दुमका: एक तरफ कोरोना महामारी के बाद देश धीरे-धीरे मंदी के दौर से उभर रहा है वहीं तेजी से पैर पसारते बर्ड फ्लू के चलते पोल्ट्री कारोबारियों का व्यापार मंदा पड़ता जा रहा है. यह बीमारी चिकन कारोबारियों के लिए आफत लेकर आया है. 2006 में पहली बार इस बीमारी ने हिंदुस्तान में दस्तक दी थी और 2015 से हर साल इसके कुछ केस जरूर मिलते हैं.
बर्ड फ्लू के चलते हर साल पोल्ट्री कारोबार से जुड़े लोगों को करोड़ों का नुकसान होता है. आज से ठीक एक साल पहले जब हमारे देश में कोरोना के केस आने शुरू हुए थे तब अफवाह उड़ी थी चिकन खाने से कोरोना हो सकता है. लोगों ने चिकन खाना छोड़ दिया, तब कारोबारियों ने महज 10-20 रुपए किलो में चिकन बेच दिया. कई ने तो मुफ्त बांट दिया...और किसी ने नहीं लिया तो उसे खुले में फेंक दिया.
पिछले साल नवंबर में चिकन 150 रुपये किलो बिक रहा था. दिसंबर खत्म होते-होते यह 100 रुपए किलो तक पहुंच गया. औसतन हर दिन की बिक्री जो 5 क्विंटल थी वह अब 50 किलो तक आ गयी है. जाहिर है चिकन कारोबारियों को भारी नुकसान हो रहा है. बर्ड फ्लू ने एक बार फिर चिकन कारोबारियों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है.
अफवाह से बढ़ती है परेशानी
चिकन दुकनदार पिंटू साव का कहना है कि अफवाह की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत होती है. झारखंड में एक भी पॉजिटिव केस नहीं आया और लोग इसको लेकर अफवाह उड़ाने लगते हैं. इस अफवाह की वजह से लोग चिकन खाना छोड़ देते हैं और हमें काफी नुकसान होता है. डॉक्टर दिलीप भगत का कहना है कि दुमका में अब तक बर्ड फ्लू का एक भी केस नहीं आया है. अगर चिकन को 70 डिग्री से 100 डिग्री तापमान पर पकाया जाए तो उसके वायरस मर जाते हैं. लोग बासा खाना खाने से बचें और अफवाहों पर ध्यान नहीं दें. चिकन खाने से कोई दिक्कत नहीं है.
अफवाहों पर ध्यान नहीं दें लोग
डीसी राजेश्वरी बी का कहना है कि पोल्ट्री कारोबार से जुड़े लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. जिले में अब तक बर्ड फ्लू के कोई केस नहीं मिले हैं. लोग आराम से अपना कारोबार करें और किसी तरह की अफवाह पर ध्यान नहीं दें.
बर्ड फ्लू में चिकन नहीं खाने को लेकर सोशल मीडिया पर खूब मैसेज वायरल होते हैं. लोग भी इसे नहीं समझ पाते और वायरल मैसेज को ही सच मान बैठते हैं. ऐसे में जिला प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे मैसेज को सर्कुलेट होने से रोकें और लोगों पर अंकुश लगाएं.