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मसानजोर डैम के विस्थापितों को आत्मनिर्भर बना रही है राज्य सरकार, दिखी आशा की नई किरण

झारखंड सरकार दुमका के मसानजोर डैम (Masanjor Dam Dumka) के विस्थापितों को मछली पालन से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रही है (Government connecting displaced with fisheries). फिलहाल, मत्सय पालन के रोजगार से दुमका के 6 गांवों को जोड़ा गया है. जिससे गांव के काफी लोग जुड़े हैं. राज्य सरकार की इस पहल से विस्थापितों में आशा की नई किरण देखने को मिली है.

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Published : Dec 15, 2022, 6:30 PM IST

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दुमका: झारखंड सरकार दुमका के मयूराक्षी नदी पर अवस्थित मसानजोर डैम (Masanjor Dam Dumka) के विस्थापितों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल कर रही है. इसके लिए राज्य सरकार के मत्स्य विभाग द्वारा इन विस्थापितों को मछली पालन से जोड़ा जा रहा है (Government connecting displaced with fisheries). सरकार की इस पहल से विस्थापितों में खुशी देखी जा रही है.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट लाइट हाउस 2023 में होगा पूरा! लाभुकों को नए साल में मिलेगा नया आशियाना


क्या है पूरा मामला: 1950 के दशक में दुमका के मयूराक्षी नदी पर मसानजोर डैम का निर्माण हुआ था, जिसमें हजारों लोग विस्थापित हुए थे. उनकी जमीन डैम में समाहित हो गई थी. उस वक्त इन लोगों को मौजूदा रेट के तहत मुआवजा दिया गया था. इसे पाकर कुछ लोग अपने को फिर से व्यवस्थित कर पाए थे लेकिन, अधिकांश लोग आज भी गरीबी में जीवन जी रहे हैं. इन लोगों को रोजगार देने की दिशा में आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई लेकिन अब झारखंड सरकार ने एक सार्थक पहल किया है और डैम के विस्थापितों को मत्स्य विभाग मछली पालन से जोड़ा जा रहा है.



मत्स्य पालन के रोजगार से जोड़े गए छह गांव के लोग: दुमका मत्स्य विभाग के द्वारा मसानजोर डैम के छह गांव, झाझापाड़ा, दरबारपुर, राजपाड़ा, केसियाबहाल, कुमड़ाबाद और बाजार रहमतगंज के लोगों को मछली पालन से जोड़ा जा रहा है. इसके लिए विभाग ने कुल 146 केज उपलब्ध कराएं हैं. मसानजोर डैम के पानी में तैयार किए गए इस केज कल्चर से इन गांवों के काफी लोग जुड़ रहे हैं. साथ ही एक अन्य योजना के तहत इस जल स्रोत के आसपास के ग्रामवासियों को आसानी से मछलियां उपलब्ध हो सके, इसके लिए विभाग में छह लाख से अधिक मत्स्य अंगुलिकायें (अंगुली के आकार की मछली) मसानजोर डैम में डाले गए हैं.



जिला के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला कर रहे हैं व्यवस्था की मॉनिटरिंग: मसानजोर विस्थापितों को मत्स्य पालन के जरिए रोजगार मिले साथ ही साथ आसपास के लोगों को आसानी से भोजन में मछलियां प्राप्त हो इन सारी योजना पर खुद दुमका डीसी रविशंकर शुक्ला मॉनिटरिंग कर रहे हैं. वे कहते हैं इन विस्थापितों को स्थायी रोजगार प्रदान करना हमारा उद्देश्य है.


क्या कहते हैं जिला मत्स्य पदाधिकारी: दुमका जिला के मत्स्य पदाधिकारी अमरेंद्र कुमार ने बताया कि 'हम लोगों ने अभी 146 केज दिया है, जो छह गांव के लोगों के बीच वितरित हुआ है. इस एक-एक केज में एक सीजन में 5 टन मछलियों का उत्पादन होगा. इन मछलियों के उत्पादन से यहां के विस्थापितों को एक बेहतर रोजगार मिलेगा. ये अपने उत्पाद को दुमका के साथ-साथ अगल-बगल के इलाकों में बेच सकेंगे. इसके साथ ही दुमका जिला में जो अभी पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश से मछलियां आती है, संभवत बाहर से मछलियां मंगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.'



विस्थापितों में खुशी, होंगे आत्मनिर्भर: मत्स्य पालन के इस काम से जुड़कर विस्थापितों में काफी खुशी देखी जा रही है. झाझापाड़ा के ग्राम प्रधान बबलू हांसदा जो मछली पालन के कार्य से जुड़े हैं, उनका कहना है कि हमारे पास रोजगार के साधन नहीं के बराबर हैं. ऐसे में यह जो नया अवसर मिला है, वह हमारे लिए काफी बेहतर साबित होगा. हमलोग काफी मन लगाकर इस काम को कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि हमारा भविष्य अच्छा होने जा रहा है.



