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अर्श से फर्श पर गिरा फूलों का 'राजा' गुलाब, न मार्केट, न खरीदार, लाखों के फूल हो रहे बेकार

राजधानी रांची में डेढ़ सौ से अधिक ऐसे फूल के विक्रेता हैं, जो इन फूल उत्पादकों से उनके उत्पाद खरीदते हैं. उसके अलावे यहां से फूल उत्पादक अन्य जिलों में भी अपना उत्पाद भेजते हैं. कोरोना की वजह से अब इन फूल उत्पादकों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. इतना ही नहीं, गाड़ियों के आवागमन ठप होने से यह अपने उत्पाद बाहर के बाजारों में भी नहीं भेज पा रहे हैं. नतीजा यह है कि 4 से 6 महीने की मेहनत से तैयार हुई फसल उन्हें यूं ही काट कर कूड़े में फेंक देनी पड़ रही है.

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Published : Apr 7, 2020, 3:06 PM IST

Rose flower is not selling due to lockdown in ranchi
गुलाब

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना ने एक तरह से अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है. इस वायरस के संक्रमण के भय की वजह से उद्योग धंधे और व्यापार भी प्रभावित है. कृषि पर भी खासा असर देखने को मिल रहा है. ऐसे में उन लोगों का भी बुरा हाल है, जिनकी आमदनी का मुख्य स्रोत फल और फूल है. दरअसल, मार्च के मध्य महीने से शुरू हुए कोरोना के कहर ने शहर में फूलों का उत्पादन करने वाले किसानों की कमर भी तोड़ दी है. एक तरफ जहां ऐसी स्थिति में शादी-ब्याह समेत मांगलिक कार्यक्रम न के बराबर आयोजित हो रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सभाएं गोष्ठियों में भी प्रतिबंध लगा हुआ है. ऐसी स्थिति में इसका अप्रत्यक्ष मार फूलों का उत्पादन करने वाले झेल रहे हैं.

देखिए पूरी खबर

लग्न में नहीं हुई डिमांड, अब कोई खरीदार तक नहीं

एक अनुमान के अनुसार, राजधानी में डेढ़ सौ से अधिक ऐसे फूल के विक्रेता हैं, जो इन फूल उत्पादकों से उनके उत्पाद खरीदते हैं. उसके अलावे यहां से फूल उत्पादक अन्य जिलों में भी अपना उत्पाद भेजते हैं. कोरोना की वजह से अब इन फूल उत्पादकों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. इतना ही नहीं, गाड़ियों के आवागमन ठप होने से यह अपने उत्पाद बाहर के बाजारों में भी नहीं भेज पा रहे हैं. नतीजा यह है कि 4 से 6 महीने की मेहनत से तैयार हुई फसल उन्हें यूं ही काट कर कूड़े में फेंक देनी पड़ रही है. इनके अनुसार, इन्हें दोहरा नुकसान झेलना पड़ रहा है. एक तरफ उत्पादन में लागत मूल्य लगा दूसरी तरफ अब इन फूलों को कटवा कर उन्हें फिकवाना पड़ रहा है.

क्या कहते हैं फूलों के उत्पादक

राजधानी रांची से लगभग 25 किलोमीटर दूर पिठोरिया के कोनकी गांव के फूल उत्पादक गुणाकर कहते हैं कि अब इन पौधों का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि इनमें लगे फूल सारे पौधे का भोजन खा जाते हैं और कोरोना महामारी की वजह से ट्रांसपोर्टेशन पूरी तरह से बंद है. ऐसे में कोई उपाय नहीं है सिवाय पौधों की कटाई के. यहां तक कि हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि इन पौधों को काटकर छोटा कर दिया जाए. सलाह काफी महंगी पड़ रही है क्योंकि इन्हीं फूल को आने के लिए पौधे लगाए गए और 4 महीने के बाद पौधे पूरी तरह से तैयार हुए. उन्होंने बताया कि लगभग 2000 स्क्वायर मीटर के पॉलीहाउस में लगभग 16000 से भी अधिक गुलाब के पौधे लगे थे.

