रांचीः आज पेट्रोल-डीजल जीवन का अभिन्न अंग है. इसकी बढ़ती कीमत ने पूरी दुनिया को ईंधन के विकल्पों के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है. इस दिशा में कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल से लेकर बायोफ्यूल तक की गुंजाइश पर रिसर्च किए जा रहे हैं.
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कुछ ऐसा अनोखा और अद्भुत शोध रांची के विशाल कुमार गुप्ता ने भी कर दिखाया है. जिन्होंने झारखंड के तालाब में पनपने वाले शैवालों (Algae) से बायोफ्यूल यानी बायो पेट्रोल और डीजल बनाकर दुनिया के सामने एक नया विकल्प पेश किया है. ये खास शैवाल देशभर में सिर्फ झारखंड के तालाबों में ही पाए जाते हैं. जिससे झारखंड बायो पेट्रोल-डीजल बनाकर ना सिर्फ देश बल्कि दुनिया के सामने एक नयी नजीर पेश कर सकता है.
विशाल को कैसे मिला आइडिया
विशाल कुमार गुप्ता का पेट्रोलियम पदार्थों से काफी पुराना रिश्ता है. साल 1932 से उनका परिवार पेट्रोलियम से जुड़ा हुआ है. इसीलिए वो पेट्रोल-डीजल की महत्ता को विशेष रूप से समझते हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से अपने विचार साझा करते हुए बताया कि जिस प्रकार से पेट्रोल और डीजल के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे. इसी को देखते हुए उनके मन में यह ख्याल आया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए कि भारत और भारत वासियों को पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम से राहत मिल सके. इसी के साथ उन्होंने इस आविष्कार को लेकर शोध शुरू किया जो अब पूरी तरह से सफल भी हुआ है.
विशाल कुमार गुप्ता ने बीआईटी मेसरा कॉलेज से इंजीनियरिंग पास करने के बाद पेट्रोलियम कंपनी में नौकरी की. लेकिन मन में एक सोच हमेशा थी कि कैसे भारत को पेट्रोल-डीजल में आत्मनिर्भर बनाया जाए. अपने रिसर्च के दौरान उनको पता चला कि झारखंड के तालाबों में उगने वाले पौधे से ग्रीन फ्यूल बनाए जा सकते हैं जो कई मामलों में लाभदायक होगा.
उसके बाद विशाल नौकरी छोड़कर झारखंड आए और यहां के तालाबों में जाकर रिसर्च करना शुरू कर दिया. शोध के दौरान उन्होंने देखा कि तालाबों के ऊपर उगने वाले पौधे को अगर अच्छे तरीके से ट्रीट किया जाए तो इससे लाखों लीटर पेट्रोल डीजल निकाले जा सकते हैं. विशाल कुमार गुप्ता ने इसको लेकर सारी व्यवस्थाएं मजबूत की और नगर निगम के अधिकारियों से बातचीत कर अपने आविष्कार के बारे में जानकारी दी. जिसको लेकर नगर निगम और रांची के उपायुक्त ने उन्हें हर सुविधा मुहैया कराने का आश्वासन दिया और उनकी मदद करने की बात कही.
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बायो पेट्रोल-डीजल में आत्मनिर्भर बन सकता है झारखंड और देश
विशाल कुमार गुप्ता बताते हैं कि वह अपने रिसर्च के दौरान पता किए कि सिर्फ रेगिस्तानी क्षेत्रों में ही पेट्रोल और डीजल प्राप्त हो रहे हैं. वैसे ही देशों से भारत करीब 80 फीसदी पेट्रोल, डीजल या क्रूड ऑयल इंपोर्ट करता है. जिसके लिए एक बड़ी कीमत देश को चुकानी पड़ती है और इसका अतिरिक्त बोझ आम आदमी पर पड़ता है. लेकिन विशाल का मानना है कि उनके आविष्कार से भारत पेट्रोल और डीजल के मामले में आत्मनिर्भर हो सकता है. उन्होंने बताया कि उनका आविष्कार अंतिम चरण तक पहुंच गया है.
भारत सरकार के पेट्रोलियम कंजर्वेशन रिसर्च एसोसिएशन (PCRA) की तरफ से भी उन्हें इस आविष्कार की अनुमति मिल गयी है. साथ ही कई वाहन कंपनियों ने भी उनके इस आविष्कार की सराहना की है. जमशेदपुर के टाटा मोटर्स को भी उन्होंने अपने इस आविष्कार की जानकारी दी. जहां पर टाटा मोटर्स के अधिकारियों ने उनके बनाए ईंधन को प्रमाणित करते हुए कहा कि यह आविष्कार निश्चित रूप से देश में क्रांति लाएगा.
