देवघर: जिला मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर दूर बसा पतारडीह गांव जहां लगभग 70 लोहार परिवार रहते हैं. वो भी लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं. गांव के लोहार जहां रोजाना हस्तनिर्मित लोहे का बर्तन बनाकर अपना जीविका चला रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण बाजार बंद रहने से उनके बनाए गए बर्तन भी नहीं बिक रहे हैं, जिसके कारण उन्हें खाने के लाले पड़ रहा है.
वैश्विक महामारी कोरोना से इन लोहार परिवारों पर कहर सा टूट पड़ा है. सभी परिवार घर में लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं. सभी का काम काज ठप्प पड़ा हुआ है. वो लोग अब भुखमरी की कगार पर हैं. इस लॉकडाउन में उन्हें महाजन भी मदद नहीं कर रहे हैं.
लोहारों की मानें तो अब वो भुखमरी के कगार पर हैं. सरकार से जो अनाज मिलता है वह ठीक से 15 दिन भी घर में नहीं चलता है. उनका कहना है कि महाजनों ने कारोबार के लिए जो पूंजी दिया था वो भी लॉकडाउन में खर्च हो गया है, अब महाजन भी मदद करने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में अब लोहार परिवार भुखमरी के कगार पर आ गए हैं.
कारीगर बताते हैं कि इन दिनों सभी लोहार कारीगर श्रावणी महीने की तैयारी में जुट जाते थे, मेले में लोहे का कढ़ाई सहित अन्य सामग्री बनाकर बेचे जाते थे, जिससे अच्छी आमदनी होती थी उसके लिए रखे जमा पूंजी भी खत्म हो गया है. ऐसे में अब परिवार चलाना भी मुश्किल हो गया है.
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कैमरे पर कुछ बोलने से बचते रहे अंचल अधिकारी
ऐसे में अब इन लोहारों के पास बस एक ही उम्मीद बची है कि सरकार कुछ मदद करे, ताकि दोबारा अपना कारोबार शुरू कर सक सके. ईटीवी भारत के संवाददाता ने जब इसे लेकर अंचल अधिकारी से बात करना चाहा तो उन्होंने कैमरा से बचते हुए कहा कि उन सभी जरूरतमंदों को तत्काल खाद्य सामग्री उपलब्ध करा दिया जाएगा, जिसको चिन्हित करने के लिए स्थानीय मुखिया को निर्देश दिया जा रहा है और जल्द ही उन्हें खाद्य सामग्री उपलब्ध करा दिया जाएगा.
देश-विदेशों में जाते हैं हस्तनिर्मित बर्तन
पतारडीह में बने हस्तनिर्मित लोहे का बर्तन देश विदेशों में भी फेमस है. जिन कारीगरों का हाथ अभी कोरोना को लेकर थम गया है. ये कारीगर आफत की घड़ी में लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं, लेकिन इनके सामने खाने-पीने से लेकर आगे की कारोबार पर गरीबी के बादल मंडराने लगे हैं.