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खूंटी विधानसभा सीट पर मुंडा परिवार का रहा है दबदबा, नीलकंठ सिंह मुंडा 15 साल से हैं विधायक - झारखंड विधानसभा चुनाव 2019

खूंटी विधानसभा सीट पर लोगों ने समय-समय पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मौका दिया है. कई दशक से इस सीट पर लोगों ने एक ही परिवार को अपना जनप्रतिनधि बनाया है. फिलहाल इस सीट से नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार तीन बार से विधायक हैं. इनके पिता मुचिराय मुंडा भी क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं.

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Published : Nov 11, 2019, 9:48 PM IST

रांची: खूंटी भगवान बिरसा मुंडा की मातृभूमि और कर्मभूमि रही है. जयपाल सिंह मुंडा, झारखंड आंदोलन से जुड़े एनइ होरो, खूंटी के गांधी कहे जानेवाले टी मुचिराय मुंडा और करिया मुंडा जैसे कई नेताओं ने खूंटी को एक अलग पहचान दिलायी है. खूंटी को अपराध के लिए जाना जाता है. कृषि प्रधान खूंटी विधानसभा क्षेत्र में 90 के दशक तक नक्सलियों का बोलबाला था. सूरज ढलते ही खूंटी की सड़कों पर गाड़ियों के पहिए थम जाया करते थे, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के कई कैंप स्थापित करने और सघन ऑपरेशन चलाने के कारण माओवादी कमजोर पड़ते गए.

देखें स्पेशल स्टोरी
यहां के कई नेता केंद्र-राज्य में रह चुके हैं मंत्री हालांकि माओवादियों से इतर स्थानीय नक्सली संगठन पीएलएफआई अब इस क्षेत्र के लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं. इस जिले में बेरोजगारी चरम पर है. पलायन भी यहां की बड़ी समस्याओं में से एक है. यही वजह है कि पूरा जिला नक्सलवाद की चपेट में है. पांच लाख से अधिक जनसंख्या वाला खूंटी 12 सितंबर 2007 को रांची से अलग होकर नया जिला बना था. यहां के कई नेता केंद्र और राज्य में मंत्री रह चुके हैं. नीलकंठ सिंह मुंडा हैं मौजूदा विधायक खूंटी विधानसभा सीट पर लोगों ने समय-समय पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मौका दिया है. कई दशक से इस सीट पर लोगों ने एक ही परिवार को अपना जनप्रतिनधि बनाया है. फिलहाल इस सीट से नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार तीन बार से विधायक हैं. इनके पिता टी मुचिराय मुंडा भी क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं. खूंटी विधानसभा सीट से 1977 में जनता पार्टी से खुदिया पाहन विधायक बनी, तो 1980 में इंदिरा कांग्रेस की टिकट पर सामू पाहन चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1985 के चुनाव में सुशीला केरकेट्टा को लोगों ने अपना आशीर्वाद दिया. सुशीला केरकेट्टा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं. उसके बाद 1990 और 1995 में सुशीला केरकेट्टा फिर से क्षेत्र की विधायक चुनी गईं, लेकिन 2000 आते ही खूंटी की फिजा ने करवटें बदली और कांग्रेस के गढ़ को इस बार ढहा दिया और इस बार खूंटी की जनता ने नीलकंठ सिंह मुंडा को अपना विधायक चुना. ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: AAP की पहली लिस्ट जारी, रांची से लड़ेंगे राजन कुमार सिंह

कांग्रेस-जेएमएम से मिलती है कड़ी टक्कर
झारखंड में साल 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में खूंटी सीट पर बीजेपी के नीलकंठ सिंह मुंडा ने कांग्रेस के रौशन कुमार सुरीन को भारी अंतर से हराया था. 2009 के चुनाव में नीलकंठ का सामना जेएमएम के मसीचरण मुंडा से हुआ था. यह कांटे की टक्कर थी. अंत में नीलकंठ को महज 436 वोट के अंतर से विजयी घोषित किया गया था. लेकिन 2014 का चुनाव आते-आते नीलकंठ सिंह मुंडा ने अपने इस क्षेत्र में ऐसी पकड़ जमायी कि तमाम विपक्षी ढेर हो गए. इस बार जेएमएम ने जीदन होरो पर दाव आजमाया था लेकिन वह नीलकंठ के सामने कहीं नहीं टिके.

