नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि 2022 के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. सिद्धि का अर्थ अलौकिक शक्ति और दात्री का अर्थ दाता या प्रदान करने वाली होता है. सिद्धिदात्री का यह स्वरुप सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला होता है. इस रूप में मां कमल पर विराजमान हैं. माता के चार हाथ हैं.
उनके चारों हाथों में कमल, गदा, चक्र और शंख धारण करती है. माता का वाहन सिंह है. माता अज्ञानता दूर करने वाली है. पुराणों के अनुसार मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से अणिमा, महिमा, गरीमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां प्राप्त होती है और असंतोष, आलस्य, ईर्ष्या, द्रेष आदि से छुटकारा मिलता है.
सिद्धिदात्री मां की पूजा विधि: सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है. मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें. रोली कुमकुम लगाएं. मां को मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें. माता सिद्धिदात्री को प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए.
मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा अतिप्रिय है. कहते हैं कि मां को इन चीजों का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं. माता सिद्धिदात्री का अधिक से अधिक ध्यान करें. मां की आरती भी करें.
कन्या पूजन अति उत्तम: ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करना अति उत्तम माना जाता है. कहते हैं कि नवरात्रि के आखिरी दिन कन्या पूजन करने से मां सिद्धिदात्री प्रसन्न होती हैं.
मां सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
सिद्धिदात्री माता की कथा: पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की पूजा करके सभी प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त किया था. उनका आधा शरीर स्त्री का हो गया था. इसीलिए उन्हें अर्ध नारेश्वेर के नाम भी जाना जाता है. एक समय पर जब सृष्टि में अंधकार छा गया था. तब एक दिव्य शक्ति ने जन्म लिया, जो महाशक्ति के आलावा कोई नहीं थी.
देवी शक्ति ने ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की त्रिमूर्ति को जन्म दिया और तीनों को दुनिया के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए अपनी भूमिकाओं को समझने की सलाह दी. उनके कहे अनुसार त्रिदेव एक महासागर के किनारे बैठ गए और कई वर्षों तक तपस्या की तब मां देवी ने सिद्धिदात्री के रूप में उन्हें दर्शन दिए और तीनों को अपनी शक्तिओं के रूप में पत्नियां दी, ताकि वो लोग उनकी मदद से सृष्टि की रचना कर सकें. धीरे-धीरे सृष्टि में सब कुछ निर्माण हुआ. इस तरह मां सिद्धिदात्री की कृपा से सृष्टि की रचना, पालन, संहार का कार्य संचालित हुआ.