ग्रामीणों में नजर आई एक नई आशा: मत्स्य पालन के रोजगार से जुड़कर ग्रामीण काफी आशान्वित हैं. ये सभी ग्रामवासी एकजुट होकर मेहनत कर इस काम को कर रहे हैं. अब तक गरीबी और मुफलिसी में जी रहे इन विस्थापितों के चेहरे पर आशा की किरण देखना दिल को सुकून प्रदान करने वाला है.

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दुमका: झारखंड सरकार दुमका के मयूराक्षी नदी पर अवस्थित मसानजोर डैम (Masanjor Dam Dumka) के विस्थापितों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल कर रही है. इसके लिए राज्य सरकार के मत्स्य विभाग द्वारा इन विस्थापितों को मछली पालन से जोड़ा जा रहा है (Government connecting displaced with fisheries). सरकार की इस पहल से विस्थापितों में खुशी देखी जा रही है.

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क्या है पूरा मामला: 1950 के दशक में दुमका के मयूराक्षी नदी पर मसानजोर डैम का निर्माण हुआ था, जिसमें हजारों लोग विस्थापित हुए थे. उनकी जमीन डैम में समाहित हो गई थी. उस वक्त इन लोगों को मौजूदा रेट के तहत मुआवजा दिया गया था. इसे पाकर कुछ लोग अपने को फिर से व्यवस्थित कर पाए थे लेकिन, अधिकांश लोग आज भी गरीबी में जीवन जी रहे हैं. इन लोगों को रोजगार देने की दिशा में आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई लेकिन अब झारखंड सरकार ने एक सार्थक पहल किया है और डैम के विस्थापितों को मत्स्य विभाग मछली पालन से जोड़ा जा रहा है.



मत्स्य पालन के रोजगार से जोड़े गए छह गांव के लोग: दुमका मत्स्य विभाग के द्वारा मसानजोर डैम के छह गांव, झाझापाड़ा, दरबारपुर, राजपाड़ा, केसियाबहाल, कुमड़ाबाद और बाजार रहमतगंज के लोगों को मछली पालन से जोड़ा जा रहा है. इसके लिए विभाग ने कुल 146 केज उपलब्ध कराएं हैं. मसानजोर डैम के पानी में तैयार किए गए इस केज कल्चर से इन गांवों के काफी लोग जुड़ रहे हैं. साथ ही एक अन्य योजना के तहत इस जल स्रोत के आसपास के ग्रामवासियों को आसानी से मछलियां उपलब्ध हो सके, इसके लिए विभाग में छह लाख से अधिक मत्स्य अंगुलिकायें (अंगुली के आकार की मछली) मसानजोर डैम में डाले गए हैं.



जिला के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला कर रहे हैं व्यवस्था की मॉनिटरिंग: मसानजोर विस्थापितों को मत्स्य पालन के जरिए रोजगार मिले साथ ही साथ आसपास के लोगों को आसानी से भोजन में मछलियां प्राप्त हो इन सारी योजना पर खुद दुमका डीसी रविशंकर शुक्ला मॉनिटरिंग कर रहे हैं. वे कहते हैं इन विस्थापितों को स्थायी रोजगार प्रदान करना हमारा उद्देश्य है.


क्या कहते हैं जिला मत्स्य पदाधिकारी: दुमका जिला के मत्स्य पदाधिकारी अमरेंद्र कुमार ने बताया कि 'हम लोगों ने अभी 146 केज दिया है, जो छह गांव के लोगों के बीच वितरित हुआ है. इस एक-एक केज में एक सीजन में 5 टन मछलियों का उत्पादन होगा. इन मछलियों के उत्पादन से यहां के विस्थापितों को एक बेहतर रोजगार मिलेगा. ये अपने उत्पाद को दुमका के साथ-साथ अगल-बगल के इलाकों में बेच सकेंगे. इसके साथ ही दुमका जिला में जो अभी पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश से मछलियां आती है, संभवत बाहर से मछलियां मंगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.'



विस्थापितों में खुशी, होंगे आत्मनिर्भर: मत्स्य पालन के इस काम से जुड़कर विस्थापितों में काफी खुशी देखी जा रही है. झाझापाड़ा के ग्राम प्रधान बबलू हांसदा जो मछली पालन के कार्य से जुड़े हैं, उनका कहना है कि हमारे पास रोजगार के साधन नहीं के बराबर हैं. ऐसे में यह जो नया अवसर मिला है, वह हमारे लिए काफी बेहतर साबित होगा. हमलोग काफी मन लगाकर इस काम को कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि हमारा भविष्य अच्छा होने जा रहा है.



ग्रामीणों में नजर आई एक नई आशा: मत्स्य पालन के रोजगार से जुड़कर ग्रामीण काफी आशान्वित हैं. ये सभी ग्रामवासी एकजुट होकर मेहनत कर इस काम को कर रहे हैं. अब तक गरीबी और मुफलिसी में जी रहे इन विस्थापितों के चेहरे पर आशा की किरण देखना दिल को सुकून प्रदान करने वाला है.

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