ये भी पढे़ं: दुमका सांसद सुनील सोरेन ने एमपी फंड पर सरकार के निर्णय का किया स्वागत

लाखों का हो रहा नुकसान

एक अनुमान के हिसाब से 5.50 लाख रुपए के फूल काटकर उन्होंने फेंक दिए. गुणाकर ने कहा कि चूंकि मंदिर, मस्जिद सारे बंद है और शादियां भी कोरोना के चलते टाल दी गई है. ऐसे में इन फूलों की अब कोई कीमत नहीं है. उन्होंने कहा कि यह काफी दुखदाई है क्योंकि बच्चे जैसे पौधे पाल के बड़ा करना और उसे यूं फेंक देना कष्ट देता है. उन्होंने कहा कि अब नए फूल आने में कम से कम 2 महीने तक इंतजार करना पड़ेगा.

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना ने एक तरह से अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है. इस वायरस के संक्रमण के भय की वजह से उद्योग धंधे और व्यापार भी प्रभावित है. कृषि पर भी खासा असर देखने को मिल रहा है. ऐसे में उन लोगों का भी बुरा हाल है, जिनकी आमदनी का मुख्य स्रोत फल और फूल है. दरअसल, मार्च के मध्य महीने से शुरू हुए कोरोना के कहर ने शहर में फूलों का उत्पादन करने वाले किसानों की कमर भी तोड़ दी है. एक तरफ जहां ऐसी स्थिति में शादी-ब्याह समेत मांगलिक कार्यक्रम न के बराबर आयोजित हो रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सभाएं गोष्ठियों में भी प्रतिबंध लगा हुआ है. ऐसी स्थिति में इसका अप्रत्यक्ष मार फूलों का उत्पादन करने वाले झेल रहे हैं.

देखिए पूरी खबर

लग्न में नहीं हुई डिमांड, अब कोई खरीदार तक नहीं

एक अनुमान के अनुसार, राजधानी में डेढ़ सौ से अधिक ऐसे फूल के विक्रेता हैं, जो इन फूल उत्पादकों से उनके उत्पाद खरीदते हैं. उसके अलावे यहां से फूल उत्पादक अन्य जिलों में भी अपना उत्पाद भेजते हैं. कोरोना की वजह से अब इन फूल उत्पादकों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. इतना ही नहीं, गाड़ियों के आवागमन ठप होने से यह अपने उत्पाद बाहर के बाजारों में भी नहीं भेज पा रहे हैं. नतीजा यह है कि 4 से 6 महीने की मेहनत से तैयार हुई फसल उन्हें यूं ही काट कर कूड़े में फेंक देनी पड़ रही है. इनके अनुसार, इन्हें दोहरा नुकसान झेलना पड़ रहा है. एक तरफ उत्पादन में लागत मूल्य लगा दूसरी तरफ अब इन फूलों को कटवा कर उन्हें फिकवाना पड़ रहा है.

क्या कहते हैं फूलों के उत्पादक

राजधानी रांची से लगभग 25 किलोमीटर दूर पिठोरिया के कोनकी गांव के फूल उत्पादक गुणाकर कहते हैं कि अब इन पौधों का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि इनमें लगे फूल सारे पौधे का भोजन खा जाते हैं और कोरोना महामारी की वजह से ट्रांसपोर्टेशन पूरी तरह से बंद है. ऐसे में कोई उपाय नहीं है सिवाय पौधों की कटाई के. यहां तक कि हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि इन पौधों को काटकर छोटा कर दिया जाए. सलाह काफी महंगी पड़ रही है क्योंकि इन्हीं फूल को आने के लिए पौधे लगाए गए और 4 महीने के बाद पौधे पूरी तरह से तैयार हुए. उन्होंने बताया कि लगभग 2000 स्क्वायर मीटर के पॉलीहाउस में लगभग 16000 से भी अधिक गुलाब के पौधे लगे थे.

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लाखों का हो रहा नुकसान

एक अनुमान के हिसाब से 5.50 लाख रुपए के फूल काटकर उन्होंने फेंक दिए. गुणाकर ने कहा कि चूंकि मंदिर, मस्जिद सारे बंद है और शादियां भी कोरोना के चलते टाल दी गई है. ऐसे में इन फूलों की अब कोई कीमत नहीं है. उन्होंने कहा कि यह काफी दुखदाई है क्योंकि बच्चे जैसे पौधे पाल के बड़ा करना और उसे यूं फेंक देना कष्ट देता है. उन्होंने कहा कि अब नए फूल आने में कम से कम 2 महीने तक इंतजार करना पड़ेगा.

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