रांची: लुप्तप्राय भाषाओं और संस्कृतियों के बचाव को लेकर राजधनी के डीएसपीएमयू में अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. यह कार्यशाला डीएसपीएमयू, लंदन यूनिवर्सिटी और कील यूनिवर्सिटी जर्मनी ने संयुक्त रूप से आयोजित की थी. कार्यशाला लोगों की कम मौजूदगी देखकर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू काफी दुखी हुईं.
डीएसपीएमयू कैंपस में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में देश-विदेश के भाषा विशेषज्ञ शामिल हुए. साथ ही मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू पहुंची. गौरतलब है कि 14 अप्रैल से राजधानी रांची के डीएसपीएमयू में राम दयाल मुंडा जनजाति कल्याण शोध संस्थान, लंदन विश्वविद्यालय और जर्मनी के कील विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 10 दिवसीय लुप्त प्राय भाषा प्रलेखन और भाषा बचाओ अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है. जहां झारखंड के तमाम आदिम जनजातियों से जुड़े भाषाओं के संरक्षण को लेकर विशेष विचार विमर्श किया जाएगा.
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के दौरान देश-विदेश के कई भाषा विशेषज्ञों के साथ-साथ लंदन, जर्मनी, फ्रांस से भी प्रतिनिधि पहुंचे. अनुसूचित जनजाति विभाग के सचिव हिमानी पांडे, लंदन विश्वविद्यालय के मंडाना सैफईधिनिपुर, जर्मनी कील यूनिवर्सिटी के जॉन पीटरसन भी शामिल हुए.
मौके पर वक्ताओं ने कहा कि झारखंड की भाषाओं के साथ-साथ भारत की कई ऐसी भाषा है जो विलुप्ति के कगार पर है. इन भाषाओं को बचाना और सुरक्षित रखना सभी लोगों का दायित्व बनता है. वहीं राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आज रविवार है. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती है. लोग फुर्सत में हैं, फिर भी इस कार्यशाला में बढ़-चढ़कर नहीं पहुंचे. यह दुख की बात है. अगर अपनी भाषाओं को संरक्षित करना होगा तब खुद आगे आना होगा. आज लंदन, स्पेन, जर्मनी के लोग हमारी भाषाओं को संरक्षित रखने के लिए सोच रहे हैं. लेकिन हम इस विषय मे कब सोचेंगे यह किसी ने नहीं सोचा है .