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अपने कैबिनेट सहयोगी सीपी सिंह के बचाव में मंत्री सरयू राय, हेमंत पर साधा निशाना - मंत्री सरयू राय

अपने कैबिनेट सहयोगी सीपी सिंह के बचाव में उतरे मंत्री सरयू राय. राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार के खुले पत्र के बाद लगातार आलोचना हो रही थी.

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Published : Jul 20, 2019, 8:29 PM IST

रांची: बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार के खुले पत्र के बाद लगातार आलोचना के शिकार हो रहे प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सीपी सिंह के बचाव में उनके कैबिनेट सहयोगी और राज्य के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण मामले के मंत्री सरयू राय उतर आए हैं.

महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी
राय ने कहा कि राजधानी के निर्माणाधीन सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम की बदहाली के लिए नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन के द्वारा मंत्री सिंह को जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि खुद सोरेन ने अपने नगर विकास मंत्रित्व काल में इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की है. साथ ही अयोग्य साबित हो चुके मेनहर्ट परामर्शी को 17 करोड़ बकाया भुगतान करने के लिए कैबिनेट से संकल्प पारित कराया है.

मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी
सरयू राय ने कहा कि यह तब किया गया जब निगरानी (तकनीकी कोषांग) की जांच में यह साबित हो गया कि डीपीआर बनाने और इसको इंप्लीमेंट करने का पर्यवेक्षण करने के लिए मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी. इस काम के लिए तकनीकी रूप से अयोग्य थे.

जांच रिपोर्ट भी सौंपी गई थी
राय ने कहा कि 6 अगस्त 2010 को निगरानी (तकनीकी कोषांग) के चीफ इंजीनियर ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा को इससे जुड़ी जांच रिपोर्ट भी सौंपी थी. जिसमें मेनहर्ट की योग्यता पर सवाल खड़े किए गए थे. जांच रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई करने की बजाय एक संचिका फरवरी 2011 में नगर विकास विभाग में भेज दी गई.

मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपए का भुगतान
इसके बाद 13 जुलाई 2011 को विभाग में कैबिनेट से संकल्प पारित कराकर मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया. राय ने कहा कि नगर विकास मंत्री सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरा मेनहर्ट को पर्यवेक्षण के काम से हटा दिया. इसलिए उनके ऊपर सीवरेज ड्रेनेज को लेकर आरोप लगाना सही नहीं. उन्होंने कहा कि 2015 में एक तरफ जहां सीवरेज ड्रेनेज का काम मेनहर्ट के पर्यवेक्षण में चल रहा था. वहीं दूसरी तरफ पथ निर्माण विभाग भी राजधानी में अलग से ड्रेनेज बनवा रहा था.

सिस्टम कामयाब नहीं हुआ
राय ने कहा कि ड्रेनेज निर्माण पर पथ निर्माण विभाग द्वारा लगभग 140 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी यह सिस्टम कामयाब नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर 2002 से 28 अगस्त 2011 के बीच निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आईजी एमवी राव ने भी झारखंड हाईकोर्ट के निर्देशानुसार कई बार निगरानी आयुक्त से आग्रह पर कार्रवाई के लिए निर्देश मांगा, लेकिन इस पर कोई निर्देश उनको नहीं मिला. इस अवधि में राज्य की कमान झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के हाथ थी. जबकि हेमंत सोरेन नगर विकास मंत्री भी रहे.

ये भी पढ़ें- नहीं टूटेगी BJP और AJSU की दोस्ती, साथ मिलकर लड़ेंगे विधानसभा का चुनाव

विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल
बता दें कि बीजेपी से राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने दो दिन पहले एक खुला पत्र मंत्री सीपी सिंह के नाम भेज कर उनके विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं.

रांची: बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार के खुले पत्र के बाद लगातार आलोचना के शिकार हो रहे प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सीपी सिंह के बचाव में उनके कैबिनेट सहयोगी और राज्य के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण मामले के मंत्री सरयू राय उतर आए हैं.

महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी
राय ने कहा कि राजधानी के निर्माणाधीन सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम की बदहाली के लिए नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन के द्वारा मंत्री सिंह को जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि खुद सोरेन ने अपने नगर विकास मंत्रित्व काल में इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की है. साथ ही अयोग्य साबित हो चुके मेनहर्ट परामर्शी को 17 करोड़ बकाया भुगतान करने के लिए कैबिनेट से संकल्प पारित कराया है.

मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी
सरयू राय ने कहा कि यह तब किया गया जब निगरानी (तकनीकी कोषांग) की जांच में यह साबित हो गया कि डीपीआर बनाने और इसको इंप्लीमेंट करने का पर्यवेक्षण करने के लिए मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी. इस काम के लिए तकनीकी रूप से अयोग्य थे.

