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बतख बदल सकता है आपकी किस्मत, जानिए कैसे कमाएं दोहरा लाभ

बोकारो को तालाबों का शहर कहे तो गलत नहीं होगा. जहां बतख पालन अपने आप में फायदेमंद व्यवसाय साबित हो सकता है. एक ओर बतख पालन मुर्गी पालन से आसान है तो दूसरी ओर ये सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. बतख पालन से मछली पालन में भी सहायता मिलती है.

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Published : Jun 28, 2019, 3:37 PM IST

Updated : Jun 28, 2019, 6:41 PM IST

बतख पालन करते ग्रामीण

बोकारोः जिले में बतख पालन आय का एक बड़ा साधन हो सकता है. यहां बंगाली संस्कृति होने की वजह से तालाब का प्रचलन ज्यादा है. जिले में एक अनुमान के मुताबिक 5 हजार से ज्यादा तालाब हैं, जिनमें बड़े स्तर पर बतख पालन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. पिंड्राजोरा की बाउरी बस्ती में कई ऐसे परिवार हैं जो आसपास के छोटे-छोटे नाली, पोखर और तालाब में बतख पालन कर अपना घर चला रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

मुर्गी पालन से ज्यादा आसान है गांवों में बतख पालना
बतख पालन मुर्गी पालन के मुकाबले कम जोखिम वाला काम होता है. इसके मांस और अंडे रोग प्रतिरोधी होने की वजह से ज्यादा पसंद किए जाते हैं. इसका मांस प्रोटीन से भरपूर होता है. बत्तखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर भी बहुत कम है. बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह की जरूरत होती है. जो गांव में आसानी से मिल जाता है. इसके साथ ही तालाब या पोखर के गड्ढे चाहिए होते हैं. बत्तखों को तैरने के लिए जगह मिलती है तो उनका खूब विकास होता है.

ये भी पढ़ें- रामगढ़ में सनकी पति की करतूत, पत्नी को चाकू से किया घायल, फिर जख्मों पर छिड़का नमक

बतख पालन से मिलता है दोहरा लाभ, सेहत के लिए भी फायदेमंद
मछली पालन के साथ बतख पालन से दोहरा लाभ होता है. दरअसल, तालाब के पानी में बतखें बीट करती हैं, जिससे मछलियों को खाना मिल जाता है. उन्नत किस्म की बतखें पहले साल में 200 से 250 अंडे देती हैं. बाद में इसका इस्तेमाल मांस के लिए किया जा सकता है.

बतख के अंडे 6 से 7 रुपए में बिकते है. वहीं, एक बतख 200 से 250 तक में बिकता है. बतख ना केवल आर्थिक लाभ देता है बल्कि ये सफाई बनाए रखने में भी योगदान देता है. मात्र 5-6 बतखें बड़े-बड़े तालाब के आसपास के मच्छरों के अंडों को खा जाती है. इस तरह यह हमारे सेहत के लिए भी लाभदायक है.

तालाबों से भरे बोकारो जिले में बड़े पैमाने पर बतख पालन किया जा सकता है. बोकारो के डीडीसी रवि रंजन मिश्रा ने बताया की सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए जिले में बतख पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके बावजूद जमीनी स्तर पर सेल्फ हेल्प ग्रुप का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखता है. यही वजह है ये फायदेमंद रोजगार बहुत ही छोटे स्तर पर किया जा रहा है.

बोकारोः जिले में बतख पालन आय का एक बड़ा साधन हो सकता है. यहां बंगाली संस्कृति होने की वजह से तालाब का प्रचलन ज्यादा है. जिले में एक अनुमान के मुताबिक 5 हजार से ज्यादा तालाब हैं, जिनमें बड़े स्तर पर बतख पालन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. पिंड्राजोरा की बाउरी बस्ती में कई ऐसे परिवार हैं जो आसपास के छोटे-छोटे नाली, पोखर और तालाब में बतख पालन कर अपना घर चला रहे हैं.

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मुर्गी पालन से ज्यादा आसान है गांवों में बतख पालना
बतख पालन मुर्गी पालन के मुकाबले कम जोखिम वाला काम होता है. इसके मांस और अंडे रोग प्रतिरोधी होने की वजह से ज्यादा पसंद किए जाते हैं. इसका मांस प्रोटीन से भरपूर होता है. बत्तखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर भी बहुत कम है. बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह की जरूरत होती है. जो गांव में आसानी से मिल जाता है. इसके साथ ही तालाब या पोखर के गड्ढे चाहिए होते हैं. बत्तखों को तैरने के लिए जगह मिलती है तो उनका खूब विकास होता है.

