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झारखंड में जारी है स्थानीय नीति पर सियासत, जानिए 1932 के खतियान को लेकर कहां फंसा है पेंच

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Published : Apr 30, 2022, 1:18 PM IST

Updated : Apr 30, 2022, 3:06 PM IST

झारखंड में स्थानीय नीति को लेकर सियासत जारी है, 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति को लागू करने को लेकर पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

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झारखंड में स्थानीय नीति

रांची: झारखंड में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति और नियोजन नीति लागू करने की मांग जोरों पर है. विधायक हो या सांसद सभी इस मुद्दे पर अपने अपने तरीके से राजनीति कर रहे हैं. ऐसे में जब तमाम दलों के द्वारा सियासत की जा रही है. तब ये सवाल उठ रहा है कि अब तक इसे झारखंड में लागू करने की पहल क्यों नहीं की जा रही है. सड़क पर उतरकर ये नेता तो इस नीति की वकालत करते हैं. लेकिन जब बात लागू करने की होती है तो मामला लटक जाता है.

ये भी पढ़ें:- स्थानीय और नियोजन नीति का मुद्दा गर्म! आदिवासी और मूलवासी समाज की सरकार से नाराजगी

सर्वे और सेटलमेंट पर बनेगी स्थानीय नीति: इस मुद्दे पर कांग्रेस के विधायक राजेश कच्छप का कहना है कि तमाम प्रमंडल की अंतिम सर्वे और सेटलमेंट के आधार पर ही झारखंड की स्थानीय नीति बनेगी. उन्होंने कहा कि जब उड़िया के लिए उड़ीसा, बंगालियों के लिए बंगाल है तो झारखंडियों के लिए झारखंड क्यों नहीं. राजेश कश्यप का कहना है कि झारखंड में किसी को कमाने खाने से कोई नहीं रोकता है. लेकिन लोगों को गुमराह करने का जो काम किया जा रहा है वे इसक विरोध करते हैं.

नेताओं के बयान

झारखंड के नागरिकों को ठगा गया: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग को लेकर जेएमएम से इस्तीफा देने वाले पूर्व विधायक अमित महतो ने राजनीतिक दलों पर झारखंडियों को ठगने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जिस तरह से झारखंड में जल जंगल जमीन की पार्टी की सरकार बनी उससे उम्मीदें काफी थी. लेकिन इस पार्टी ने भी झारखंड की जनभावनाओं को नहीं समझा. यही वजह है कि झारखंड में अब भी स्थानीय और नियोजन नीति परिभाषित नहीं हुई है. पूर्व विधायक ने कहा कि वे इसका विरोध करते रहेंगे. जनभावनाओं से खेलने वाला कोई भी हो वो उनसे नहीं डरेंगे.

ये भी पढ़े:- पत्रकार के सवाल पर भड़के शिक्षा मंत्री, कहा- बिहारी हैं तो माइक-वाइक लेकर चले जाइए बिहार

क्या कहते हैं पूर्व मंत्री देव कुमार धान: इसी मुद्दे को लेकर पूर्व मंत्री देव कुमार धान भी अपने आप को झारखंड का हितेषी बताते हैं वो कहते हैं कि झारखंड में स्थानीय नीति अब तक नहीं बनना बहुत ही दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने बताया कि 1932 का खतियान लास्ट सर्वे ऑफ रिकॉर्ड के आधार पर 1982 में बिहार में एक कमेटी बनी थी. जिसके आधार पर ये तय हुआ था कि लास्ट सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति बनेगी. उसके बाद जब झारखंड अलग हुआ तो लगा कि आदिवासियों को हक मिलेगा लेकिन दर्भाग्य की बात है कि झारखंड की तमाम नौकरियों में बाहर के लोग काबिज हैं.

