देवघरः नवरात्रि में देवघर बाबा मंदिर की अनोखी परंपरा आदिकाल से निभाई जा रही है. दुर्गा पूजा के समय तीन दिन तक देवी आदि शक्तियों के मंदिर का द्वार बंद रखा जाता है. विजयदशमी के दिन इन मंदिरों के कपाट खोले जाते हैं.
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नवरात्रि की सप्तमी पूजा जिसे महासप्तमी भी कहा जाता है. दुर्गा पूजा में सप्तमी या उससे पहले सभी मंदिरों और पंडाल के द्वार आम श्रद्धालु के लिए खोल जाते हैं. लेकिन देवघर स्थित बाबा मंदिर प्रांगण में स्थापित तीन देवी आदि शक्ति मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. इसके बाद इन तीनों मंदिरों के पट विजयादशमी के दिन करीब 11 बजे खोले जाते हैं. ये परंपरा बाबा मंदिर में सदियों से निभाई जा रही है. परंपरा के अनुसार तीन दिन तक सिर्फ दीक्षा प्राप्त पुरोहित ही इन मंदिरों में पूजा करते हैं. साथ ही मंदिर के पट को तीन दिनों तक विशेष पूजा के लिए सुबह और शाम को ही खोले जाते हैं. इस दौरान पुरोहित द्वारा आदि शक्ति की तांत्रिक विधि से पूजा कर बलि अर्पित करने के बाद पट को बंद कर देते हैं.
इसको लेकर तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी बताते हैं कि देवघर बाबा धाम की यह परंपरा सदियों पुरानी है. इस परंपरा के अनुसार सबसे पहले मां पार्वती के मंदिर का पट बंद किया जाता है. जिसके बाद मां काली और फिर माता संध्या मंदिर के पट को बंद किया जाता है. इसके बाद इन तीनों मंदिरों में तांत्रिक विधि से पूजा करने के बाद खांड़ा बांधकर मंदिर के पट को बंद कर दिया जाता है.
विजयादशमी के दिन बलि के बाद दिन के 11 बजे आम भक्तों के लिए मंदिर के पट खोल दिया जाता है. परंपरा के अनुसार नवरात्रि की सप्तमी तिथि को शाम 6 बजे से सबसे पहले मां पार्वती मंदिर में पूजा शुरू की जाती है. यहां तांत्रिक विधि से पूजा शुरू करने से साथ अलग अलग नदियों के विशेष जल से शाही स्नान कराया जाता है. जिसके बाद माता को बलि अर्पित कर प्रतिमा के साथ खांड़ा बांधा जाता है और फिर मंदिर का पट बंद किया जाता है.