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मिथिलांचल से देवघर पहुंचे तिलकहरू श्रद्धालु, बसंत पंचमी पर होगा बाबा वैद्यनाथ का तिलक, जानिए क्या है महत्व

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Published : Jan 25, 2023, 10:38 AM IST

देवघर में बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंते हैं, जिन्हें तिलकहरू श्रद्धालु कहते हैं. ये श्रद्धालु बाबा वैद्यनाथ पर तिलक चढ़ाकर विशेष पूजा अर्चना करते हैं.

Basant Panchami in Deoghar
मिथिलांचल से देवघर पहुंचे तिलकहरू श्रद्धालु
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देवघरः बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल के लोगों के लिए बेहद खास होता है. क्योंकि इस दिन बाबा बैद्यनाथ पर तिलक चढ़ता है और फलाहारी पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना की जाती है. इसके साथ ही बाबा भोलेनाथ के निमित्त आम्र मंजर, अबीर, पंचमेवा, फल और मालपुआ आदि का भोग लगाया जाता है. इसके बाद बाबा मंदिर परिसर स्थित सभी 22 मंदिरों में धूप दीप दिखा कर मालपुआ का भोग लगाया जाता है.

यह भी पढ़ेंः देवघर उपायुक्त ने रात्रि में किया औचक निरीक्षण, श्रद्धालुओं को लेकर किए गए व्यवस्था का लिया जायजा

बसंत पंचमी के दिन देश भर में विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. लेकिन देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव के रूप में मनाया जाता है. तिलक की इस रस्म को पूरा करने के लिए बाबा के ससुराल यानी मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग तरह के कांवड़ लेकर बाबा धाम पहुंचते हैं. श्रद्धालु बाबा को तिलक चढ़ाकर अबीर-गुलाल लगा एक-दूसरे को बधाई देते हैं और शिवरात्रि के अवसर पर शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौटते हैं.

मान्यता है कि तिलकोत्सव मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मिथलावासियों का मानना है कि माता पार्वती हिमालय पर्वत की सीमा की थीं और मिथिला हिमालय की सीमा पर स्थित है. इसलिए माता पार्वती मिथिला की बेटी मानी जाती हैं. इसलिए मिथिलावासी लड़की पक्ष की ओर से आकर तिलकोत्सव मनाते हैं.

प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी कई टोलियों में आए मिथिलावासी शहर के विभिन्न हिस्सों में डेरा जमाए हुए हैं और पारंपरिक भजन-कीर्तन कर बसंत पंचमी के दिन का इंतजार कर रहे हैं. तिलकोत्सव के बाद एक दूसरे को गुलाल और अबीर लगा बधाइयां देकर खुशियां मनायेंगे और पार्वती के मायके यानी मिथलांचल वापस लौट जाएंगे.

तिलक चढ़ाने की परंपरा एक मात्र देवघर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग में ही देखने को मिलता है. जहां, भोलेनाथ के तिलकोत्सव के लिए माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निर्धारित होती है. बाबा के तिलकहरू श्रद्धालु विशेष प्रकार के कांवर, वेशभूषा और भाषा से अलग-अलग पहचान रखने वाले खुद को भगवान शिव को अपना रिश्तेदार बताते हैं.

बाबा बैधनाथ को तिलक चढ़ा कर वापस लौटते ही बाबाधाम में शिव विवाह यानी शिवरात्रि की तैयारी शुरू हो जाती है. तमाम तैयारियों के बाद महाशिवरात्रि के दिन बाबा मंदिर के प्रांगण में माता पार्वती और महादेव शिवशंकर के बीच गठबंधन की रस्म अदायगी की जाती है. फिर बड़े ही धूम-धाम से बाबा की बारात मंदिर प्रांगण पहुंचती है, जहां शिव-पार्वती का विवाह संपन्न होता है.

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देवघरः बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल के लोगों के लिए बेहद खास होता है. क्योंकि इस दिन बाबा बैद्यनाथ पर तिलक चढ़ता है और फलाहारी पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना की जाती है. इसके साथ ही बाबा भोलेनाथ के निमित्त आम्र मंजर, अबीर, पंचमेवा, फल और मालपुआ आदि का भोग लगाया जाता है. इसके बाद बाबा मंदिर परिसर स्थित सभी 22 मंदिरों में धूप दीप दिखा कर मालपुआ का भोग लगाया जाता है.

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बसंत पंचमी के दिन देश भर में विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. लेकिन देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव के रूप में मनाया जाता है. तिलक की इस रस्म को पूरा करने के लिए बाबा के ससुराल यानी मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग तरह के कांवड़ लेकर बाबा धाम पहुंचते हैं. श्रद्धालु बाबा को तिलक चढ़ाकर अबीर-गुलाल लगा एक-दूसरे को बधाई देते हैं और शिवरात्रि के अवसर पर शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौटते हैं.

मान्यता है कि तिलकोत्सव मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मिथलावासियों का मानना है कि माता पार्वती हिमालय पर्वत की सीमा की थीं और मिथिला हिमालय की सीमा पर स्थित है. इसलिए माता पार्वती मिथिला की बेटी मानी जाती हैं. इसलिए मिथिलावासी लड़की पक्ष की ओर से आकर तिलकोत्सव मनाते हैं.

प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी कई टोलियों में आए मिथिलावासी शहर के विभिन्न हिस्सों में डेरा जमाए हुए हैं और पारंपरिक भजन-कीर्तन कर बसंत पंचमी के दिन का इंतजार कर रहे हैं. तिलकोत्सव के बाद एक दूसरे को गुलाल और अबीर लगा बधाइयां देकर खुशियां मनायेंगे और पार्वती के मायके यानी मिथलांचल वापस लौट जाएंगे.

तिलक चढ़ाने की परंपरा एक मात्र देवघर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग में ही देखने को मिलता है. जहां, भोलेनाथ के तिलकोत्सव के लिए माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निर्धारित होती है. बाबा के तिलकहरू श्रद्धालु विशेष प्रकार के कांवर, वेशभूषा और भाषा से अलग-अलग पहचान रखने वाले खुद को भगवान शिव को अपना रिश्तेदार बताते हैं.

बाबा बैधनाथ को तिलक चढ़ा कर वापस लौटते ही बाबाधाम में शिव विवाह यानी शिवरात्रि की तैयारी शुरू हो जाती है. तमाम तैयारियों के बाद महाशिवरात्रि के दिन बाबा मंदिर के प्रांगण में माता पार्वती और महादेव शिवशंकर के बीच गठबंधन की रस्म अदायगी की जाती है. फिर बड़े ही धूम-धाम से बाबा की बारात मंदिर प्रांगण पहुंचती है, जहां शिव-पार्वती का विवाह संपन्न होता है.

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