यापक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है. सिंचाई के क्षेत्र में भी यह जिला काफी पिछड़ा हुआ है. मयूराक्षी नदी पर बना मसानजोर डैम पर पश्चिम बंगाल का स्वामित्व है. ऐसे में इस डैम का होने या ना होने से जिलेवासियों को कोई फर्क नहीं पड़ता.



सड़क और रेल यातायात भी अविकसित
दुमका में सड़कों की स्थिति काफी बदतर है. हाल के दिनों में सड़कें जानलेवा हो गई है. इससे आवागमन में काफी परेशानी होती है. रेल यातायात दुमका में 2012 में बहाल हुई, लेकिन आज भी दुमका से इक्के दुक्के ट्रेनों का परिचालन ही होता है. लोग काफी दिनों से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांग अनसुनी की जाती रही है.


क्या कहते हैं स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि
उपराजधानी का अब तक विकास नहीं हो पाया है. इस मुद्दे को लेकर ईटीवी भारत के संवाददाता ने स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों से बात की. दुमका सिविल कोर्ट के अधिवक्ता शिव शंकर चौधरी मानते हैं कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भले ही दुमका काफी उन्नत रहा हो, लेकिन विकास की दृष्टि से यह अत्यंत पिछड़ा है, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सिंचाई सभी क्षेत्र में यह अल्पविकसित रह गया. वहीं दुमका जिले के जामा विधानसभा से 1990 में विधायक रहे मोहरिल मुर्मू का कहना है कि जिस आशा और उम्मीदों के साथ झारखंड राज्य अलग हुआ और दुमका को उपराजधानी बनाया गया, वह सारी उम्मीदें धराशाई हो गई, दुमका का विकास नहीं हो पाया, यह काफी दुख का विषय है.

इसे भी पढे़ं:-झारखंड गठन के 20 साल, उपराष्ट्रपति-पीएम ने दी शुभकामनाएं, पढ़ें खास रिपोर्ट


क्या कहना है दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी और नवनिर्वाचित विधायक
उपराजधानी का विकास नहीं होने को लेकर उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा कि दुमका काफी ऐतिहासिक है जगह है, सिपाही विद्रोह के पहले देश आजादी के लिए हुआ संथाल विद्रोह इसी क्षेत्र से प्रारंभ हुआ, अलग राज्य निर्माण के बाद इसे उपराजधानो बनाया गया. राजेश्वरी बी का कहना है कि दुमका को उपराजधानी के तौर पर विकसित करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि यहां के लोगों की सभी जरूरतें पूरी हो, लोगों को सारी सुविधाएं मिले, इसके लिए सरकारी स्तर पर जनकल्याण के कई कदम उठाए गए हैं, सरकार की योजनाओं को जिला प्रशासन धरातल पर उतारने का काम कर रहा है. वहीं दुमका के नवनिर्वाचित विधायक बसंत सोरेन ने 2 दिन पहले ईटीवी भारत से खास बातचीत में यह स्वीकार किया था कि दुमका को उपराजधानी तो बनाया गया, लेकिन वह सुविधाएं नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उपराजधानी में वह सारी सुविधाएं लाने का प्रयास करेंगे, जो राजधानी रांची को मिला हुआ है.


आखिरकार कब होगी लोगों का उम्मीद पूरी
उपराजधानी बने दुमका को 20 वर्ष तो हो गया, लेकिन आज भी यहां के लोग विकास की बाट जो रहे हैं. जिले से 3 - 3 मुख्यमंत्री, दो केंद्रीय मंत्री, राज्य में कई कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन आज भी यह जिला पिछड़ा हुआ है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस दिशा में गंभीर पहल करते हुए सभी क्षेत्रों का तेजी से विकास करे और लोगों की आशा और उम्मीदों को पूरा करे.

दुमका: 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड नया राज्य बना तो दुमका राज्य की उपराजधानी बना. झारखंड के बिहार से ही अलग होने के बाद दुमका के लोगों में यह उम्मीद जगी की सरकार ने उपराजधानी का दर्जा दिया है, तो यहां का विकास भी तेजी से होगा. सभी क्षेत्रों में यहां के विकास को प्राथमिकता मिलेगी और उपराजधानीवासियों को बेहतर सुविधा मिलेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आज भी यहां के लोग विकास की बाट जोह रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी


दुमका के तीन जनप्रतिनिधियों को मिला राज्य का बागडोर संभालने का मौका
दुमका को उपराजधानी बनाने के पीछे दो उद्देश्य थे एक तो संथालपरगना प्रमंडल के जिलों से राजधानी रांची की दूरी लगभग 300 से 400 किलोमीटर दूर था. वहीं, दूसरी ओर राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण था. दुमका के तीन जनप्रतिनिधि बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन को राज्य का बागडोर संभालने का मौका मिला. वहीं, सांसद के तौर पर बाबूलाल मरांडी और शिबू सोरेन भारत सरकार में मंत्री भी बने. दुमका जिला से विधायक रहे नलिन सोरेन और लुईस मरांडी ने राज्य में कैबिनेट मंत्री के पद पर बैठकर भी शोभा बढ़ाई, लेकिन विकास के मामले में दुमका काफी पिछड़ा रह गया. ये सभी जनप्रतिनिधि अगर बेहतर तरीके से अपनी भूमिका निभाते तो उपराजधानी का ये हालात नहीं होता.