21,515‬ मतों से जीते थे नीलकंठ सिंह मुंडा
2014 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा को 47,032 मत मिले थे. दूसरे नंबर पर जेएमएम के जीदर होरो को 25,517 मत मिले थे. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस सीट पर 21,515‬ मतों के अंतर से जीत हासिल की.दोनों नेताओं के उम्र में बहुत फासला नहीं है दोनों नेताओं की उम्र लगभग 50 साल है. खूंटी सीट से कुल 16 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. इन 16 लोगों में दो महिलाएं भी शामिल थीं, चुनाव से पहले आयोग की तरफ से चार लोगों का नोमिनेशन रद्द कर दिया गया. इस तरह से खूंटी के रण में 12 प्रत्याशी मैदान में बचे. इसमें से 10 उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई.

रांची: खूंटी भगवान बिरसा मुंडा की मातृभूमि और कर्मभूमि रही है. जयपाल सिंह मुंडा, झारखंड आंदोलन से जुड़े एनइ होरो, खूंटी के गांधी कहे जानेवाले टी मुचिराय मुंडा और करिया मुंडा जैसे कई नेताओं ने खूंटी को एक अलग पहचान दिलायी है. खूंटी को अपराध के लिए जाना जाता है. कृषि प्रधान खूंटी विधानसभा क्षेत्र में 90 के दशक तक नक्सलियों का बोलबाला था. सूरज ढलते ही खूंटी की सड़कों पर गाड़ियों के पहिए थम जाया करते थे, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के कई कैंप स्थापित करने और सघन ऑपरेशन चलाने के कारण माओवादी कमजोर पड़ते गए.

देखें स्पेशल स्टोरी
यहां के कई नेता केंद्र-राज्य में रह चुके हैं मंत्री हालांकि माओवादियों से इतर स्थानीय नक्सली संगठन पीएलएफआई अब इस क्षेत्र के लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं. इस जिले में बेरोजगारी चरम पर है. पलायन भी यहां की बड़ी समस्याओं में से एक है. यही वजह है कि पूरा जिला नक्सलवाद की चपेट में है. पांच लाख से अधिक जनसंख्या वाला खूंटी 12 सितंबर 2007 को रांची से अलग होकर नया जिला बना था. यहां के कई नेता केंद्र और राज्य में मंत्री रह चुके हैं. नीलकंठ सिंह मुंडा हैं मौजूदा विधायक खूंटी विधानसभा सीट पर लोगों ने समय-समय पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मौका दिया है. कई दशक से इस सीट पर लोगों ने एक ही परिवार को अपना जनप्रतिनधि बनाया है. फिलहाल इस सीट से नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार तीन बार से विधायक हैं. इनके पिता टी मुचिराय मुंडा भी क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं. खूंटी विधानसभा सीट से 1977 में जनता पार्टी से खुदिया पाहन विधायक बनी, तो 1980 में इंदिरा कांग्रेस की टिकट पर सामू पाहन चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1985 के चुनाव में सुशीला केरकेट्टा को लोगों ने अपना आशीर्वाद दिया. सुशीला केरकेट्टा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं. उसके बाद 1990 और 1995 में सुशीला केरकेट्टा फिर से क्षेत्र की विधायक चुनी गईं, लेकिन 2000 आते ही खूंटी की फिजा ने करवटें बदली और कांग्रेस के गढ़ को इस बार ढहा दिया और इस बार खूंटी की जनता ने नीलकंठ सिंह मुंडा को अपना विधायक चुना. ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: AAP की पहली लिस्ट जारी, रांची से लड़ेंगे राजन कुमार सिंह

कांग्रेस-जेएमएम से मिलती है कड़ी टक्कर
झारखंड में साल 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में खूंटी सीट पर बीजेपी के नीलकंठ सिंह मुंडा ने कांग्रेस के रौशन कुमार सुरीन को भारी अंतर से हराया था. 2009 के चुनाव में नीलकंठ का सामना जेएमएम के मसीचरण मुंडा से हुआ था. यह कांटे की टक्कर थी. अंत में नीलकंठ को महज 436 वोट के अंतर से विजयी घोषित किया गया था. लेकिन 2014 का चुनाव आते-आते नीलकंठ सिंह मुंडा ने अपने इस क्षेत्र में ऐसी पकड़ जमायी कि तमाम विपक्षी ढेर हो गए. इस बार जेएमएम ने जीदन होरो पर दाव आजमाया था लेकिन वह नीलकंठ के सामने कहीं नहीं टिके.

21,515‬ मतों से जीते थे नीलकंठ सिंह मुंडा
2014 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा को 47,032 मत मिले थे. दूसरे नंबर पर जेएमएम के जीदर होरो को 25,517 मत मिले थे. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस सीट पर 21,515‬ मतों के अंतर से जीत हासिल की.दोनों नेताओं के उम्र में बहुत फासला नहीं है दोनों नेताओं की उम्र लगभग 50 साल है. खूंटी सीट से कुल 16 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. इन 16 लोगों में दो महिलाएं भी शामिल थीं, चुनाव से पहले आयोग की तरफ से चार लोगों का नोमिनेशन रद्द कर दिया गया. इस तरह से खूंटी के रण में 12 प्रत्याशी मैदान में बचे. इसमें से 10 उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई.

