धनबादः समुद्र और तालाबों में रेस्क्यू करना बेहद ही आसान है लेकिन माइंस में रेस्क्यू कार्य उतना ही कठिन है. दोनो में जमीन आसमान का अंतर है.खदान के अंदर खोए हुए व्यक्ति का पता लगाना बेहद ही कठिन कार्य है. खुदिया कोलियरी के अंडरग्राउंड माइंस में रेस्क्यू करना यह एक नया अनुभव रहा है. यह कहना है ओडिशा के कटक से धनबाद पहुंचे गोताखोरों के टीम लीडर प्रणव विशाल का.
शनिवार को ईसीएल के डीटी बी बीरा रेड्डी और मुगमा के जीएम बीसी सिंह द्वारा ईसीएल कार्यालय में उन्हें सम्मानित किया गया. इस दौरान प्रणव ने यह बातें कही है. प्रणव ने कहा कि समुद्र या तालाब में टॉर्च की रोशनी से खोए हुए व्यक्ति का बड़ी आसानी पता लगाया जा सकता है.
वाटर टॉर्च की मदद से दूर तक कि वस्तुओं को आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन अंडर ग्राउंड माइंस के अंदर का पानी काला होता है. माइंस में स्थान भी कम और काफी सकरा होता है, जिस कारण खोए हुए व्यक्ति का पता लगा पाना मुश्किल होता है. ईश्वर की कृपा से एक को आठवें दिन तथा दूसरे को 9वें दिन माइंस से खोजकर बाहर निकाला गया.
यह भी पढ़ेंः बंद ही रहेंगे 351 आवासीय स्कूल, कोरोना की आशंका के चलते सरकार ने नहीं दी खोलने की अनुमति
यह एक अलग अनुभव भी रहा है.बता दें कि ईसीएल की खुदिया कोलियरी के अंडरग्राउंड माइंस में पानी भर जाने के कारण पिछले दिनों दो मजदूर का कहीं आता पता नही चल रहा था. असम की गोताखोर की टीम ने खदान के अंदर फंसे माणिक बाउरी और बिसवा मांझी को जीवित तो नहीं बचा पाए लेकिन शव को खोजने में सफलता हासिल की थी.