स्वास्थ्य - शिक्षा सुविधा के मामले में काफी पिछड़ा
दुमका सबसे अधिक स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में कमजोर है. हालांकि रघुवर सरकार के समय में दुमका मेडिकल कॉलेज की स्थापना तो हुई. यहां के सदर अस्पताल को दुमका मेडिकल कॉलेज अस्पताल का नाम दिया गया, लेकिन यह सभी सिर्फ दिखावे का रह गया. आज भी डीएमसीएच में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. डॉक्टरों की काफी कमी है. इसके साथ ही पारा मेडिकल स्टाफ और अन्य आधारभूत संरचना की कमी से दुमका मेडिकल कॉलेज जूझ रहा है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति भी यही है. स्वीकृत पद के आधे से कम संख्या में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी नियुक्त हैं. लोगों को मामूली बीमारियों में ही यहां स्वास्थ्य सुविधा मिल पाती है, अन्यथा उन्हें पश्चिम बंगाल या अन्य राज्यों में जाना पड़ता है. दुमका को उपराजधानी का दर्जा मिले 20 साल हो गए, लेकिन अत्यंत जरूरी स्वास्थ्य सुविधा के मामले में दुमका में बड़े बदलाव की आवश्यकता है. दुमका में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति भी अच्छी नहीं है. साल 1992 में यहां सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, लेकिन महज 5 साल पहले इस विश्वविद्यालय को अपना परिसर मिला है, लेकिन विश्वविद्यालय में आज भी प्रोफेसरों, कर्मियों और अन्य सुविधाओं की काफी कमी है.



उद्योग धंधे - सिंचाई की व्यवस्था नदारद
दुमका में उद्योग धंधे के नाम पर कुछ स्टोन क्रशर - माइंस हैं, जो व्यापक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है. सिंचाई के क्षेत्र में भी यह जिला काफी पिछड़ा हुआ है. मयूराक्षी नदी पर बना मसानजोर डैम पर पश्चिम बंगाल का स्वामित्व है. ऐसे में इस डैम का होने या ना होने से जिलेवासियों को कोई फर्क नहीं पड़ता.



सड़क और रेल यातायात भी अविकसित
दुमका में सड़कों की स्थिति काफी बदतर है. हाल के दिनों में सड़कें जानलेवा हो गई है. इससे आवागमन में काफी परेशानी होती है. रेल यातायात दुमका में 2012 में बहाल हुई, लेकिन आज भी दुमका से इक्के दुक्के ट्रेनों का परिचालन ही होता है. लोग काफी दिनों से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांग अनसुनी की जाती रही है.


क्या कहते हैं स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि
उपराजधानी का अब तक विकास नहीं हो पाया है. इस मुद्दे को लेकर ईटीवी भारत के संवाददाता ने स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों से बात की. दुमका सिविल कोर्ट के अधिवक्ता शिव शंकर चौधरी मानते हैं कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भले ही दुमका काफी उन्नत रहा हो, लेकिन विकास की दृष्टि से यह अत्यंत पिछड़ा है, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सिंचाई सभी क्षेत्र में यह अल्पविकसित रह गया. वहीं दुमका जिले के जामा विधानसभा से 1990 में विधायक रहे मोहरिल मुर्मू का कहना है कि जिस आशा और उम्मीदों के साथ झारखंड राज्य अलग हुआ और दुमका को उपराजधानी बनाया गया, वह सारी उम्मीदें धराशाई हो गई, दुमका का विकास नहीं हो पाया, यह काफी दुख का विषय है.

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क्या कहना है दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी और नवनिर्वाचित विधायक
उपराजधानी का विकास नहीं होने को लेकर उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा कि दुमका काफी ऐतिहासिक है जगह है, सिपाही विद्रोह के पहले देश आजादी के लिए हुआ संथाल विद्रोह इसी क्षेत्र से प्रारंभ हुआ, अलग राज्य निर्माण के बाद इसे उपराजधानो बनाया गया. राजेश्वरी बी का कहना है कि दुमका को उपराजधानी के तौर पर विकसित करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि यहां के लोगों की सभी जरूरतें पूरी हो, लोगों को सारी सुविधाएं मिले, इसके लिए सरकारी स्तर पर जनकल्याण के कई कदम उठाए गए हैं, सरकार की योजनाओं को जिला प्रशासन धरातल पर उतारने का काम कर रहा है. वहीं दुमका के नवनिर्वाचित विधायक बसंत सोरेन ने 2 दिन पहले ईटीवी भारत से खास बातचीत में यह स्वीकार किया था कि दुमका को उपराजधानी तो बनाया गया, लेकिन वह सुविधाएं नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उपराजधानी में वह सारी सुविधाएं लाने का प्रयास करेंगे, जो राजधानी रांची को मिला हुआ है.


आखिरकार कब होगी लोगों का उम्मीद पूरी
उपराजधानी बने दुमका को 20 वर्ष तो हो गया, लेकिन आज भी यहां के लोग विकास की बाट जो रहे हैं. जिले से 3 - 3 मुख्यमंत्री, दो केंद्रीय मंत्री, राज्य में कई कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन आज भी यह जिला पिछड़ा हुआ है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस दिशा में गंभीर पहल करते हुए सभी क्षेत्रों का तेजी से विकास करे और लोगों की आशा और उम्मीदों को पूरा करे.

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