देवघर: शनिवार से ही पितृपक्ष शुरू हो गया है. जिले के शिवगंगा घाट पर ऋषि तर्पण के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. 3 दिनों तक परंपरानुसार पितरों को जल देने की परंपरा 11 से 13 सितंबर तक किया गया. हिंदू धर्म में पितृपक्ष की बड़ी मान्यता है.
पूर्वजों की शांति के लिए किया जाता है पिंडदान
देवघर के शिवगंगा घाट पर कुशी तर्पण किया जा रहा है. पितृपक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं और जिस दिन उनके परिजानों की मृत्यु हुई होती है, उस दिन उनका श्राद्ध करते हैं. पंडितों के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध करके चुकाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि लोग पितृ तर्पण के लिए सुल्तानगंज, काशी जैसे गंगा घाट में जाकर अपने पितरों का तर्पण करते है और कुश तोड़ते हैं. इन घाटों के जितना ही शिवगंगा घाट का भी महत्व है.
हिंदू धर्म में पितृपक्ष की मान्यता
ऐसा माना जाता है कि रावण के लिए ही शिवगंगा घाट बनाया गया था. जिसे पाताल गंगा भी कहते है. शिवगंगा के दक्षिणी घाट पर पुरोहितों द्वारा तर्पण कराया जाता है. पुरोहितों की माने तो 11 से 13 सितंबर तक ऋषि तर्पण किया गया, जो भद्र पक्ष त्रियोदशि से पूर्णिमा तक किया गया. वहीं, 14 से 28 सितंबर तक पहला श्राद्ध किया जाता है जिसे पितृपक्ष कहा जाता है. जिसमे लोग तर्पण और श्राद्ध दोनों करते हैं. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए तर्पण और पिंड दान भी करते है, क्योंकि सबसे बड़ा देवता पितृ को ही माना जाता है. इनके बाद ही देवी पक्ष शुरू होता है और लोग शुभ कार्य करना शुरू करते हैं.
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तर्पण के दौरान ही भादो शुक्ल पक्ष के अमावस्या को कुश तोड़ा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी कुश का सालभर चलने वाले मांगलिक कार्यो में इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसी कुश में 3 देवता विराजमान रहते है, जिसकी शुरुआत पितृ पक्ष से ही हो जाती है.