1985 के आधार पर स्थानीयता की परिभाषा रद्द: बता दें कि झारखंड में पूर्वर्ती रघुवर सरकार ने 1985 के आधार पर स्थानीय नियोजन नीति को परिभाषित किया था. जिसे हेमंत सरकार ने निरस्त कर दिया है. इसके बाद बजट सत्र के दौरान स्थानीय नीति पर अपने भाषण में सीएम ने कहा कि 1932 के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित करना काफी जटिल है. ऐसे में ये नीति झारखंड कब तक और कैसे लागू होगी इसको लेकर संशय बरकरार है.

रांची: झारखंड में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति और नियोजन नीति लागू करने की मांग जोरों पर है. विधायक हो या सांसद सभी इस मुद्दे पर अपने अपने तरीके से राजनीति कर रहे हैं. ऐसे में जब तमाम दलों के द्वारा सियासत की जा रही है. तब ये सवाल उठ रहा है कि अब तक इसे झारखंड में लागू करने की पहल क्यों नहीं की जा रही है. सड़क पर उतरकर ये नेता तो इस नीति की वकालत करते हैं. लेकिन जब बात लागू करने की होती है तो मामला लटक जाता है.

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सर्वे और सेटलमेंट पर बनेगी स्थानीय नीति: इस मुद्दे पर कांग्रेस के विधायक राजेश कच्छप का कहना है कि तमाम प्रमंडल की अंतिम सर्वे और सेटलमेंट के आधार पर ही झारखंड की स्थानीय नीति बनेगी. उन्होंने कहा कि जब उड़िया के लिए उड़ीसा, बंगालियों के लिए बंगाल है तो झारखंडियों के लिए झारखंड क्यों नहीं. राजेश कश्यप का कहना है कि झारखंड में किसी को कमाने खाने से कोई नहीं रोकता है. लेकिन लोगों को गुमराह करने का जो काम किया जा रहा है वे इसक विरोध करते हैं.

नेताओं के बयान

झारखंड के नागरिकों को ठगा गया: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग को लेकर जेएमएम से इस्तीफा देने वाले पूर्व विधायक अमित महतो ने राजनीतिक दलों पर झारखंडियों को ठगने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जिस तरह से झारखंड में जल जंगल जमीन की पार्टी की सरकार बनी उससे उम्मीदें काफी थी. लेकिन इस पार्टी ने भी झारखंड की जनभावनाओं को नहीं समझा. यही वजह है कि झारखंड में अब भी स्थानीय और नियोजन नीति परिभाषित नहीं हुई है. पूर्व विधायक ने कहा कि वे इसका विरोध करते रहेंगे. जनभावनाओं से खेलने वाला कोई भी हो वो उनसे नहीं डरेंगे.

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क्या कहते हैं पूर्व मंत्री देव कुमार धान: इसी मुद्दे को लेकर पूर्व मंत्री देव कुमार धान भी अपने आप को झारखंड का हितेषी बताते हैं वो कहते हैं कि झारखंड में स्थानीय नीति अब तक नहीं बनना बहुत ही दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने बताया कि 1932 का खतियान लास्ट सर्वे ऑफ रिकॉर्ड के आधार पर 1982 में बिहार में एक कमेटी बनी थी. जिसके आधार पर ये तय हुआ था कि लास्ट सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति बनेगी. उसके बाद जब झारखंड अलग हुआ तो लगा कि आदिवासियों को हक मिलेगा लेकिन दर्भाग्य की बात है कि झारखंड की तमाम नौकरियों में बाहर के लोग काबिज हैं.

1985 के आधार पर स्थानीयता की परिभाषा रद्द: बता दें कि झारखंड में पूर्वर्ती रघुवर सरकार ने 1985 के आधार पर स्थानीय नियोजन नीति को परिभाषित किया था. जिसे हेमंत सरकार ने निरस्त कर दिया है. इसके बाद बजट सत्र के दौरान स्थानीय नीति पर अपने भाषण में सीएम ने कहा कि 1932 के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित करना काफी जटिल है. ऐसे में ये नीति झारखंड कब तक और कैसे लागू होगी इसको लेकर संशय बरकरार है.

Last Updated : Apr 30, 2022, 3:06 PM IST
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