बोकारोः जिले में बतख पालन आय का एक बड़ा साधन हो सकता है. यहां बंगाली संस्कृति होने की वजह से तालाब का प्रचलन ज्यादा है. जिले में एक अनुमान के मुताबिक 5 हजार से ज्यादा तालाब हैं, जिनमें बड़े स्तर पर बतख पालन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. पिंड्राजोरा की बाउरी बस्ती में कई ऐसे परिवार हैं जो आसपास के छोटे-छोटे नाली, पोखर और तालाब में बतख पालन कर अपना घर चला रहे हैं.
मुर्गी पालन से ज्यादा आसान है गांवों में बतख पालना
बतख पालन मुर्गी पालन के मुकाबले कम जोखिम वाला काम होता है. इसके मांस और अंडे रोग प्रतिरोधी होने की वजह से ज्यादा पसंद किए जाते हैं. इसका मांस प्रोटीन से भरपूर होता है. बत्तखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर भी बहुत कम है. बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह की जरूरत होती है. जो गांव में आसानी से मिल जाता है. इसके साथ ही तालाब या पोखर के गड्ढे चाहिए होते हैं. बत्तखों को तैरने के लिए जगह मिलती है तो उनका खूब विकास होता है.
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बतख पालन से मिलता है दोहरा लाभ, सेहत के लिए भी फायदेमंद
मछली पालन के साथ बतख पालन से दोहरा लाभ होता है. दरअसल, तालाब के पानी में बतखें बीट करती हैं, जिससे मछलियों को खाना मिल जाता है. उन्नत किस्म की बतखें पहले साल में 200 से 250 अंडे देती हैं. बाद में इसका इस्तेमाल मांस के लिए किया जा सकता है.
बतख के अंडे 6 से 7 रुपए में बिकते है. वहीं, एक बतख 200 से 250 तक में बिकता है. बतख ना केवल आर्थिक लाभ देता है बल्कि ये सफाई बनाए रखने में भी योगदान देता है. मात्र 5-6 बतखें बड़े-बड़े तालाब के आसपास के मच्छरों के अंडों को खा जाती है. इस तरह यह हमारे सेहत के लिए भी लाभदायक है.
तालाबों से भरे बोकारो जिले में बड़े पैमाने पर बतख पालन किया जा सकता है. बोकारो के डीडीसी रवि रंजन मिश्रा ने बताया की सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए जिले में बतख पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके बावजूद जमीनी स्तर पर सेल्फ हेल्प ग्रुप का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखता है. यही वजह है ये फायदेमंद रोजगार बहुत ही छोटे स्तर पर किया जा रहा है.