दुमकाः प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत बनने की बात कह रहे हैं. साथ ही साथ यह कहा जाता है कि अव रोजगार के लिए सरकार के भरोसे न रहे बल्कि स्वरोजगार से जुड़ें. नौकरी पाने वालों की कतार में न खड़ा रहें बल्कि नौकरी देने वाले बनें. इन सब बातों को अपने जीवन में उतारने का काम किया है दुमका जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जामा प्रखंड के आसनसोल गांव के निवासी रंजीत बैध ने. इन्होंने लॉकडाउन के समय जो आपदा की स्थिति थी उसे अवसर में बदल कर आज खुद तो अच्छा व्यवसाय प्राप्त किया ही है. इसके ही साथ ही दस लोगों को रोजगार भी देने का काम किया है.
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दूध बेचकर चलाते थे आजीविका
दुमका जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जामा प्रखंड के सुदूरवर्ती आसनसोल गांव के रंजीत गोपालक हैं. जो पिछले कई वर्षों से दूध बेचकर आजीविका चला रहे थे. इनके जीवन में उस वक्त नया मोड़ आया जब पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण की वजह से लॉकडाउन लगा, उस समय सबकुछ थम गया. इनके गाय के दूध को शहर की मिठाई दुकानदारों ने लेने से इनकार कर दिया. हालांकि उस वक्त हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे. रंजीत को भी समझ में नहीं आ रहा था कि घर में जो दो सौ लीटर दूध हो रहा है उसका क्या करें.
रंजीत ने ढूंढी नई राह
घर में जब दूध का उत्पादन काफी हो रहा था और औने पौने दाम में उसे बेचने की नौबत आने लगी. उस दौरान कभी-कभी मुफ्त में भी लोगों को दूध देना पड़ा. पैसे की कमी हो गई. गाय के चारे के लिए पैसे कम पड़ने लगे तो रंजीत उन दुकानदारों के पास पहुंचे जिन्हें वह दूध देता था, उनसे दस हजार रुपये की मांग की तो उन्होंने हाथ खड़ा कर लिया. यहीं से रंजीत के जीवन में नया मोड़ आया और उन्होंने घर में ही दूध का पनीर, खोवा और पेड़ा बनाना शुरू कर दिया. लॉकडाउन में जब सुबह समय मिलता तो वे घर-घर जाकर पनीर, खोवा और पेड़ा बेचने लगे. लॉकडाउन में रंजीत ने गाय की संख्या बढ़ाई और धीरे-धीरे 10 लोगों को अपने यहां रोजगार दिया.
400 लीटर दूध का बनाते हैं मिठाई
अब रंजीत शहर में जाकर दूध नहीं बेचते बल्कि अभी उनके घर में 20 गाय हैं, जिनसे 400 लीटर दूध प्राप्त होता है. सभी दूध का ये अपने परिवार के सदस्यों और कर्मियों के सहयोग से मिठाई तैयार करते हैं और उस मिठाई को प्रखंडों के दुकानदारों को सप्लाई कर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं. ढोढींया पंचायत के आसनसोल गांव जहां रंजीत रहते हैं वहां के लोगों को भी मिठाई की सुविधा प्राप्त हो गई है. अब वो उन्हें बाजार से कम कीमत पर रंजीत मिठाई उपलब्ध करा देते हैं. इस तरह से देखा जाए तो यह स्वरोजगार से जुड़ने की सक्सेस स्टोरी कही जा सकती है. इसके साथ ही साथ लॉकडाउन के आपदा को इन्होंने अवसर में बदलकर एक उदाहरण पेश किया है.
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प्रशासन से पानी की व्यवस्था करने की मांग
रंजीत बैध हालांकि दूध और मिठाई का सफलतापूर्वक व्यवसाय कर रहे हैं, लेकिन इनके घर के आस पास पानी की काफी समस्या है. एक चापाकल है, जिससे काफी कम पानी निकलता है. वे सरकार और जिला प्रशासन से पानी की बेहतर व्यवस्था करने की मांग कर रहे हैं, ताकि वह अपने व्यवसाय को और ऊंचाई तक ले जा सके.
रोजगार पाने वाले भी हैं काफी खुश
रंजीत बैध ने जिन लोगों को रोजगार दिया लगभग सभी शहर और अगल-बगल के जिले में जाकर काम कर आजीविका प्राप्त कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें गांव में ही काम मिल गया है, जिससे वह काफी खुश नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि रंजीत का यह प्रयास हम लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ.
सरकार और प्रशासन को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता
आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दूसरे राज्यों में जाकर व्यवसायियों को झारखंड में उद्यम लगाने का न्यौता देते हैं, ताकि क्षेत्र का विकास हो. यहां के लोगों को रोजगार मिले. इसी का एक छोटा सा रूप पेश किया है दुमका के रंजीत ने, सरकार और प्रशासन को ऐसे छोटे व्यवसायियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए और उनकी जो समस्या है उसका हल निकालना चाहिए, ताकि ये और आगे बढ़े और एक उदाहरण के तौर पर समाज के सामने आ सके.