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रांची: झारखंड की कला को पहचान दिलाने की कोशिश, मोरहाबादी में लगा कलाकारों का जमावड़ा - Ramdayal Munda Tribal Research Institute

राजधानी रांची में आठ दिनों तक चलने वाले इस पारंपरिक चित्रकला कर्यक्रम में राज्यभर से कलाकार हिस्सा ले रहे हैं. जो झारखंड की कला और संस्कृती को पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे.

मोरहाबादी में लगा कलाकारों का जमावड़ा
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Published : Feb 21, 2019, 4:17 PM IST

रांची: राजधानी में इन दिनों कलाकारों का जमावड़ा लगा हुआ है. यह जमावड़ा राजधानी के मोरहाबादी स्थित रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में है. जहां राज्य की पारंपरिक लोक कलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है.

दरअसल, कोहबर और सोहराय जैसी पारंपरिक चित्रकला शैली के कलाकार यहां जुटे हैं और अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से इस कला को एक नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. आठ दिनों तक चलने वाले इस कर्यक्रम में राज्यभर से अलग-अलग उम्र के कलाकार हिस्सा ले रहे हैं.

मोरहाबादी में लगा कलाकारों का जमावड़ा
इस दौरान वरिष्ठ कलाकार दिनेश सिंह ने बताया कि राज्य की कोहबर या सोहराय कलाओं में मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, चाहे वह पेड़-पहाड़-नदियां-जानवर या आदमी हो. इसी क्रम में नया एक्सपेरिमेंट कर राज्य के वीर शहीदों के जीवन के विविध आयामों को दर्शाने की कोशिश की जा रही है.

मधुबनी पेंटिंग का उदाहरण देते हुए वरिष्ठ कलाकार ने कहा कि पहले मधुबनी पेंटिंग में भी सीमित चीजें दिखाई जाती थीं. लेकिन धीरे-धीरे अब रामचरितमानस जैसे दंत कथाओं का चित्रण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह मधुबनी पेंटिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, उसी तरह झारखंड की लोक कला को भी पहचान दिलाने का यह प्रयास है.

रांची: राजधानी में इन दिनों कलाकारों का जमावड़ा लगा हुआ है. यह जमावड़ा राजधानी के मोरहाबादी स्थित रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में है. जहां राज्य की पारंपरिक लोक कलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है.

दरअसल, कोहबर और सोहराय जैसी पारंपरिक चित्रकला शैली के कलाकार यहां जुटे हैं और अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से इस कला को एक नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. आठ दिनों तक चलने वाले इस कर्यक्रम में राज्यभर से अलग-अलग उम्र के कलाकार हिस्सा ले रहे हैं.

मोरहाबादी में लगा कलाकारों का जमावड़ा
इस दौरान वरिष्ठ कलाकार दिनेश सिंह ने बताया कि राज्य की कोहबर या सोहराय कलाओं में मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, चाहे वह पेड़-पहाड़-नदियां-जानवर या आदमी हो. इसी क्रम में नया एक्सपेरिमेंट कर राज्य के वीर शहीदों के जीवन के विविध आयामों को दर्शाने की कोशिश की जा रही है.

मधुबनी पेंटिंग का उदाहरण देते हुए वरिष्ठ कलाकार ने कहा कि पहले मधुबनी पेंटिंग में भी सीमित चीजें दिखाई जाती थीं. लेकिन धीरे-धीरे अब रामचरितमानस जैसे दंत कथाओं का चित्रण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह मधुबनी पेंटिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, उसी तरह झारखंड की लोक कला को भी पहचान दिलाने का यह प्रयास है.

Intro:रांची। प्रदेश की राजधानी रांची में इन दिनों कलाकारों का जमावड़ा लगा हुआ है। यह जमावड़ा राजधानी के मोराबादी स्थित रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में लगा है। जहां राज्य की पारंपरिक लोक कलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है। दरअसल कोहबर और सोहराय जैसी पारंपरिक चित्रकला शैली के कलाकार यहां जुटे हैं और अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से इस कला को एक नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं।


Body:आठ दिनों तक चलने वाले इस कर्यक्रम में राज्यभर से अलग अलग उम्र के कलाकार हिस्सा ले रहे हैं। इस बाबत वरिष्ठ कलाकार दिनेश सिंह ने बताया की राज्य की कोहबर या सोहराय कलाओं में मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, चाहे वह पेड़-पहाड़-नदियां-जानवर या आदमी हो। इस शैली में नया एक्सपेरिमेंट कर राज्य के वीर शहीदों के जीवन के विविध आयामों को दर्शाने की कोशिश की जा रही है। मधुबनी पेंटिंग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले मधुबनी पेंटिंग में भी सीमित चीजें दर्शाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे उसमें अब रामचरितमानस जैसे दंत कथाओं का चित्रण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरह मधुबनी पेंटिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है उसी तरह झारखंड की लोक कला को भी पहचान दिलाने का यह प्रयास है।


Conclusion:15 फरवरी से शुरू हुए इस कलाकरों के समागम में हिस्सा ले रही बिपाशा कुमारी और सावित्री कुमारी ने बताया कि वह अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से बिरसा मुंडा के जीवन के विभिन्न दृष्टांतों को प्रदर्शित करने की कोशिश कर रही हैं। प्रदेश के अलग अलग जिलों से आये कलाकार 22 तक चलने वाले इस समागम में अपने रंग और ब्रश से झारखण्ड की लोक चित्रकारी को प्रदर्शित करेंगे।
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