झारखंड के तालाबों में उगता है शैवाल (algae)
विशाल कुमार गुप्ता बताते हैं कि अगर झारखंड के सभी तालाबों से निकलने वाले पौधे से ग्रीन फ्यूल बनाया जाए तो एक लाख लीटर पेट्रोल-डीजल का निर्माण किया जा सकता है. इससे हजारों गाड़ियों की आवश्यकता पूरी हो सकती है और इससे हमारा वातावरण भी पूरी तरह से स्वच्छ रहेगा. उन्होंने बताया कि यह अविष्कार सिर्फ झारखंड के तालाबों में ही संभव हो सकता है बाकि देश के किसी भी जगह के तालाब में यह पौधे नहीं उगाए जा सकते हैं.
विशाल कुमार गुप्ता ने इस आविष्कार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि एक अलगाई (algae, azolla pinnato) नाम का पौधा सिर्फ झारखंड के तालाबों में ही पाया जाता है. यह एक ऐसा पौधा है जो अपने अंदर प्रचुर मात्रा में तेल रखता है. इस पौधे को तालाब से निकालकर हेक्सीन (hexene) नाम के केमिकल कंपाउंड में डालते हैं. उसके बाद उसे नामकुम के सिदरोल में बने प्लांट में ट्रीट किया जाता है, जो फिर लिक्विड फॉर्म में लिपिड (lipid) बन जाता है. इन सारी प्रक्रिया के बाद उसे अंतिम रूप बायो डीजल या बायो पेट्रोल का रूप दिया जाता है, जिसे गाड़ियों में डाला जा सकता है या फिर ईंधन के रूप में अन्य काम भी किया जा सकता है.
विशाल ने इस आविष्कार को धरातल पर उतारने के लिए पेट्रोल पंप का भी निर्माण किया है. जिससे प्रतिदिन 4000 लीटर बायो पेट्रोल-डीजल लोगों को मुहैया कराया जा सकता है. विशाल बताते हैं कि उनके इस आविष्कार से सिर्फ पेट्रोल के दाम में कमी ही नहीं आएगी बल्कि भारत सरकार को चार लाख करोड़ का मुनाफा भी होगा. इसके अलावा इससे निकलने वाले धूएं से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा. इसके अलावा जो भी मच्छर या फिर अन्य बीमारी फैलाने वाले जीव-जंतु या कीटाणु-विषाणु को भी भगाने का काम इस पेट्रोल और डीजल के धुएं से संभव हो पाएगा.
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निजी संस्था ने की मदद
विशाल कुमार गुप्ता के इस आविष्कार में मदद कर रही निजी संस्था की संचालक संगीता बदोरिया बताती हैं कि उनकी संस्था स्वच्छ पर्यावरण बढ़ावा देने के लिए पिछले कई वर्षों से काम कर रही है. इसलिए जैसे ही उन्हें पता चला कि विशाल गुप्ता नाम ने ऐसा आविष्कार किया है जो कि सिर्फ पेट्रोल-डीजल की कमी को पूरा ही नहीं कर सकता बल्कि वातावरण को भी स्वच्छ रखने में अहम योगदान निभाता है.
संस्था की संचालक बताती हैं कि पेट्रोल-पंप पर मिलने वाली पेट्रोल-डीजल से जो धुंआ निकलता है वह बहुत ही जहरीला होता है. लेकिन विशाल ने जिस तरह के ग्रीन फ्यूल का आविष्कार किया है, उससे पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है जो कि निश्चित रूप से एक बेहतर आविष्कार है. इस आविष्कार को देश के कोने कोने तक पहुंचाने के लिए उनकी संस्था जी-जान से काम कर रही है, साथ ही सरकारी स्तर पर भी मदद दिलाने का प्रयास कर रही है.
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि विशाल कुमार गुप्ता के इस आविष्कार की जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुंचायी गयी. लेकिन मुख्यमंत्री की तरफ से इसको लेकर कोई जवाब नहीं दिया गया है. हालांकि नगर निगम और अधिकारियों ने विशाल गुप्ता के इस अविष्कार की प्रशंसा की है, साथ ही हर स्तर पर मदद पहुंचाने की बात कही है.
नगर निगम की तरफ से विशाल गुप्ता को आश्वासन दिया गया है कि झारखंड के तालाबों से जितने भी पौधे की उन्हें आवश्यकता हो वह उगा सकते हैं, नगर निगम उनको हरसंभव मदद करेगा. इसको लेकर नगर निगम में जल्द ही एक प्रेजेंटेशन का आयोजन कर रहा है. जिसमें सरकार और देश के लोगों को यह बताया जाएगा कि झारखंड के विशाल कुमार गुप्ता ने एक ऐसा अविष्कार किया है जिससे देश और समाज का कल्याण हो पाएगा. अब देखना होगा कि झारखंड के इस पूत के आविष्कार से भारत और झारखंड को कितना लाभ पहुंच पाता है.