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बतख पालन से मिलता है दोहरा लाभ, सेहत के लिए भी फायदेमंद
मछली पालन के साथ बतख पालन से दोहरा लाभ होता है. दरअसल, तालाब के पानी में बतखें बीट करती हैं, जिससे मछलियों को खाना मिल जाता है. उन्नत किस्म की बतखें पहले साल में 200 से 250 अंडे देती हैं. बाद में इसका इस्तेमाल मांस के लिए किया जा सकता है.

बतख के अंडे 6 से 7 रुपए में बिकते है. वहीं, एक बतख 200 से 250 तक में बिकता है. बतख ना केवल आर्थिक लाभ देता है बल्कि ये सफाई बनाए रखने में भी योगदान देता है. मात्र 5-6 बतखें बड़े-बड़े तालाब के आसपास के मच्छरों के अंडों को खा जाती है. इस तरह यह हमारे सेहत के लिए भी लाभदायक है.

तालाबों से भरे बोकारो जिले में बड़े पैमाने पर बतख पालन किया जा सकता है. बोकारो के डीडीसी रवि रंजन मिश्रा ने बताया की सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए जिले में बतख पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके बावजूद जमीनी स्तर पर सेल्फ हेल्प ग्रुप का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखता है. यही वजह है ये फायदेमंद रोजगार बहुत ही छोटे स्तर पर किया जा रहा है.

Intro:बोकारो जिले में बतख पालन आय का एक बड़ा साधन हो सकता है। यहां बंगाली संस्कृति होने की वजह से तालाब का प्रचनन ज्यादा है। जिले में एक अनुमान के मुताबिक 5000 से ज्यादा तालाब हैं। जिनमें बड़े स्तर पर बतख पालन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पिंड्राजोरा की बाउरी बस्ती में कई ऐसे परिवार हैं जो आसपास के छोटे-छोटे नाली, पोखरा और तालाब में बत्तख पालन कर अपना घर चला रहे हैं। बतख पालन मुर्गी पालन के मुकाबले कम जोखिम वाला होता है। इसके मांस और अंडे रोग प्रतिरोधी होने की वजह से ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इसका मांस प्रोटीन से भरपूर होता है। तो वहीं बत्तखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर भी बहुत कम है।


Body: बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह की जरूरत होती है। जो गांव में आसानी से मिल जाता है। इसके साथ ही इसके लिए तालाब पोखर के गड्ढे चाहिए होते हैं। बत्तखों को तैरने के लिए जगह मिलता है उनका खूब विकास होता है। बतख पालन के साथ दोहरा लाभ होता है। इसके पालन के साथ मछली पालन भी फायदेमंद होता है। जानकार बताते हैं जिस तालाब में बतख तैरती है उसमें अगर मछली पालन किया जाए तोएक साथ 2 गुना लाभ होता है। दरअसल जब तालाब के पानी में बतखें बीट करती है तो उससे मछलियों को खाना मिल जाता है। उन्नत किस्म की बतखें पहले साल में 200 से 250 सौ अंडे देती है। बाद में इसका इस्तेमाल मांस के लिए किया जा सकता है। इसके अंडे 6 से 7 रूपों में बिकते हैं । तो वही एक बतख 200 से ढाई सौ तक में। बतख ना केवल आर्थिक लाभ देता है, बल्कि यह सफाई बनाए रखने में भी योगदान देता है । मात्र 5-6 बतखें बड़े बड़े तालाब के आसपास के मच्छरों के अंडे को खा जाती है। इस तरह यह इंसानों की सेहत के लिए भी लाभदायक हैं।


Conclusion:तालाब प्रधान जिला होने की वजह से बोकारो में बड़े पैमाने पर बतख पालन किया जा सकता है। बोकारो के डीडीसी रवि रंजन मिश्रा ने बताया की सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से जिले में बतख पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन जमीन पर सेल्फ हेल्प ग्रुप का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखता है। यही वजह है यह फायदेमंद रोजगार बहुत ही छोटे स्तर पर किया जा रहा है।

बाईट
ग्रामीण
किरण बाउरी, समाजसेवी
रवि रंजन मिश्रा, डीडीसी बोकारो
Last Updated : Jun 28, 2019, 6:41 PM IST
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