रांची: ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में निर्वाचन आयोग की चिट्ठी ने झारखंड की सियासत को पिछले कई दिनों से गर्म कर रखा है (Politics on Election Commission Report on cm). झारखंड की राजनीति में एक बड़ी शुरुआत उस समय दबाव वाली राजनीति के साथ शुरू हुई जब एक सीनियर आईएएस को ईडी ने खदान माफियाओं से सांठगांठ के आरोप में पहले पूछताछ के लिए बुलाया फिर गिरफ्तार कर लिया जेल भेज दिया. सवाल उठना शुरू हुआ कि यह तो सीएम हेमंत के खास हैं, जांच की कड़ी आगे बढ़ी तो सीएम के कई खास लोगों को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया. चर्चा चल ही रही थी कि पश्चिम बंगाल में हुई घटना ने सियासत को नया रंग दे दिया.
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30 जुलाई को कांग्रेस के तीन विधायकों को कैश के साथ पश्चिम बंगाल की पुलिस ने पकड़ लिया तो राजनीति गर्म हो गई कि ये वह लोग थे जो हेमंत सोरेन की सरकार गिराने के लिए बीजेपी से पैसा ले रहे थे. इसे प्रूफ करने के लिए रांची से लेकर कोलकाता तक की राजनीति एक हो गई. इस क्रम में एक कड़ी और जोड़ते हुए 31 अगस्त को विधायक अनूप सिंह ने एक एफआईआर कर दी कि उन्हें भी खरीदने के लिए पैसों का लालच दिया गया था. इन सब चीजों के बीच जो सबसे अहम बात थी वह हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के उस मामले को लेकर थी, जिसकी सुनवाई निर्वाचन आयोग में चल रही थी. 1 अगस्त को हेमंत सोरेन ने बयान दिया कि बीजेपी झारखंड की सरकार गिराने के लिए राजनीति कर रही है और इसके लिए ही सियासी ताना-बाना बुना जा रहा है. हालांकि इसी बीच हेमंत सोरेन के खिलाफ पीआईएल दायर करने वाले वकील राजीव कुमार को कोलकाता में ही 50 लाख कैश के साथ गिरफ्तार किया गया. ईडी उस मामले की भी जांच कर रही है.
राजनीति में दिखने वाला यह वह चैप्टर है जो कोलकाता से रांची तक दिखा, लेकिन नेपथ्य में जो चीजें चलती रहीं उसका असली मजमून अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में देखने को मिला. 18 अगस्त को चुनाव आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले पर सुनवाई की और हेमंत सोरेन के खिलाफ मामला बनता है ऐसी जानकारी सामने आ गई. राजनीतिक विशेषज्ञ की समीक्षा करने लगे, राजनीति में गुणा गणित शुरू हो गया, चर्चा इस बात की भी शुरू हुई कि पश्चिम बंगाल में जो 3 लोग पैसे के साथ पकड़ाए वैसे कई और लोग भी हैं जो बीजेपी के इशारे पर हेमंत सरकार को गिरा सकते हैं. अपनों पर विश्वास के अविश्वास की कहानी भी अगस्त महीने के अंतिम हफ्ते में खूब दिखी.
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राजनीति में चर्चा शुरू हो गई कि 27 अगस्त के बाद कभी भी राज्यपाल हेमंत सोरेन के खिलाफ फैसला दे सकते हैं, तो ऐसे में सरकार गिर सकती है. सरकार बनाएगा कौन इसको लेकर के झारखंड की राजनीति में अजीब सी अफवाह फैल गई कि झारखंड के कांग्रेस और झामुमो के कई विधायक को बीजेपी तोड़ रही है. इस डैमेज कंट्रोल को बचाने के लिए हेमंत सोरेन घूमने निकल पड़े. 27 अगस्त को सभी विधायकों के साथ लतरातू डैम चले गए, उसके बाद सभी लोगों को निगरानी में रख लिया गया. 27 अगस्त जो राजनीति झारखंड में शुरू हुई उससे लगने लगा कि संभवत हेमंत सोरेन की सरकार अब बहुत दिनों तक नहीं चलेगी.
