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अनुबंध पर दस वर्ष से काम कर रहे कर्मचारी होंगे नियमित, झारखंड हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला - प्रोन्नति की मांग वाली याचिका

अनुबंध पर दस वर्ष से काम कर रहे कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है. झारखंड हाई कोर्ट ने कर्मचारियों की दलील मानकर उनके हक में फैसला सुनाया है और महिला बाल विकास सचिव को तीन माह में महिला पर्यवेक्षक समेत अन्य याचिकाकर्ताओं की सेवा को नियमित करने का आदेश दिया है.

Jharkhand High Court decision - Employees working on contract for ten years will be regular
झारखंड हाई कोर्ट
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Published : Oct 6, 2021, 7:46 PM IST

Updated : Oct 6, 2021, 8:39 PM IST

रांचीः जिले में पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेवा के नियमितीकरण की मांग को लेकर दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार के महिला बाल विकास सचिव को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में 12 सप्ताह में 10 वर्षों से अधिक समय से नौकरी कर रहे कर्मचारियों की सेवा को नियमित करने का निर्देश दिया है.

ये भी पढ़ें-झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले ने राज्य के विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों को दी है बड़ी राहत, जानिए कैसे

झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि उनके मुवक्किल पिछले 15 वर्षों से अनुबंध के आधार पर नौकरी कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में उनकी सेवा को नियमित किया जाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में दिए गए आदेश का भी हवाला दिया. अदालत को जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह आदेश दिया है कि जो कर्मचारी अनुबंध के आधार पर 10 वर्षों से अधिक समय से सेवा दे रहा है. उसकी सेवा को नियमित किया जाना चाहिए.

देखें पूरी खबर

कोर्ट ने रिपोर्ट भी मांगी

अदालत ने याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद राज्य सरकार के महिला बाल विकास विभाग के सचिव को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में 12 सप्ताह में निर्णय लेकर इन्हें नियमित करने का निर्देश दिया. साथ ही कोर्ट को अवगत कराने को भी कहा है.

यह था मामला

बता दें कि धनबाद जिले में काम कर रहीं नीलू कुमारी एवं अन्य दर्जनभर कर्मियों ने झारखंड हाई कोर्ट में सेवा नियमितीकरण के लिए याचिका दायर की थी. याचिका के माध्यम से अदालत को जानकारी दी थी कि वे लोग वर्ष 2005 से अनुबंध के आधार पर महिला बाल विकास विभाग में महिला पर्यवेक्षक के पद पर काम कर रहीं हैं. राज्य सरकार उनकी सेवा को नियमित नहीं कर रही है. इसलिए उन्होंने अदालत से गुहार लगाई है कि उन्हें नियमित करने का विभाग को आदेश दिया जाए.

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प्रोन्नति की मांग वाली याचिका पर भी सुनवाई

विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर की प्रोन्नति की मांग को लेकर दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार और विश्वविद्यालय को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब पेश करने को कहा है.

इससे पहले एसोसिएट प्रोफेसर के दर्जनों याचिकाकर्ताओं ने प्रोन्नति की मांग को लेकर याचिका दायर की थी. उसी याचिका के सुनवाई के दौरान प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता चंचल जैन ने अदालत को बताया कि एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति के लिए यूजीसी ने रेगुलेशन बनाया है.

करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत प्रोन्नति मिलती थी, जो 31 दिसंबर 2008 तक लागू थी. इसके बाद यूजीसी ने नया रेगुलेशन बनाया, जो झारखंड में 6 अगस्त 2021 से लागू है. हालांकि वर्ष 2009 से अगस्त 2021 तक कोई नियम या कानून लागू नहीं था. जिससे कि प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दी जा सके. अदालत से मांग की गई कि इस अवधि में वर्ष 2008 के रेगुलेशन को लागू किया जाए या फिर नई स्कीम बनाकर प्रोन्नति दी जाए.

रांचीः जिले में पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेवा के नियमितीकरण की मांग को लेकर दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार के महिला बाल विकास सचिव को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में 12 सप्ताह में 10 वर्षों से अधिक समय से नौकरी कर रहे कर्मचारियों की सेवा को नियमित करने का निर्देश दिया है.

ये भी पढ़ें-झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले ने राज्य के विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों को दी है बड़ी राहत, जानिए कैसे

झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि उनके मुवक्किल पिछले 15 वर्षों से अनुबंध के आधार पर नौकरी कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में उनकी सेवा को नियमित किया जाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में दिए गए आदेश का भी हवाला दिया. अदालत को जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह आदेश दिया है कि जो कर्मचारी अनुबंध के आधार पर 10 वर्षों से अधिक समय से सेवा दे रहा है. उसकी सेवा को नियमित किया जाना चाहिए.

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कोर्ट ने रिपोर्ट भी मांगी

अदालत ने याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद राज्य सरकार के महिला बाल विकास विभाग के सचिव को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में 12 सप्ताह में निर्णय लेकर इन्हें नियमित करने का निर्देश दिया. साथ ही कोर्ट को अवगत कराने को भी कहा है.

यह था मामला

बता दें कि धनबाद जिले में काम कर रहीं नीलू कुमारी एवं अन्य दर्जनभर कर्मियों ने झारखंड हाई कोर्ट में सेवा नियमितीकरण के लिए याचिका दायर की थी. याचिका के माध्यम से अदालत को जानकारी दी थी कि वे लोग वर्ष 2005 से अनुबंध के आधार पर महिला बाल विकास विभाग में महिला पर्यवेक्षक के पद पर काम कर रहीं हैं. राज्य सरकार उनकी सेवा को नियमित नहीं कर रही है. इसलिए उन्होंने अदालत से गुहार लगाई है कि उन्हें नियमित करने का विभाग को आदेश दिया जाए.

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प्रोन्नति की मांग वाली याचिका पर भी सुनवाई

विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर की प्रोन्नति की मांग को लेकर दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार और विश्वविद्यालय को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब पेश करने को कहा है.

इससे पहले एसोसिएट प्रोफेसर के दर्जनों याचिकाकर्ताओं ने प्रोन्नति की मांग को लेकर याचिका दायर की थी. उसी याचिका के सुनवाई के दौरान प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता चंचल जैन ने अदालत को बताया कि एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति के लिए यूजीसी ने रेगुलेशन बनाया है.

करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत प्रोन्नति मिलती थी, जो 31 दिसंबर 2008 तक लागू थी. इसके बाद यूजीसी ने नया रेगुलेशन बनाया, जो झारखंड में 6 अगस्त 2021 से लागू है. हालांकि वर्ष 2009 से अगस्त 2021 तक कोई नियम या कानून लागू नहीं था. जिससे कि प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दी जा सके. अदालत से मांग की गई कि इस अवधि में वर्ष 2008 के रेगुलेशन को लागू किया जाए या फिर नई स्कीम बनाकर प्रोन्नति दी जाए.

Last Updated : Oct 6, 2021, 8:39 PM IST
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