रांची: कहते हैं झारखंड के आदिवासी समाज की अर्थव्यवस्था महिलाओं पर टिकी है. ज्यादातर आदिवासी महिलाएं घरेलू काम के साथ ही मेहनत मजदूरी भी करती हैं, जो इनके प्रोग्रेसिव स्वभाव को दर्शाता है. हालांकि झारखंड की राजनीति में महिलाओं की न के बराबर भागीदारी आधी आबादी की ताकत को कमजोर कर रही है. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर करना होगा.
विधानसभा चुनाव में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
राज्य गठन के बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में 81 सीटों पर एक तरफ कुल 1 हजार 296 पुरुष मैदान में थे, तो दूसरी तरफ महिलाओं की संख्या महज 94 थी. जिन 5 महिलाओं ने चुनाव जीता उनमें एसटी के लिए रिजर्व लिट्टीपाड़ा सीट से झामुमो की सुशीला हांसदा और मनोहरपुर से जोबा मांझी जबकि अनारक्षित सीटों पर कोडरमा से राजद की अन्नपूर्णा देवी, निरसा से फॉर्वरड ब्लॉक की अपर्णा सेनगुप्ता और झरिया से भाजपा की कुंती देवी के नाम शामिल हैं.
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खास बात है कि 2005 में अनारक्षित 44 सीटों पर सिर्फ 39 महिलाएं ही मैदान में उतरीं. एससी के लिए रिजर्व नौ सीटों के लिए सिर्फ 11 महिलाएं और एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों के लिए महज 44 महिलाएं. यह आंकड़े सामाजिक पिछड़ेपन को दर्शाने के लिए काफी हैं.
2005 के मुकाबले 2009 में बनाई हल्की बढ़त
2009 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागादारी में मामूली रूप से इजाफा हुआ. इस चुनाव में 107 महिलाएं राजनीति में भाग्य आजमाने उतरीं. पिछले चुनाव की तुलना में 13 ज्यादा, लेकिन जीत सिर्फ 7 सीटों पर ही दर्ज कर सकीं. यानी 10 फीसदी से भी कम सीटों पर विजय. हालांकि इस चुनाव में एसटी समुदाय की महिलाओं में अधिकार को लेकर जागरुकता नजर आई.
एसटी के लिए रिजर्व जामा से झामुमो की सीता सोरेन, पोटका से भाजपा की मेनका सरकार, जगन्नाथपुर से निर्दलीय गीता कोड़ा, सिसई से कांग्रेस की गीताश्री उरांव और सिमडेगा से भाजपा की विमला प्रधान की जीत हुई. वहीं, अनारक्षित 44 सीटों में सिर्फ 2 सीटें यानी कोडरमा से राजद की अन्नपूर्णा देवी और झरिया से भाजपा की कुंती सिंह विजयी रहीं. पार्टी स्तर पर भाजपा की तीन, झामुमो की एक, कांग्रेस की एक, राजद की एक और एक निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई. जहां तक चुनावी मैदान में उतरने की बात है तो अनारक्षित कोटे की 44 सीटों के लिए 42, एससी के लिए रिजर्व नौ सीटों के लिए 13 और एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों के लिए 29 महिलाओं ने भाग्य आजमाया. इससे साफ है कि 2005 के चुनाव के मुकालबले 2009 में एसटी समुदाय की महिलाओं में राजनीति के प्रति जागरूकता बढ़ी.
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महिलाओं के नाम अबतक का सबसे बड़ा स्कोर
2005 के चुनाव परिणाम के दस साल बाद यानी 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में आठ महिलाओं ने जीत दर्ज की. यानी महिलाओं के नाम अबतक का सबसे बड़ा स्कोर. इस चुनाव में भी एसटी समुदाय की महिलाओं ने बाजी मारी. आठ में से छह सीटें यानी दुमका से लुईस मरांडी, जामा से सीता सोरेन, पोटका से मेनका सरदार, जगन्नाथपुर से गीता कोड़ा, मांडर से गंगोत्री कुजूर और सिमडेगा से विमला प्रधान की जीत हुई. कोडरमा से नीरा यादव और बड़कागांव से निर्मला देवी विजयी रहीं. फिर भी यह आंकड़ा साफ दर्शाता है कि झारखंड में महिलाओं की स्थिति क्या है.
एससी समुदाय की महिलाओं के सपने कब होंगे पूरे
झारखंड में अबतक हुए किसी भी चुनाव में अनुसूचित जाति की महिला विधायक नहीं बन पायी है. यह समाज के पिछड़ेपन को दर्शाता है. एससी के लिए राज्य में 9 सीटें रिजर्व हैं. लेकिन जनता के मंदिर तक पहुंचने के लिए इस समुदाय की महिलाओं को किसी भी पार्टी ने तवज्जो नहीं दिया. यह पूरे झारखंड के लिए अपमान का विषय है. देखना है कि विधानसभा चुनाव 2019 के चुनाव में एससी समाज की महिलाओं को पार्टियां तवज्जों देती हैं या फिर सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती हैं.