रांची: देव भाषा कही जाने वाले संस्कृत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक तरफ सरकार कई योजनाएं चला रही है, वहीं राज्य में शिक्षकों की कमी के चलते संस्कृत के स्कूल बंद हो रहे हैं. लेकिन इस तरह ध्यान देने वाला कोई नहीं है.
शिक्षकों की कमी के चलते स्कूल बंद
सबसे पहले बात संस्कृत भाषा के स्कूलों की. शिक्षक न होने से रांची के किशोरगंज इलाके में स्थित राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय बंद हो चुका है. दरअसल, इस स्कूल के शिक्षक एक-एक कर रिटायर होते गए और कुछ शिक्षकों को प्रमोशन देकर विभाग में उच्च पद पर पदस्थापित कर दिया गया. जब एक भी शिक्षक नहीं बचा तो फिर विद्यार्थियों का भला इस स्कूल में क्या काम रहता. अब स्कूल तबेले में तब्दील हो गया है. स्कूल में ताला जड़ा है और कैंपस में गाय और भैंस बांधी जा रहीं हैं.
महाविद्यालय भी बंद होने के कगार पर
इसी कैंपस में संचालित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है. फिलहाल इस महाविद्यालय में 3 शिक्षक हैं जबकि शिक्षकों के 10 पद सृजित हैं. हैरान करने वाली बात ये भी है कि रांची विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में होने के बावजूद यह महाविद्यालय बिनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के अधीन संचालित हो रहा है. इस मामले में जब हमने कुलपति कृष्ण देव प्रसाद से बात की तो उन्होंने कहा कि वे अपने स्तर से कुछ नहीं कर सकते. शिक्षकों की इसी तरह कमी रही और छात्र को बेहतर सुविधा नहीं मिली तो इस महाविद्यालय का भी बंद होना तय है. वहीं कॉलेज की लाइब्रेरी में किताबें धूल फांक रहीं हैं.
20 साल से आचार्य की पढ़ाई बंद
करीब सौ साल पुराने इस महाविद्यालय में आचार्य की पढ़ाई भी साल 2000 में झारखंड के गठन के साथ ही बंद कर दी गई थी. अब विद्यार्थियों को संस्कृत विषय में ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद उन्हें आचार्य की पढ़ाई करने के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है. इस महाविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने इसको लेकर सवाल भी खड़ा किया है. साथ ही इस महाविद्यालय को शिक्षकों की बहाली कर और सुविधाओं को बेहतर कर बचाने की गुहार सरकार से लगाई है.