दुमका: 13 साल पहले स्थापित ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट सरकारी उपेक्षा का दंश झेलते-झेलते आखिरकार बंद हो गया. झारखंड सरकार की ओर से दुमका में 2008 में ट्राइबल रिसर्च सेंटर स्थापित किया गया था. संस्थान में जनजातीय लोगों के जीवन से जुड़े तमाम गतिविधियों शोध की व्यवस्था थी. इसके लिए हजारों पुस्तक मंगाई गईं. इसमें वैसे अधिकारियों और कर्मियों की पदस्थापना हुई, जो ट्राइबल लाइफ के विशेषज्ञ थे. इसके बंद रहने से स्थानीय लोगों में काफी मायूसी है.
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ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के बंद होने से लोगों को काफी निराशा हुई है. इस संस्थान में जो भी व्यक्ति जनजातीय समाज के लोगों की जनसंख्या, परंपरा, संस्कृति, इतिहास की जानकारी प्राप्त करना चाहते थे, उन्हें सब कुछ इस संस्थान से प्राप्त हो सकता था. शुरुआत के कुछ सालों तक ये अच्छे ढंग से संचालित हुआ, लेकिन धीरे-धीरे लापरवाही बरती गई और अब ये बंद हो गया. लोगों की मांग है कि ये इंस्टीट्यूट फिर से संचालितच हो.
अनुबंध समाप्त हो जाने से चले गए अधिकारी-कर्मचारी
इस संस्थान में शुरुआत के दिनों में तो रेगुलर स्टाफ बहाल किए गए, लेकिन बाद में संस्थान अनुबंधकर्मियों की ओर से संचालित होने लगा. धीरे-धीरे कर्मचारियों का अनुबंध समाप्त हुआ और रिनुअल नहीं होने की वजह से वे वापस चले गए. इस संस्थान के प्रति सरकार की उदासीनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसका विद्युत कनेक्शन कई साल पहले ही कट गया, जिसे जोड़ने की पहल नहीं की गई. आज भी इंस्टीट्यूट में बिजली का कनेक्शन नहीं है.
स्थानीय लोगों में मायूसी
आज जब ये संस्थान बंद हो गया है, तो लोगों में काफी मायूसी है. दुमका के लोगों से बातचीत कर पाया गया कि सरकार की लापरवाही का दंश लोग झेल रहे हैं. मेरीला मुर्मू और सुशीला हेम्ब्रम जो शिक्षिका हैं, उनका कहना है कि ये संस्थान काफी उपयोगी साबित हुआ. लोगों को काफी फायदा मिल रहा था, लेकिन पिछले कई सालों से सरकार की उदासीनता भी देखी जा रही थी. वहीं साहित्यकार अमरेंद्र सुमन ने बताया कि इस संस्थान से आदिवासी समाज के जीवन से जुड़ी कई जानकारियां प्राप्त होती थीं, लेकिन अब यह बंद हो गया है. उन्होंने कहा कि सरकार इस पर जल्द पहल करे.
इस मामले को देखेंगे उपायुक्त
यह संस्थान कल्याण मंत्रालय की ओर से स्थापित किया गया था और रांची से ही इसे कंट्रोल किया जाता था. वैसे दुमका के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला (Dumka Deputy Commissioner Ravi Shankar Shukla) को जानकारी दी गई, तो उन्होंने कहा कि वह इस मामले को खुद देखेंगे और आवश्यक पहल करेंगे.
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सरकार को गंभीरता दिखाने की जरूरत
संथाल परगना आदिवासी बहुल प्रमंडल है. ऐसे में इस जनजातीय शोध संस्थान का महत्व काफी बढ़ जाता है, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इस पर ताला लग गया है. सरकार को इस पर गंभीरता दिखाते हुए फिर से चालू करना चाहिए.