हेमंत सोरेन पर कोई कार्रवाई होगी, हेमंत सोरेन दोषी करार दिए गए हैं या नहीं दिए गए हैं यह बाहर नहीं आया, लेकिन उस डर के ही विरोध में हेमंत सोरेन की सरकार गजब फैसले लेने शुरू कर दिए. पहले विधायकों को लेकर रांची में घूमने की बात आई और फिर 30 अगस्त को सभी विधायकों को रायपुर भेज दिया गया. कहा यह गया कि वह घूमने गए हैं, लेकिन हकीकत तो यही थी कि जिन लोगों के विश्वास से हेमंत की सरकार चल रही है उन पर वह विश्वास कायम ही नहीं हो पा रहा था. उन्हें लग रहा था कि अगर लोग रांची में रहेंगे तो बिक जाएंगे, उन्हें खरीद लिया जाएगा और सरकार गिर जाएगी. जो विधायक रायपुर गए और रायपुर से झारखंड तक की जो राजनीति चली उसमें इस बात की चर्चा सबसे ऊपर थी कि झारखंड में जितने विधायक सत्ता पक्ष के हैं उनमें से कुछ लोग बिक जायेंगे यह डर और आशंका हेमंत सोरेन के मन में भी था और उनके साथियों के मन में भी. यही वजह थी कि सभी लोग रायपुर में एक रिसोर्ट में रख दिए गए.
सियासी मापदंड का एक और पैमाना खड़ा किया गया 1 सितंबर को यूपीए का डेलिगेशन राज्यपाल से जाकर मिला. यह कहा जिस तरीके से खबरें झारखंड में आ रही हैं यह साबित कर रही हैं कि राजभवन उस निर्णय को बताने के बजाय प्रचारित करवा रहा है कि हेमंत सोरेन की सदस्यता जा सकती है. हालांकि राज्यपाल ने इस बात का खंडन भी किया था, उन्होंने यह भी कहा था कि अभी कोई ऐसा फैसला राजभवन ने लिया ही नहीं है. 2 सितंबर को राज्यपाल दिल्ली चले गए उसके बाद सियासत दूसरी लाइन पकड़ ली और अफवाहों का एक बाजार और चला कि सॉलीसीटर जनरल से मिलकर के राज्यपाल झारखंड की राजनीति के लिए नया प्लान तैयार कर रहे हैं.
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झारखंड से दिल्ली गई राजनीति और रांची से रायपुर गए विधायकों को लेकर जो चर्चा चल रही थी उसमें सरकार के लिए एक नई राह निकाली गई. उसमें कहा गया कि 5 सितंबर को फ्लोर पर विशेष सत्र बुलाकर के हेमंत सरकार अपना बहुमत साबित कर दें. राजनीतिक समीक्षक जानकार और राजनीति को बेहतर तरीके से समझने वाले लोगों ने यह कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाया तो किसी पार्टी ने नहीं है, लेकिन फिर भी अगर विश्वास हासिल करना है हेमंत सरकार चाहती है उसमें किसी को हर्ज भी कुछ नहीं है. 5 सितंबर को विशेष सत्र बुलाकर के हेमंत ने सदन में एक बार फिर अपना बहुमत साबित कर दिया. अब सियासत के इस पन्ने को लिखे जाने के बाद राजनीति ने अपना रंग बदल दिया जो विधायक रायपुर के रिसोर्ट में बंद किए गए थे, झारखंड में घूमने के लिए फ्री कर दिए गए. अविश्वास वाली राजनीति विश्वास में आ गई कि अब इसमें से कोई विधायक बिकेगा नहीं और 6 महीने तक सरकार को कोई खतरा इसलिए भी नहीं होगा कि अविश्वास प्रस्ताव लाया भी नहीं जा सकता. अगर कोई बिक भी गया तो सरकार सुरक्षित रह जाएगी. सितंबर महीने की शुरुआत अविश्वास के उसी विश्वास वाली राजनीति से शुरू हुई जिसका अंतिम मजमूम 13 सितंबर को हेमंत सोरेन ने राजभवन जाकर रख दिया.
झारखंड की राजनीति ने इस बात को सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा था कि निर्वाचन आयोग से हेमंत सोरेन को लेकर जो चिट्ठी आई है उस पर राज्यपाल फैसला कर लेंगे. माना यह भी जा रहा था कि हेमंत सोरेन और राजभवन के बीच एक खेल चल रहा है जिसमें किसी चीज का इंतजार हो रहा है. 13 सितंबर को हेमंत सोरेन ने उसे तोड़ते हुए सीधे राजभवन पहुंचे और राज्यपाल से कह दिया कि अगर कोई ऐसी चिट्ठी निर्वाचन आयोग की आई है तो उसे सार्वजनिक किया जाए, ताकि राज्य में जिस तरह के आरोपों की राजनीति वाली बात हो रही है उस पर विराम लग सके. बहरहाल राज्यपाल के सामने अपने बातों को सीएम ने रखा और फिर दिल्ली चले गए. अब देखना यह है कि उस चिट्ठी को कब तक राज्यपाल सार्वजनिक करते हैं या फिर दिल्ली से कोई राजनीति की नई धारा राखी पहुंचती है.