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अपनों पर मेहरबान पुलिस: विभागीय कार्रवाई से लेकर बर्खास्तगी तक लग जाते हैं पांच से दस साल

आम लोगों के लिए जहां कानूनी प्रक्रिया कछुए की चाल की तरह है. वहीं, दोषी पुलिसकर्मी पर कार्रवाई से लेकर बर्खास्तगी तक कई साल लग जाते हैं. इसी साल जनवरी में हुए सात पुलिस के जवानों की बर्खास्तगी में ऐसा ही उदाहरण सामने आया है, जिसमें विभागीय कार्रवाई शुरू होने से लेकर बर्खास्तगी तक में दस साल लग गए.

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Published : Jun 2, 2020, 2:03 AM IST

action on accused police
कॉन्सेप्ट इमेज

रांची: पुलिसकर्मियों पर होने वाली विभागीय कार्रवाई कछुए की चाल की तरह है. विभागीय कार्रवाई शुरू होने से लेकर बर्खास्तगी तक में पांच से दस साल लग जाते हैं, जबकि जांच रिपोर्ट सौंपने तक में सात से आठ साल लगते हैं. दोषी पाए जाने के बाद भी बर्खास्तगी से संबंधित फाइलें लटकी रहती है. हाल के दिनों में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का जब आंकड़ा निकला गया तब ये हकीकत सामने आई.

हर स्तर पर लटकाई जाती है फाइल

इस तरह की कार्रवाई में सबसे ज्यादा टाइम जांच स्तर पर दिया जाता है. जांच पूरी होने के बाद भी फाइलों को दबाकर रखा जाता है ताकि एसएसपी स्तर पर उन फाइलों पर हस्ताक्षर के साथ बर्खास्तगी की कार्रवाई न हो जाए. इस तरह मामलों का लटकाया जाना अब भी जारी है. इसी साल जनवरी में हुए सात पुलिस के जवानों की बर्खास्तगी में ऐसा ही उदाहरण सामने आया है, जिसमें विभागीय कार्रवाई शुरू होने से लेकर बर्खास्तगी तक में दस साल लग गए. इस दौरान कई एसएसपी बदल गए. जांच अधिकारियों का तबादला तक हो गया. अब भी कई पुलिसकर्मियों की बर्खास्तगी से संबंधित दर्जनों फाइलें कई स्तर पर लटकी हुई है.

इस रफ्तार से हुई है कार्रवाई

  • बर्खास्त जवान रणधीर कुमार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई 10 मई 2014 को शुरू हुई. मांडर सर्किल के तत्कालीन इंस्पेक्टर एमपी सिंह द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद 30 जून 2017 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में छह साल लगे.
  • सिपाही प्रेम कुमार के खिलाफ 17 जुलाई 2013 को विभागीय कार्रवाई शुरू हूई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.
  • सिपाही शशि कुमार के खिलाफ 4 मार्च 2010 को विभागीय कार्रवाई शुरू हुई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी में दस साल लग गए.
  • सुनील बारला के खिलाफ 1 जुलाई 2015 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में पांच साल लग गए.
  • परमधारी तुरी के खिलाफ 21 मार्च 2013 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.
  • अमित बाड़ा के खिलाफ 1 जून 2012 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. इंस्पेक्टर हेलन सोय की रिपोर्ट पर तीन अगस्त 2017 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में आठ साल लग गए.
  • रॉबर्ट बारला के खिलाफ 28 मार्च 2013 से मामला चल रहा था. इंस्पेक्टर विजय सिंह के जांच रिपोर्ट सौंपने के बाद दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.

ये भी पढ़ें: रिम्स में फिर दिखी डॉक्टरों की लापरवाही, परिजनों ने लगाया मरीज को इंजेक्शन

किनपर क्या है आरोप

  • बर्खास्त जवान रणधीर कुमार पर जैप-7 से प्रशिक्षण के दौरान फरार होने का आरोप है
  • सिपाही प्रेम कुमार पर अवकाश में पिछड़ने का आरोप है.
  • शशि कुमार पर ड्यूटी से फरार रहने का आरोप है.
  • सुनील बारला पर रांची जिला बल से कोडरमा जिला बल में योगदान नहीं देने का आरोप है.
  • परमधारी तुरी पर ड्यूटी से फरार रहने का आरोप है.
  • अमित बाड़ा के खिलाफ बिना किसी सूचना के कर्तव्य से फरार रहने और स्थानांतरित जिला बल गढ़वा के लिए भौतिक रूप से प्रस्थान नहीं करने का आरोप है.

