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होली विशेष: भूलने लगे हैं लोग अपनी परंपरा, जानिए क्या है लोगों की राय

होलिका दहन मनाने की परंपरा सालों से चली आ रही है. लेकिन लोगों की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण लोग अब इस परंपरा से भागने लगे हैं.

भूलने लगे हैं लोग अपनी परंपरा
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Published : Mar 17, 2019, 3:51 PM IST

रांचीः होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है. इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है. लेकिन लोग अपने इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं. अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण होलिका दहन की परंपरा से लोग भागने लगे हैं. इसके पीछे की वजह क्या है, आइए जाने लोगों की राय.

भूलने लगे हैं लोग अपनी परंपरा

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग पर्व और त्योहार के महत्व को भूलते जा रहे हैं. उनमें जानकारी का अभाव है. जब इस बारे में हमारी टीम लोगों के बीच पहुंची तो लोगों ने अपनी-अपनी राय दी. कुछ लोगों ने कहा कि जागरूकता की कमी के कारण और जानकारी के अभाव में लोग होलिका दहन जैसी परंपरा नहीं मनाते हैं.

वहीं, शास्त्रों के अनुसार होली मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं, उसकी पूजा करते हैं. इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन के कई महत्व हैं. होलिका दहन की तैयारी तो होली से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है. जिसमें लोग अपने आसपास की सुखी टहनियों, सूखे पत्ते जमा करते हैं. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है. मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान से पूजा अर्चना होती है. जिसके बाद दूसरे दिन होली मनाई जाती है.

रांचीः होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है. इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है. लेकिन लोग अपने इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं. अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण होलिका दहन की परंपरा से लोग भागने लगे हैं. इसके पीछे की वजह क्या है, आइए जाने लोगों की राय.

भूलने लगे हैं लोग अपनी परंपरा

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग पर्व और त्योहार के महत्व को भूलते जा रहे हैं. उनमें जानकारी का अभाव है. जब इस बारे में हमारी टीम लोगों के बीच पहुंची तो लोगों ने अपनी-अपनी राय दी. कुछ लोगों ने कहा कि जागरूकता की कमी के कारण और जानकारी के अभाव में लोग होलिका दहन जैसी परंपरा नहीं मनाते हैं.

वहीं, शास्त्रों के अनुसार होली मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं, उसकी पूजा करते हैं. इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन के कई महत्व हैं. होलिका दहन की तैयारी तो होली से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है. जिसमें लोग अपने आसपास की सुखी टहनियों, सूखे पत्ते जमा करते हैं. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है. मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान से पूजा अर्चना होती है. जिसके बाद दूसरे दिन होली मनाई जाती है.

Intro:रंगों का पर्व होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है ,उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है ,लेकिन लोग अपने इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं शहरी क्षेत्रों में अब इसके महत्व कम होने लगे हैं. व्यस्त दिनचर्या और परिवारों में मनमुटाव के कारण भी होलिका दहन की परंपरा से लोग भागने लगे हैं .अब होलिका दहन सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है परंपरा के प्रति रुझान कम होने लगी है आखिर इसके पीछे की वजह क्या है आइए जानते हैं लोगों से ही......


Body:जब इस मसले को लेकर हमारी टीम लोगों के बीच पहुंची तो लोगों ने अपनी अपनी राय दी ,कुछ लोगों ने तो यह भी कहा है की जागरूकता की कमी के कारण और जानकारी के अभाव में लोग होलिका दहन जैसी परंपरा नहीं मनाते हैं ,तो सबसे पहले हम आपको जानकारी दे दे कि आखिर होलिका दहन है क्या ?
शास्त्रों के अनुसार होली उत्सव मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं और पूजा करते हैं और इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है, होलिका दहन का कई महत्व है , होलिका दहन की तैयारी तो होली से 40 दिन पहले शुरू हो जाती है ,जिसमें लोग अपने आसपास के सुखी टहनियों ,सूखे पत्ते एकत्रित करते हैं फिर फाल्गुन पूर्णिमा के संध्या को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान और पूजा अर्चना होती है .दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले शरीर में अग्नि के भस्म लगाते हैं और स्नान करते हैं, होलिका दहन दर्शाती है आपकी मजबूत इच्छाशक्ति को जो आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है .जैसे भक्त प्रल्हाद की थी .कहा जाता है कि बुराई कितने भी ताकतवर क्यों ना हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है और अच्छाई का प्रतीक होलिका दहन है .कहते हैं कि बरसों पूर्व पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप राज करता था, उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना ना करें बल्कि उसे अपना आराध्य माने .लेकिन उसका पुत्र ईश्वर का परम भक्त था उसने अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी और ईस्वर भक्ति में हमेशा लीन रहे .इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली .उसने अपनी बहन होलिका की गोद में भक्त प्रल्हाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. होलीका ने बुराई का साथ दिया इस वजह से वो अग्नि में जलकर भस्म हो गई जबकि सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन मनाते आ रहे हैं .

बाइट-1 स्थानीय

2,3,4,5


Conclusion:सार्वजनिक होलिका दहन का कई महत्व है.घर के बाहर सार्वजनिक रूप से होलिका दहन मनाने की परंपरा बदस्तूर चली आ रही है ,लेकिन समय बदला ,दिन बदला और लोगों की दिनचर्या भी बदलती गई और इसी वजह से लोग अब इस परंपरा से भागने लगे हैं वेस्टर्न कल्चर हावी हो चला है ,लोग एकल परिवार में रहना पसंद करते हैं, संयुक्त परिवार से दूर भाग रहे हैं ऐसी कई वजह है आज की यह परंपरा सिर्फ खानापूर्ति बनकर रह गई है .अब पहले जैसा बात इस पर्व में भी नहीं रहा, यह लोग भी मानते हैं.
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