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चतरा के इस गांव का दर्द सुनकर हो जाएंगे हैरान! जान जोखिम में डाल स्कूल जाते हैं नौनिहाल - chatra news

चुनावों के वक्त विकास के लंबे चौड़े वादे किए जाते हैं. एक ऐसी तस्वीर दिखाई जाती है जिसमें सब खुशहाल हैं, लेकिन हकीकत उससे जुदा है. चतरा का हेसातू गांव आज भी विकास की रोशनी से महरूम है. गांव तक आने जाने के लिए एक अदद सड़क तक नहीं है. बच्चे जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाते हैं ताकी उनका भविष्य बेहतर हो सके.

There is no road to many villages including Hetasu of Chatra
There is no road to many villages including Hetasu of Chatra
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Published : Mar 22, 2022, 7:50 PM IST

Updated : Mar 23, 2022, 7:28 AM IST

चतरा: चुनावों के वक्त भारत में कई नारे गढ़े जाते हैं चाहे अच्छे दिन आने का नारा हो या फिर मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है का नारा हो. इन नारों को सुन कर ऐसा लगता है कि वाकई भारत में बहुत कुछ बदल रहा है. लेकिन झारखंड के कई ऐसे जिले हैं जो अति नक्सल प्रभावित हैं जहां आज भी विकास नहीं पहुंचा है. इन्हीं में से एक है चतरा जिला जहां नक्सलियों के खिलाफ अभियान में केंद्र और राज्य सरकार करोड़ों खर्च कर रहे हैं. विकास के दावे भी किए जा रहे हैं लेकिन यहां के हेसातू गांव में आज भी विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है.

चतरा जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर उग्रवाद के साए में रहने वाला हेसातू गांव आज भी विकास से कोसों दूर है. हेसातू गांव में ना सड़क है और ना ही नदी पार करने के लिए पुल है. इस गांव के लोग नदी और पहाड़ों से घिरे हुए हैं. लोगों के आवागमन के लिए सड़क नहीं है, जिसके चलते लोग कच्चे रास्तों से आने जाने को मजबूर रहते हैं. हालांकि, गांव के दर्जनों लोगों ने नदी पर पुल और पक्की सड़क निर्माण को लेकर उपायुक्त और मंत्री को अवगत कराया लेकिन आज भी सड़क निर्माण नहीं हो पाया है.

ये भी पढ़ें: तार-बिजली और बदहाल गांव: दो साल से ट्रांसफार्मर खराब, अंधेरे में शरीफाटांड के लोग

बच्चों को क्योंकि अपना भविष्य सुधारना है इसलिए स्कूल तो जाना ही होगा. यही वजह है कि बच्चे कच्चे रास्तों से होते हुए नदी पार कर स्कूल जाने को मजबूर हैं. यही हाल आम लोगों का भी नदी पार करने में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, कई बार तो जिंदगी पर ही आफत बन पड़ती है. बरसात के दिनों में हालात और खराब हो जाते हैं. इस दौरान जब किसी की तबीयत खराब होती है तो उन्हें खाट पर ही ले जाया जाता है. बरसात के दिनों में सिंदुरिया नदी में बाढ़ जैसे भयावह स्थिति होती, जिसके चलते हेसातू, भंडार समेत अन्य गांवों का संपर्क टूट जाता है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

बरसात के दिनों में लोगों के लिए नदी पार करना एक चुनौती हो जाती है. आवागमन लगभग बंद हो जाता है. अगर गांव में किसी महिला को प्रसव या इलाज के लिए ले जाना होता है तो एंबुलेंस भी गांव में नहीं आती तब फिर उन्हें खाट की डोली बनाकर नदी पार कराया जाता है. कई बार समुचित इलाज के बिना मरीज की मौत भी हो जाती है. इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने डीसी अंजली यादव को ग्रामीणों की समस्याओं से अवगत कराया तो, उन्होंने जल्द ही हेसातू गांव में पुल का निर्माण का आश्वासन दिया है. बहरहाल, ग्रामीणों से हर बार चुनावो में नेताओं ने वादे किए योजनाओं का भरोसा भी दिया लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद आज तक वादे पूरे नहीं हुए. एक बार फिर ग्रामीणों को आश्वसन मिला है तो उन्हें उम्मीद है कि इस बार विकास की किरण उन तक जरूर पहुंचेगी.

चतरा: चुनावों के वक्त भारत में कई नारे गढ़े जाते हैं चाहे अच्छे दिन आने का नारा हो या फिर मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है का नारा हो. इन नारों को सुन कर ऐसा लगता है कि वाकई भारत में बहुत कुछ बदल रहा है. लेकिन झारखंड के कई ऐसे जिले हैं जो अति नक्सल प्रभावित हैं जहां आज भी विकास नहीं पहुंचा है. इन्हीं में से एक है चतरा जिला जहां नक्सलियों के खिलाफ अभियान में केंद्र और राज्य सरकार करोड़ों खर्च कर रहे हैं. विकास के दावे भी किए जा रहे हैं लेकिन यहां के हेसातू गांव में आज भी विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है.

चतरा जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर उग्रवाद के साए में रहने वाला हेसातू गांव आज भी विकास से कोसों दूर है. हेसातू गांव में ना सड़क है और ना ही नदी पार करने के लिए पुल है. इस गांव के लोग नदी और पहाड़ों से घिरे हुए हैं. लोगों के आवागमन के लिए सड़क नहीं है, जिसके चलते लोग कच्चे रास्तों से आने जाने को मजबूर रहते हैं. हालांकि, गांव के दर्जनों लोगों ने नदी पर पुल और पक्की सड़क निर्माण को लेकर उपायुक्त और मंत्री को अवगत कराया लेकिन आज भी सड़क निर्माण नहीं हो पाया है.

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बच्चों को क्योंकि अपना भविष्य सुधारना है इसलिए स्कूल तो जाना ही होगा. यही वजह है कि बच्चे कच्चे रास्तों से होते हुए नदी पार कर स्कूल जाने को मजबूर हैं. यही हाल आम लोगों का भी नदी पार करने में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, कई बार तो जिंदगी पर ही आफत बन पड़ती है. बरसात के दिनों में हालात और खराब हो जाते हैं. इस दौरान जब किसी की तबीयत खराब होती है तो उन्हें खाट पर ही ले जाया जाता है. बरसात के दिनों में सिंदुरिया नदी में बाढ़ जैसे भयावह स्थिति होती, जिसके चलते हेसातू, भंडार समेत अन्य गांवों का संपर्क टूट जाता है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

बरसात के दिनों में लोगों के लिए नदी पार करना एक चुनौती हो जाती है. आवागमन लगभग बंद हो जाता है. अगर गांव में किसी महिला को प्रसव या इलाज के लिए ले जाना होता है तो एंबुलेंस भी गांव में नहीं आती तब फिर उन्हें खाट की डोली बनाकर नदी पार कराया जाता है. कई बार समुचित इलाज के बिना मरीज की मौत भी हो जाती है. इस मामले को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने डीसी अंजली यादव को ग्रामीणों की समस्याओं से अवगत कराया तो, उन्होंने जल्द ही हेसातू गांव में पुल का निर्माण का आश्वासन दिया है. बहरहाल, ग्रामीणों से हर बार चुनावो में नेताओं ने वादे किए योजनाओं का भरोसा भी दिया लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद आज तक वादे पूरे नहीं हुए. एक बार फिर ग्रामीणों को आश्वसन मिला है तो उन्हें उम्मीद है कि इस बार विकास की किरण उन तक जरूर पहुंचेगी.

Last Updated : Mar 23, 2022, 7:28 AM IST
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