बोकारो: जिला के नावाडीह प्रखंड में स्थित भेंडरा सहयोग समिति के सचिव सह मुखिया नरेश विश्वकर्मा 11 मार्च को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेंगे. दरअसल, दिल्ली में हो रहे इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुरेवदेध के विभिन्न हिस्सों के विश्वकर्मा समाज के 12 लोगों से मुलाकात करेंगे. उन्हीं 12 लोगों में एक हैं झारखंड के नरेश विश्वकर्मा. पीएम मोदी इन लोगों से उनके गांव और समाज के कामयाबी की जानकारी लेंगे.
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जीविका का साधन है लोहे के सामान बनाना: लगभग 8 हजार की आबादी वाले भेंडरा गांव में आजीविका का एकमात्र साधन लोहे के सामान बनाना है. यहां 150 लोहे के कुटीर उद्योग हैं, जिसमें 500 लोग काम करते हैं. लगभग 3 करोड़ रुपए महीने का कारोबार होता है. इस गांव में विश्वकर्मा समाज के लोगों की आबादी आधे से अधिक है. लोहे के कृषि उपकरण के अलावा तलवार, गुप्ती चाकू आदि का निर्माण किया जाता है. यहां रेलवे के लिए बॉल पीन हैमर और साबल बनते हैं. कोयला कंपनी सीसीएल और बीसीसीएल के लिए गैंता, साबल, कोल कटिंग फिक्स मशीन में लगने वाले सामान भी बनाए जाते हैं. साथ ही सेना में भी गैंता, फावड़ा-कुदाल की सप्लाई होती है.
ब्रिटिश सरकार भी बनवाती थी सामान: अंग्रेजों के शासनकाल में यहां बने बॉल पीन हैमर की काफी डिमांड थी क्योंकि वह पहले सिर्फ इंग्लैंड से ही बनकर आता था, लेकिन यहां के कारीगरों ने उसे बना दिया था. ब्रिटिश सरकार यहां ऑर्डर देकर समान बनवाती थी. यहां के कारीगरों के सामान नई दिल्ली के प्रगति मैदान में लगनेवाले वर्ल्ड ट्रेड फेयर तक में प्रदर्शित हो चुके हैं. ब्रांडेड कंपनियों के मुकाबले इनके माल सस्ते और ज्यादा कारगर होने के कारण इन्हें वहां भी सराहना मिल चुकी है.
ग्रामीणों की खासियत: बताया जाता है कि 1537 में शेरशाह सूरी को अपनी सेना के लिए हथियारों की जरूरत थी. चूंकि, यह गांव जीटी रोड से सटा हुआ है. तभी शेरशाह सूरी ने भेंडरा को सुरक्षित और परिवहन के लिए सही जगह मानकर लोहे से हथियार बनाने वाले लोगों को यहां बसाया था. उस समय यहां उनकी सेना के लिए ढाल, बरछी, भाला, तलवार, आदि कई हथियार बनाए जाते थे. ब्रिटिश सरकार ने हुनर को देखकर ही 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेल के विस्तार के लिए लोहे का सामान बनवाया था. कहते हैं कि भंडरा के ग्रामीण इतने प्रतिभाशाली थे कि वे विदेशी उपकरणों का नमूना देखकर उसे बना देते थे. यही कारण है कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इंजीनियरिंग टूल्स बनाने के भी ऑर्डर दिये थे.
शेफील्ड ऑफ झारखंड के नाम से है शुमार: 1956 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लौह उद्योग की संभावना तलाशने को इंग्लैंड की फोर्ड फाउंडेशन टीम को भेंडरा भेजा था. टीम ने ग्रामीणों के काम और व्यवसाय को देख इसे शेफिल्ड ऑफ बिहार की उपाधि दी. अब इसे शेफील्ड ऑफ झारखंड कहा जाता है.