रांची: पुलिसकर्मियों पर होने वाली विभागीय कार्रवाई कछुए की चाल की तरह है. विभागीय कार्रवाई शुरू होने से लेकर बर्खास्तगी तक में पांच से दस साल लग जाते हैं, जबकि जांच रिपोर्ट सौंपने तक में सात से आठ साल लगते हैं. दोषी पाए जाने के बाद भी बर्खास्तगी से संबंधित फाइलें लटकी रहती है. हाल के दिनों में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का जब आंकड़ा निकला गया तब ये हकीकत सामने आई.

हर स्तर पर लटकाई जाती है फाइल

इस तरह की कार्रवाई में सबसे ज्यादा टाइम जांच स्तर पर दिया जाता है. जांच पूरी होने के बाद भी फाइलों को दबाकर रखा जाता है ताकि एसएसपी स्तर पर उन फाइलों पर हस्ताक्षर के साथ बर्खास्तगी की कार्रवाई न हो जाए. इस तरह मामलों का लटकाया जाना अब भी जारी है. इसी साल जनवरी में हुए सात पुलिस के जवानों की बर्खास्तगी में ऐसा ही उदाहरण सामने आया है, जिसमें विभागीय कार्रवाई शुरू होने से लेकर बर्खास्तगी तक में दस साल लग गए. इस दौरान कई एसएसपी बदल गए. जांच अधिकारियों का तबादला तक हो गया. अब भी कई पुलिसकर्मियों की बर्खास्तगी से संबंधित दर्जनों फाइलें कई स्तर पर लटकी हुई है.

इस रफ्तार से हुई है कार्रवाई

  • बर्खास्त जवान रणधीर कुमार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई 10 मई 2014 को शुरू हुई. मांडर सर्किल के तत्कालीन इंस्पेक्टर एमपी सिंह द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद 30 जून 2017 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में छह साल लगे.
  • सिपाही प्रेम कुमार के खिलाफ 17 जुलाई 2013 को विभागीय कार्रवाई शुरू हूई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.
  • सिपाही शशि कुमार के खिलाफ 4 मार्च 2010 को विभागीय कार्रवाई शुरू हुई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी में दस साल लग गए.
  • सुनील बारला के खिलाफ 1 जुलाई 2015 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में पांच साल लग गए.
  • परमधारी तुरी के खिलाफ 21 मार्च 2013 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. सीसीआर के तत्कालीन डीएसपी टीके झा के रिपोर्ट सौंपने के बाद 29 अगस्त 2018 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.
  • अमित बाड़ा के खिलाफ 1 जून 2012 को विभागीय कार्रवाई शुरू की गई. इंस्पेक्टर हेलन सोय की रिपोर्ट पर तीन अगस्त 2017 को दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई 31 जनवरी 2020 को हुई. बर्खास्तगी की कार्रवाई में आठ साल लग गए.
  • रॉबर्ट बारला के खिलाफ 28 मार्च 2013 से मामला चल रहा था. इंस्पेक्टर विजय सिंह के जांच रिपोर्ट सौंपने के बाद दोषी पाया गया. बर्खास्तगी की कार्रवाई में सात साल लग गए.

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किनपर क्या है आरोप

  • बर्खास्त जवान रणधीर कुमार पर जैप-7 से प्रशिक्षण के दौरान फरार होने का आरोप है
  • सिपाही प्रेम कुमार पर अवकाश में पिछड़ने का आरोप है.
  • शशि कुमार पर ड्यूटी से फरार रहने का आरोप है.
  • सुनील बारला पर रांची जिला बल से कोडरमा जिला बल में योगदान नहीं देने का आरोप है.
  • परमधारी तुरी पर ड्यूटी से फरार रहने का आरोप है.
  • अमित बाड़ा के खिलाफ बिना किसी सूचना के कर्तव्य से फरार रहने और स्थानांतरित जिला बल गढ़वा के लिए भौतिक रूप से प्रस्थान नहीं करने का आरोप है.
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