देवघरः झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट के साथ ही तमाम सियासी पार्टियां अपने नफा नुकसान का आकलन करने में जुटी हुई हैं. इन सबके बीच सभी पार्टी देवघर में जातिय समीकरण को अपने पक्ष में करने में जुट गई हैं.
देवघर विधानसभा सीट सुरक्षित है
सूबे में विधानसभा चुनाव नवंबर में होने की उम्मीद है. देवघर सीट पर उम्मीदवारी को लेकर कभी भी तनावपूर्ण हालात नहीं बने इसका एक फायदा यह भी रहा है की, जिस किसी पार्टी ने इस सीट से जीत का परचम लहराया है वह सर्वमान्य रहा है. हालांकि, चुनाव के वक्त तमाम पार्टियां इस सीट पर कब्जे को लेकर अपना दावा पेश करती आई हैं, लेकिन जिस किसी ने जीत हासिल की है क्षेत्र की जनता ने उसे गले लगाया है. यहां अकसर दो उम्मीदवार के बीच जीत-हार की अंतर मामूली रहा है. सबसे खास बात यह है कि देवघर विधानसभा सीट पर अबतक मुद्दों के आधार पर किसी भी प्रत्याशी ने जीत दर्ज नही की है, बल्कि यहां हमेशा उम्मीदवार के चेहरे या फिर पार्टी की बदौलत जीत हासिल की है.
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क्या है देवघर की जातीय समीकरण
देवघर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 3 लाख 55 हजार 497 वोटर हैं, लेकिन कुछ ऐसी जातियां हैं जिनका वोट चुनाव के नतीजों को हमेशा से प्रभावित करते आया है. इसे समझने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि किस जाति के कितने वोटर हैं. इस फेहरिस्त में पहले पायदान पर है यादव जाति के मतदाता जिनकी जनसंख्या लगभग 80 हजार है. दूसरे पायदान पर है ब्राह्मण और वैश्य दोनों जातियों के करीब 60-60हजार वोटर हैं, अल्पसंख्यक 40 हजार, भूमिहार 40 हजार, हरिजन 40 हजार, आदिवासी 10 हजार और अन्य जातियों के 25 हजार 497 मतदाता हैं. संख्याबल में सबसे अधिक होने के बावजूद यादव मतदाता वोटिंग में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं. लिहाजा इसका सवर्ण वोटर डिसाइडिंग फैक्टर हो जाते हैं. सवर्णों का वोट एकतरफा जिस पार्टी को मिलता है, उसी के सिर पर देवघर विधानसभा सीट का सेहरा सजता है.