देवघर: सावन में कांवरियों का जनसैलाब बाबा नगरी में देखते ही बनता है. ऐसे में बाबाधाम पहुंचने वाले भक्तों की भक्ति देखने लायक होती है. सावन माह में बाबा भोले पर जलार्पण का विशेष महत्व होता है, तभी तो सुल्तानगंज से 105 किलोमिटर की लंबी यात्रा कर भक्त बाबा भोले पर जलार्पण करते हैं. इस दौरान भक्त बाबा भोले को मनाने के तरह-तरह के रास्ते भी आखित्यार करते हैं.
भगवान राम ने शुरू की थी कांवर यात्रा
कहते हैं बाबा भोले पर सावन महीने में गंगा जल चढ़ाने की परंपरा भगवान राम ने रावण पर विजय पाने के लिए पैदल यात्रा कर सुल्तानगंज से जल चढ़ाया था. रावण पर विजय पाने के बाद से यहां सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत की गई थी.
भक्ति के तरीके अनेक
इस दौरान कई भक्त पैदल चल कर कांवर यात्रा करते हैं, जिसमें उन्हें लगभग 3 से 4 दिन लगता है. वहीं कई भक्त डाक बम के रुप में आते हैं. इन भक्तों को 24 घंटे के अंदर ही जल लेकर बाबा पर जलार्पण कर देना होता है. इतना ही नहीं डाक बम जल लेने के बाद कहीं रूक भी नहीं सकते, इन्हें चलते ही रहना होता है. अन्यथा इनका संकल्प भंग हो जाता है. सामान्यत: इन्हें यह यात्रा तय करने में 14 से 16 घंटे लगते हैं. इन सबसे इतर सबसे कठिन यात्रा करते हैं दंडी बम.
सबसे कठिन है दंडी बम की यात्रा
दंडी बम सुल्तानगंज से शाष्टांग दंडवत करते हुए बाबा बैद्यनाथ या बोल बम का नाम जपते हुए अपनी यात्रा पूरी करते हैं. अपने प्रत्येक दंड पर ये बम जमीन पर लकड़ी से चिन्ह बनाते हैं ताकि वे चिन्ह से एक भी इंच आगे न निकलें और इन्हें बाबा दरबार पहुचने में 25 से 30 दिन लगते हैं. इनकी सेवा में एक दल भी पूरी व्यवस्था लेकर इनके साथ चलता है. दंडी बम जैसे ही भक्त कष्टी बम के रूप में भी जाने जाते हैं. अंतर बस इतना है कि ये पूरी तरह फलाहार पर अपनी यात्रा तय करते हैं. इनकी भक्ति की पराकाष्ठा देखते ही बनती है.
क्या कहते हैं पुरोहित
बाबा मंदिर पुरोहितों की माने तो दंडी बम का जिक्र ग्रंथों में भी आया है. कष्टी दंड को हठ योग भी कहा गया है और इसे सबसे कठिन यात्रा भी माना गया है.