रांची: युवा दारोगा रांची पुलिस में अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं. युवाओं को मौका देने को लेकर कई थानों में नए बैच के जूनियर पुलिस अफसरों को जिम्मेदारी दी गई. लेकिन उनमें से अधिकांश इस जिम्मेदारी को निभा नहीं पाए. कुछ इतने बदनाम हुए कि उन्हें थाने जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया. तो वहीं, कई पर विभागीय कार्रवाई भी शुरू हो गई.
थानेदार के रूप में मिली जगह पर नहीं संभाल पाए थाना
राजधानी में वैसे तो अधिकांश थाने इंस्पेक्टर थाने हैं जिनमें अभी भी 1994 और साल 2012 बैच के दारोगा थानेदारी कर रहे हैं. लेकिन युवाओं को मौका मिले ताकि भविष्य में वह बड़ी जिम्मेदारी संभाल सके, इसके लिए राजधानी में साल 2018 बैच के कई दारोगा को थाना चलाने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन अधिकांश नए दारोगा जिमेदारियों पर खरा नहीं उतर पाए. पिछले 2 वर्षों में 1 दर्जन से अधिक नए दरोगा को थाना चलाने का मौका मिला. लेकिन दो-तीन को छोड़ कोई भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाया और उन्हें हटा दिया गया.
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एक हफ्ते पहले एक साथ हटे तीन थानेदार
काम में लापरवाही बरतने के आरोप में रांची के नरकोपी, बुढ़मू और तमाड़ थानेदार को एक ही दिन यानी 18 सितंबर को लाइन क्लोज कर दिया गया. रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र कुमार झा ने बड़ी उम्मीद के साथ इसी वर्ष तीनों को थाना चलाने की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन तीनों पर कई गंभीर आरोप लगे और आखिरकार उन्हें लाइन क्लोज होना पड़ा.
किस पर क्या था आरोप
तमाड़ के थाना प्रभारी रहे प्रेम प्रकाश पर यह आरोप लगा था कि वे अधिवक्ता हत्याकांड से जुड़े अपराधियों गिरफ्तार करने के लिए सीनियर अधिकारियों के किसी भी दिशानिर्देश का पालन नहीं करते थे इस वजह से उन्हें लाइन क्लोज किया गया. वहीं, बुढ़मू थाना के प्रभारी रहे नवीन कुमार को गंभीर आरोपों के कारण लाइन क्लोज किया गया, नवीन पर यह आरोप था कि उन्होंने एक हत्या के मामले को दबाने के लिए उसे दुर्घटना का रूप दे दिया. मामले में जांच के बाद नवीन कुमार को लाइन क्लोज किया गया.
वहीं, नरकोपी थानेदार संजय कुमार पर भी बेहद गंभीर आरोप लगे. संजय के ऊपर यह आरोप था कि उन्होंने दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी को बचाने के लिए पैसे लेकर उसके पक्ष में काम किया. हालांकि, जब अधिकारियों का दबाव पड़ा तब उन्होंने उसे जेल भेजा लेकिन केस के अनुसंधान में लापरवाही बरतने के आरोप में उन्हें भी लाइन क्लोज कर दिया गया. राजधानी में इस तरह के कई मामले हैं जिनकी वजह से युवा दरोगा बदनाम हो रहे हैं. हालांकि, कई ऐसे दरोगा भी हैं जो बेहद ईमानदारी और संजीदगी से थानेदारी कर रहे हैं, उन पर किसी भी तरह का आरोप तक नहीं लगा है लेकिन ऐसे दारोगा की संख्या काफी कम है.
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अब तक बोलती है 1994 बैच की तूती
संयुक्त बिहार झारखंड के समय साल 1994 में बड़ी संख्या में दरोगा के पद पर बहाली हुई थी. साल 2000 में बिहार से झारखंड अलग हुआ उस दौरान 1994 बैच के दरोगा ही सभी थानों में पदस्थापित थे. यह सिलसिला साल 2012 तक चला, क्योंकि झारखंड अलग होने के बाद 12 सालों तक दरोगा बहाली की एक भी परीक्षा नहीं हो पाई. आखिरकार 2012 में झारखंड राज्य को पहला दरोगा का बैच मिला. इसके बाद साल 2018 में दूसरा बैच दरोगा का मिला. झारखंड की राजधानी में अभी भी अधिकांश थानों के प्रभारी 1994 बैच के अधिकारी संभाल रहे हैं.
हर जूनियर अफसर नही बेईमान
रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र कुमार झा के अनुसार ऐसा नहीं है कि हर जूनियर अफसर काबिल नहीं है. कई जूनियर अफसर बेहद अच्छा काम कर रहे हैं. बड़े मामलों में मेहनत कर कामयाबी हासिल कर रहे हैं और उनकी यह रणनीति है कि युवा और अनुभवी दोनों को मौका मिले. हालांकि, ये भी सही है कि कुछ लोगों के खिलाफ कई तरह के आरोप लगे और उन्हें उसका भुगतान भी करना पड़ा.