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Navratra 2023: बिशनपुर में 1600 ईस्वी से की जा रही दुर्गा पूजा, कदम बलि देकर मां की वेदी की गई थी स्थापित - Durga Puja in Bishanpur since 1600 AD

देवघर के सारवां प्रखंड में स्थित बिशनपुरगढ़ मंदिर में 1600 ईस्वी से दुर्गा पूजा हो रही है. इसकी शुरुआत राज मर्दन सिंह ने की थी. प्राचीन मंदिर के जीर्णशीर्ण होने पर ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण वर्ष 2000 में कराया गया था. Deoghar Durga Puja in Bishanpur

Deoghar Durga Puja in Bishanpur
बिशनपुर में 1600 ईस्वी से की जा रही है दुर्गा पूजा
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 22, 2023, 2:56 PM IST

बिशनपुर में 1600 ईस्वी से की जा रही है दुर्गा पूजा

देवघर: देवघर के सारवां प्रखंड अंतर्गत प्राचीन शक्ति स्थल के रूप में प्रख्यात बिशनपुरगढ़ दुर्गा मंदिर अपने साथ कई रहस्य समेटे हुए है. मंदिर की स्थापना के संबंध में बिशनपुरगढ़ के राजा मर्दन सिंह की सातवीं पीढ़ी के वंशज राजेश कुमार सिंह बताते है कि 1600 ईस्वी के आस-पास दुर्गा पूजा शुरू हुई थी. जिसके बाद ही उनके राज्य का विस्तार हो पाया.

ये भी पढ़ें: खूंटी के राय सिमला गांव में 17वीं सदी से होती है मां दुर्गा की विशेष आराधना, नागवंशी राज परिवार के वंशज करते हैं दुर्गोत्सव का आयोजन

ये है इससे जुड़ी कथा: स्टेट के तत्कालीन राजा मर्दन सिंह दुर्गा माता के बड़े भक्त थे और तीर्थपुरोहितों की देखरेख में पूरे विधि-विधान से बाबा मंदिर के भीतरखंड से माता को कदम बलि देकर साथ लेकर आए थे. इस संबंध में उनके वंशज बताते हैं कि रात्रि विश्राम के समय बिशनपुर कदम नदी तट पर जब राजा रुके, तो मां ने रात्रि में स्वप्न दिया और कहा कि कदम को आगे नहीं ले जाए. मां ने कहा विधि-विधान से वेदी स्थापित कर दी जाए. जिसके बाद नदी के किनारे ही माता की वेदी स्थापित कर दी गई. जिसके पश्चात शारदीय नवरात्र में माता की पूजा शुरू हुई.

ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण: नौ दिनों तक राजा वेदी के नीचे गुफा बनाकर माता की आराधना करते थे और विजयादशमी के दिन बाहर आकर पूर्णाहुति करते थे. आज भी भीतरखंड में वह गुफा मौजूद हैं. आज भी परंपरा के अनुसार तुरही के साथ चार किमी दूर सारवां के कदम तालाब में प्रतिमा को कंधे पर लाकर विसर्जन किया जाता है. प्राचीन मंदिर के जीर्णशीर्ण होने के बाद साल 2000 में ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यहां दुर्गा माता को बलि प्रदान करने की परंपरा चली आ रही है.

बिशनपुरगढ़ के राजेश कुमार सिंह ने क्या कहा: बिशनपुरगढ़ के राजेश कुमार सिंह ने कहा यह प्राचीन शक्ति स्थल है, जिसे हमारे वंशज राजा मर्दन सिंह ने भीतरखंड से लाकर आरंभ किया था. इस गहवर से क्षेत्र के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है और नवरात्र के दौरान रोजाना हजारों लोगों की भीड़ लगती हैं.

बिशनपुर में 1600 ईस्वी से की जा रही है दुर्गा पूजा

देवघर: देवघर के सारवां प्रखंड अंतर्गत प्राचीन शक्ति स्थल के रूप में प्रख्यात बिशनपुरगढ़ दुर्गा मंदिर अपने साथ कई रहस्य समेटे हुए है. मंदिर की स्थापना के संबंध में बिशनपुरगढ़ के राजा मर्दन सिंह की सातवीं पीढ़ी के वंशज राजेश कुमार सिंह बताते है कि 1600 ईस्वी के आस-पास दुर्गा पूजा शुरू हुई थी. जिसके बाद ही उनके राज्य का विस्तार हो पाया.

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ये है इससे जुड़ी कथा: स्टेट के तत्कालीन राजा मर्दन सिंह दुर्गा माता के बड़े भक्त थे और तीर्थपुरोहितों की देखरेख में पूरे विधि-विधान से बाबा मंदिर के भीतरखंड से माता को कदम बलि देकर साथ लेकर आए थे. इस संबंध में उनके वंशज बताते हैं कि रात्रि विश्राम के समय बिशनपुर कदम नदी तट पर जब राजा रुके, तो मां ने रात्रि में स्वप्न दिया और कहा कि कदम को आगे नहीं ले जाए. मां ने कहा विधि-विधान से वेदी स्थापित कर दी जाए. जिसके बाद नदी के किनारे ही माता की वेदी स्थापित कर दी गई. जिसके पश्चात शारदीय नवरात्र में माता की पूजा शुरू हुई.

ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण: नौ दिनों तक राजा वेदी के नीचे गुफा बनाकर माता की आराधना करते थे और विजयादशमी के दिन बाहर आकर पूर्णाहुति करते थे. आज भी भीतरखंड में वह गुफा मौजूद हैं. आज भी परंपरा के अनुसार तुरही के साथ चार किमी दूर सारवां के कदम तालाब में प्रतिमा को कंधे पर लाकर विसर्जन किया जाता है. प्राचीन मंदिर के जीर्णशीर्ण होने के बाद साल 2000 में ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यहां दुर्गा माता को बलि प्रदान करने की परंपरा चली आ रही है.

बिशनपुरगढ़ के राजेश कुमार सिंह ने क्या कहा: बिशनपुरगढ़ के राजेश कुमार सिंह ने कहा यह प्राचीन शक्ति स्थल है, जिसे हमारे वंशज राजा मर्दन सिंह ने भीतरखंड से लाकर आरंभ किया था. इस गहवर से क्षेत्र के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है और नवरात्र के दौरान रोजाना हजारों लोगों की भीड़ लगती हैं.

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