बोकारो: घना जंगल, चारों ओर पहाड़ी और बीच में स्कूल. सुनने में कैसा अच्छा लगता है कि ऐसे प्राकृतिक वातावरण में पढ़ने और रहने में कितने आनंद की अनुभूति होती होगी, लेकिन अब विचार कीजिए कि जंगलों के बीच स्थित इस स्कूल की घेराबंदी नहीं की गई है. स्कूल में जंगली जानवर घुस जाते हैं. जंगलों में रेंगने वाले विषधर स्कूल के क्लासों में पहुंच जाते हैं. स्कूल में ये सब देखकर जब गला प्यास से सूख जाता है तो यहां पीने के लिए पानी भी नहीं मिलता क्योंकि उसकी कोई व्यवस्था नहीं है.
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ऐसी डरावनी जगह क्या कोई बच्चा पढ़ना चाहेगा. लेकिन झारखंड के बोकारो जिले के एक स्कूल के कुछ बच्चे बहादुर हैं, या कह लें मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे ही एक स्कूल में पढ़ाई करने रोज जानी पढ़ती है. उनकी समस्याओं को लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
नव प्राथमिक विद्यालय का है ये हाल: दरअसल, यहां जिले के चंद्रपुरा प्रखंड के करमाटांड़ पंचायत में स्थित एक नव प्राथमिक विद्यालय की बात की जा रही है, जो परसाडीह गांव के पीछे पहाड़ी जंगलों में स्थित है. उस स्कूल में एक नहीं कई समस्याएं हैं. एक तो स्कूल में चाहरदीवारी नहीं है, दूसरे आने-जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है. इसके साथ ही पीने के पानी की भी उचित व्यवस्था नहीं है. यहां एक चापानल है, जिसमें से हमेशा गंदा पानी निकलता रहता है. यह पानी पीकर बच्चे बीमार पड़ते रहते हैं. रसोइये भी इसी पानी से खाना पकाते हैं, इसके अलावा उनके पास कोई उपाय भी नहीं है. इतना ही नहीं इस स्कूल के आसपास खूंखार सियार भी घूमते रहते हैं. साथ ही विषधर भी आसपास घूमते रहते हैं.
50 बच्चे रोज जाते हैं स्कूल: इस विद्यालय में 50 छोटे-छोटे बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं. ऐसे में इन बच्चों की पढ़ाई खतरे में है. विद्यालय में मात्र दो शिक्षक हैं. विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमाशंकर महतो कहते हैं कि अगर हमारे विद्यालय में पक्की सड़क, चाहरदीवारी और समुचित जल प्रबंधन हो तो समस्या काफी हद तक हल हो जायेगी. इन समस्याओं को देखते हुए कई माता-पिता अपने बच्चों को यहां नहीं भेजते हैं. उन्होंने बताया कि इन समस्याओं से उन्होंने कई बार जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया है, बावजूद इसके उनकी समस्याएं हल नहीं हो पाईं हैं.
सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि छह से आठ माह पूर्व राज्य के दिवंगत शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो का आवास भी इसी प्रखंड क्षेत्र में पड़ता था, फिर भी यह विद्यालय उपेक्षित रहा है. जिले के चंद्रपुरा प्रखंड का यह विद्यालय 'चिराग तले अंधेरा' वाली कहावत को चरितार्थ करता है.