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SC के फैसले से आदिवासी नाराज, कहा- वनों पर हमारा पहला हक - रांची न्यूज

13 फरवरी 2019 सुप्रीम कोर्ट के द्वरा दिए गए फैसले का झारखंड के आदिवासी नाराज हैं. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार नहीं है, इसकी मूल भावना से छेड़छाड़ की गई है. इससे झारखंड समेत देश के 11 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे.

आदिवासी संगठनों का राजभवन घेराव.
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Published : Feb 27, 2019, 7:30 PM IST


रांची: 13 फरवरी 2019 सुप्रीम कोर्ट के द्वरा दिए गए फैसले का झारखंड के आदिवासी नाराज हैं. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार नहीं है, इसकी मूल भावना से छेड़छाड़ की गई है. इससे झारखंड समेत देश के 11 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे.

आदिवासी संगठनों का राजभवन घेराव.

प्रदर्शनकारियों की माने तो केंद्र सरकार ने जानबूझकर सर्वोच्य न्यायालय के समक्ष गंभीरता से अपना पक्ष नहीं रखा. झारखंड सरकार जंगल के सामूहिक भूमि को भूमि बैंक में अधिसूचित कर लोगों के जीवन यापन को प्रभावित करने की साजिश कर रही है. इसके तहत जल जमीन अधिकार पदयात्रा हजारीबाग निकलकर राजभवन तक पहुंची. जहां राजभवन घेराव कर अपनी आवाज बुलंद की इस दौरान उन्होंने सरकार विरोधी नारे भी लगाये.

आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसले को निरस्त नहीं किया गया तो आगे आदिवासी संगठन बृहद रूप से आंदोलन करेंगे. झारखंड में वनों पर बसने वाले आदिवासी-मूलवासियों का अधिकार है उन्हें इससे वंचित नहीं किया जाए. साथ ही वनों में रहने वाले आदिवासी मूल वासियों को जमीन का पट्टा अविलंब दिया जाए.


रांची: 13 फरवरी 2019 सुप्रीम कोर्ट के द्वरा दिए गए फैसले का झारखंड के आदिवासी नाराज हैं. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार नहीं है, इसकी मूल भावना से छेड़छाड़ की गई है. इससे झारखंड समेत देश के 11 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे.

आदिवासी संगठनों का राजभवन घेराव.

प्रदर्शनकारियों की माने तो केंद्र सरकार ने जानबूझकर सर्वोच्य न्यायालय के समक्ष गंभीरता से अपना पक्ष नहीं रखा. झारखंड सरकार जंगल के सामूहिक भूमि को भूमि बैंक में अधिसूचित कर लोगों के जीवन यापन को प्रभावित करने की साजिश कर रही है. इसके तहत जल जमीन अधिकार पदयात्रा हजारीबाग निकलकर राजभवन तक पहुंची. जहां राजभवन घेराव कर अपनी आवाज बुलंद की इस दौरान उन्होंने सरकार विरोधी नारे भी लगाये.

आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसले को निरस्त नहीं किया गया तो आगे आदिवासी संगठन बृहद रूप से आंदोलन करेंगे. झारखंड में वनों पर बसने वाले आदिवासी-मूलवासियों का अधिकार है उन्हें इससे वंचित नहीं किया जाए. साथ ही वनों में रहने वाले आदिवासी मूल वासियों को जमीन का पट्टा अविलंब दिया जाए.

Intro:रांची

बाइट---आदिवासी संगठन
बाइट---आदिवासी संगठन
बाइट---आदिवासी संगठन
बाइट---आदिवासी संगठन


13 फरवरी 2019 सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर झारखंड के तमाम आदिवासी संगठन विरोध शुरू कर दिया है विभिन्न आदिवासी संगठनों के हजारों आदिवासी मूलवासी सड़क पर उतरकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत बता रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आदेश वन अधिकार अधिनियम 2006 के मूल्य भावना तथ्यों के विपरीत झारखंड राज्य समेत देश के 11 लाख से भी ज्यादा वन आधारित परिवार जिनकी संख्या लगभग 8 लाख है जिसे प्रभावित करने का आदेश जारी किया गया है। प्रदर्शन कर रहे हैं आदिवासी मूल निवासियों की मानें तो केंद्र सरकार ने जानबूझकर उच्च न्यायालय के समक्ष गंभीरता से अपना पक्ष नहीं रखा। झारखंड सरकार जंगल के सामूहिक भूमि को भूमि बैंक में अजीत अधिसूचित कर लोगों के जीवन यापन को प्रभावित करने का साजिश कर रही है


Body:इसी के तहत जल जमीन अधिकार पदयात्रा हजारीबाग से पदयात्रा करते हुए विभिन्न संगठनों के आदिवासी अपने पारंपरिक ढोल नगाड़े के साथ राजभवन घेराव करने के लिए पहुंचे साथ ही सरकार विरोधी नारे लगाते नजर आए इनकी माने तो केंद्र और राज्य सरकार जंगल में बसने वाले आदिवासियों की जमीन हड़पने का काम कर रही है यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण
जानकारी नहीं दी गई वन अधिकार अधिनियम 2006 के मूल्य भावना में यह सुनिश्चित है कि वनोउपज पर सामुदायिक उस जंगल ग्राम के आदिवासी मूलवासी लोगों का होगा। राज्य सरकार से यह मांग करते हैं कि वह अभिलंब माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष पूर्ण विचार याचिका दायर कर या सुनिश्चित करें कि राज्यों के सभी वंचित लगभग 18,000 आदिवासी मूलवासी परिवारों को वन अधिकार पट्टा प्रदान कर उनको जीवन बसर के साथ छेड़छाड़ ना करें



Conclusion:आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसले को निरस्त नहीं किया गया तो आगे आदिवासी संगठन बृहद रूप से आंदोलन करेगी ।झारखंड में वनों पर बसने वाले आदिवासी मूलवासी यों का अधिकार है उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जाए साथ ही वनों में रहने वाले आदिवासी मूल वासियों को को जमीन का पट्टा अविलंब दिया जाए
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