बोकारो: वर्ष 2005 में हारू रजवार के विधायिकी कार्यकाल से लेकर 2009 में उमाकांत रजक और 2014 से अब तक अमर बाउरी के विधायिकी कार्यकाल के दौरान माननीयों की विधायक निधि से डेढ़ दर्जन से अधिक एंबुलेंस वाहनों की खरीदारी हुई. ताकि क्षेत्र की जनता को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराई जा सके. इन डेढ़ दर्जन एंबुलेंस में कई बेकार पड़ी है तो कई लापता हो चुके हैं.
दो एंबुलेंस के भरोसे ही टिकी स्वास्थ्य सेवा
झारखंड सरकार की ओर से वर्ष 2015 में प्रखंड कार्यालय को प्रदत्त एंबुलेंस का लेखाजोखा भी अब कार्यालय के पास नहीं है. जिसे संचालित करने को कार्यालय के नजारथ के अधीन रखा गया था. जो अब कहां से संचालित होता ये मातहतों को भी नहीं पता. वहीं राज्य सरकार की ओर से सीएचसी चंदनकियारी को प्रदत्त 108 सेवा, दो एंबुलेंस के भरोसे ही टिकी है. वहीं 108 एंबुलेंस की व्यस्तता और मरम्मती कार्य के दौरान लोग प्राइवेट वाहनों या फिर बाइक का सहारा लेने को मजबूर हैं. ऐसे में विधायक निधि से खरीदी गई एंबुलेंस में सरकार का करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी इसकी उपयोगिता नदारद है.
किसी के पास कोई लेखाजोखा नहीं
इन एंबुलेंस का जिम्मा और लेखाजोखा किसी अस्पताल या सरकारी कार्यालय के पास नहीं है. बल्कि इसे किसी निजी संस्था या व्यक्तियों के हाथों सौंपकर जवाबदेही से पल्ला झाड़ लिया जाता है. इस संबंध में पूछने पर सीएचसी प्रभारी डॉ श्रीनाथ ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से प्रदत्त 108 एंबुलेंस के अलावे कोई भी एंबुलेंस की जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन को कभी नहीं दी गई. वहीं बीडीओ वेदवंती कुमारी ने भी एंबुलेंस वाहनों के संचालन की जिम्मेवारी के प्रति अनभिज्ञता जाहिर की. बता दें कि माननीयों की ओर से अपने निधि से क्रय की गई एंबुलेंस की सेवा इस कोरोना संकटकाल के दौरान अगर सुचारू रूप से ग्रामीणों को मिलती तो शायद कोरोना की लड़ाई थोड़ी आसान हो सकती थी.