जांच रिपोर्ट भी सौंपी गई थी
राय ने कहा कि 6 अगस्त 2010 को निगरानी (तकनीकी कोषांग) के चीफ इंजीनियर ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा को इससे जुड़ी जांच रिपोर्ट भी सौंपी थी. जिसमें मेनहर्ट की योग्यता पर सवाल खड़े किए गए थे. जांच रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई करने की बजाय एक संचिका फरवरी 2011 में नगर विकास विभाग में भेज दी गई.

मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपए का भुगतान
इसके बाद 13 जुलाई 2011 को विभाग में कैबिनेट से संकल्प पारित कराकर मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया. राय ने कहा कि नगर विकास मंत्री सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरा मेनहर्ट को पर्यवेक्षण के काम से हटा दिया. इसलिए उनके ऊपर सीवरेज ड्रेनेज को लेकर आरोप लगाना सही नहीं. उन्होंने कहा कि 2015 में एक तरफ जहां सीवरेज ड्रेनेज का काम मेनहर्ट के पर्यवेक्षण में चल रहा था. वहीं दूसरी तरफ पथ निर्माण विभाग भी राजधानी में अलग से ड्रेनेज बनवा रहा था.

सिस्टम कामयाब नहीं हुआ
राय ने कहा कि ड्रेनेज निर्माण पर पथ निर्माण विभाग द्वारा लगभग 140 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी यह सिस्टम कामयाब नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर 2002 से 28 अगस्त 2011 के बीच निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आईजी एमवी राव ने भी झारखंड हाईकोर्ट के निर्देशानुसार कई बार निगरानी आयुक्त से आग्रह पर कार्रवाई के लिए निर्देश मांगा, लेकिन इस पर कोई निर्देश उनको नहीं मिला. इस अवधि में राज्य की कमान झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के हाथ थी. जबकि हेमंत सोरेन नगर विकास मंत्री भी रहे.

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विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल
बता दें कि बीजेपी से राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने दो दिन पहले एक खुला पत्र मंत्री सीपी सिंह के नाम भेज कर उनके विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं.

Intro:रांची। बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार के खुले पत्र के बाद लगातार आलोचना के शिकार हो रहे प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सीपी सिंह के बचाव में उनके कैबिनेट सहयोगी और राज्य के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण मामले के मंत्री सरयू राय उतर आए हैं। राय ने कहा कि राजधानी के निर्माणाधीन सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम की बदहाली के लिए नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन के द्वारा मंत्री सिंह को जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि खुद सोरेन ने अपने नगर विकास मंत्रित्व काल में इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की है। साथ ही अयोग्य साबित हो चुके मेनहर्ट परामर्शी को 17 करोड़ बकाया भुगतान करने के लिए कैबिनेट से संकल्प पारित कराया है।
राय ने कहा कि यह तब किया गया जब निगरानी (तकनीकी कोषांग) की जांच में यह साबित हो गया कि डीपीआर बनाने और इसको इंप्लीमेंट करने का पर्यवेक्षण करने के लिए मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति अवैध थी और इस काम के लिए तकनीकी रूप से अयोग्य था।


Body:राय ने कहा कि 6 अगस्त 2010 को निगरानी (तकनीकी कोषांग) के चीफ इंजीनियर ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा को इससे जुड़ी जांच रिपोर्ट भी सौंपी थी। जिसमें मेनहर्ट की योग्यता पर सवाल खड़े किए गए थे। जांच रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई करने की बजाय एक संचिका फरवरी 2011 में नगर विकास विभाग में भेज दी गई। इसके बाद 13 जुलाई 2011 को विभाग में कैबिनेट से संकल्प पारित कराकर मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। राय ने कहा कि नगर विकास मंत्री सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरा मेनहर्ट को पर्यवेक्षण के काम से हटा दिया। इसलिए उनके ऊपर सीवरेज ड्रेनेज को लेकर आरोप लगाना सही नहीं। उन्होंने कहा कि 2015 में एक तरफ जहां सीवरेज ड्रेनेज का काम मेनहर्ट के पर्यवेक्षण में चल रहा था वही दूसरी तरफ पथ निर्माण विभाग भी राजधानी में अलग से ड्रेनेज बनवा रहा था।


Conclusion:राय ने कहा कि ड्रेनेज निर्माण पर पथ निर्माण विभाग द्वारा लगभग 140 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी यह सिस्टम कामयाब नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर 2002 से 28 अगस्त 2011 के बीच निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आईजी एमवी राव ने भी झारखंड हाईकोर्ट के निर्देशानुसार कई बार निगरानी आयुक्त से आग्रह पर कार्रवाई के निर्देश मांगा लेकिन इस पर कोई निर्देश उनको नहीं मिला। इस अवधि में राज्य की कमान झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के हाथ थी जबकि हेमंत सोरेन नगर विकास मंत्री भी रहे।
बता दें कि बीजेपी से राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने दो दिन पहले एक खुला पत्र मंत्री सीपी सिंह के नाम भेज कर उनके विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं।
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