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रांची: खूंटी भगवान बिरसा मुंडा की मातृभूमि और कर्मभूमि रही है. जयपाल सिंह मुंडा, झारखंड आंदोलन से जुड़े एनइ होरो, खूंटी के गांधी कहे जानेवाले टी मुची राय मुंडा और करिया मुंडा जैसे कई नेताओं ने खूंटी को एक अलग पहचान दिलायी है. खूंटी को अपराध के लिए जाना जाता है. कृषि प्रधान खूंटी विधानसभा क्षेत्र में 90 के दशक तक नक्सलियों का बोलबाला था. सूरज ढलते ही खूंटी की सड़कों पर गाड़ियों के पहिए थम जाया करते थे. लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के कई कैंप स्थापित करने और सघर ऑपरेशन चलाने के लिए माओवादी कमजोर पड़ते गए. 

यहां के कई नेता केंद्र-राज्य में रह चुके हैं मंत्री 

हालांकि माओवादियों से इतर स्थानीय नक्सली संगठन पीएलएफआई अब इस क्षेत्र के लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं. इस जिले में बेरोजगारी चरम पर है. पलायन भी यहां की बड़ी समस्याओं में से एक है. यही वजह है कि पूरा जिला नक्सलवाद की चपेट में है. पांच लाख से अधिक जनसंख्या वाला खूंटी 12 सितंबर 2007 को रांची से अलग होकर नया जिला बना था. यहां के कई नेता केंद्र और राज्य में मंत्री रह चुके हैं. 

नीलकंठ सिंह मुंडा हैं मौजूदा विधायक 

खूंटी विधानसभा सीट पर लोगों ने समय-समय पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मौका दिया है. कई दशक से इस सीट पर लोगों ने एक ही परिवार को अपना जनप्रतिनधि बनाया है. फिलहाल इस सीट से नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार तीन बार से विधायक हैं. इनके पिता मुचिराय मुंडा भी क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं. खूंटी विधानसभा सीट से 1977 में जनता पार्टी से खुदिया पाहन विधायक बनी, तो 1980 में इंदिरा कांग्रेस की टिकट पर सामू पाहन चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1985 के चुनाव में सुशीला केरकेट्टा को लोगों ने अपना आशीर्वाद दिया. सुशीला केरकेट्टा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं. उसके बाद 1990 और 1995 में सुशीला केरकेट्टा फिर से क्षेत्र की विधायक चुनी गईं. लेकिन 2000 आते ही खूंटी की फिजा ने करवटें बदली और कांग्रेस के गढ़ को इस बार ढहा दिया और इस बार खूंटी की जनता  ने नीलकंठ सिंह मुंडा को अपना विधायक चुना. 

कांग्रेस-जेएमएम से मिलती है कड़ी टक्कर

झारखंड में साल 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में खूंटी सीट पर बीजेपी के नीलकंठ सिंह मुंडा ने कांग्रेस के रौशन कुमार सुरीन को भारी अंतर से हराया था. 2009 के चुनाव में नीलकंठ का सामना जेएमएम के मसीचरण मुंडा से हुआ था. यह कांटे की टक्कर थी. अंत में नीलकंठ को महज 436 वोट के अंतर से विजयी घोषित किया गया था. लेकिन 2014 का चुनाव आते-आते नीलकंठ सिंह मुंडा ने अपने इस क्षेत्र में ऐसी पकड़ जमायी कि तमाम विपक्षी ढेर हो गए. इस बार जेएमएम ने जीदन होरो पर दाव आजमाया था लेकिन वह नीलकंठ के सामने कहीं नहीं टिके. 



21,515‬ मतों से जीते थे नीलकंठ सिंह मुंडा 

2014 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा को 47,032 मत मिले थे. दूसरे नंबर पर जेएमएम के जीदर होरो को 25,517 मत मिले थे. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस सीट पर 21,515‬ मतों के अंतर से जीत हासिल की.दोनों नेताओं के उम्र में बहुत फासला नहीं है दोनों नेताओं की उम्र लगभग 50 साल है. खूंटी सीट से कुल 16 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. इन 16 लोगों में दो महिलाएं भी शामिल थीं, चुनाव से पहले आयोग की तरफ से चार लोगों का नोमिनेशन रद्द कर दिया गया. इस तरह से खूंटी के रण में 12 प्रत्याशी मैदान में बचे. इसमें से 10 उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई.   

 


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