रांची: झारखंड में रिफिल के अभाव में पंचायत स्तर पर मिट्टी की सेहत जांचने के लिए खोले गए मिनी लैब 18-24 महीनों से बंद पड़ा है. मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना के तहत वर्ष 2016-17 में भारत सरकार ने 1300 पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन झारखंड को दिए थे. फिर 2017-18 में तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने 1864 मशीन की खरीद की. इस तरह 1864 सॉयल टेस्टिंग मशीन (Soil Testing Machine) को अलग-अलग पंचायतों में स्थापित किए गए और मिट्टी की जांच शुरू की गई.
इसे भी पढे़ं: बंजर जमीन पर चला जज्बे का हल, मल्चिंग पद्धति से किसानों ने बदली तकदीर
रीजेंट रिफिल पर आधारित मिनी लैब में जैसे-जैसे रिफिल समाप्त होते गया, वैसे वैसे मिनी लैब बंद होते चले गए. पिछले 18 से 24 महीने से सभी मिनी लैब इसलिए बंद हैं, क्योंकि कृषि विभाग की ओर से रिफिल की व्यवस्था नहीं की जा सकी.
हर दो साल पर मिट्टी का हेल्थ चेक अप जरूरी
मिट्टी रसायन विशेषज्ञ सत्य प्रकाश बताते हैं कि सॉयल हेल्थ कार्ड योजना के तहत जितनी भी जांच हुई है. उसके अनुसार राज्य के अधिकांश जिलों की मिट्टी में कई पोषक तत्वों की कमी है. ज्यादातर जगहों पर मिट्टी अम्लीय यानि एसिडिक है. झारखंड की मिट्टी में पोटाश, फास्फोरस, सल्फर सहित कई पोषक तत्वों की कमी है. यहां की मिट्टी में एलुमिनियम और आयरन की अधिकता है. अम्लीय मिट्टी होने के कारण उसका चूना (lime) ट्रीटमेंट भी जरूरी होता है. सत्यप्रकाश के अनुसार यह सब तब संभव है जब हर दो साल पर मिट्टी के सेहत की जांच हो और उसके अनुसार विशेषज्ञ किसानों को सलाह दें.
इसे भी पढे़ं: खेत में उतरा सॉफ्टवेयर इंजीनियरः सीख रहा धान रोपनी, नई तकनीक से किसानों को लाभान्वित करने की मंशा
मिट्टी की कमियों को दूर कर हो खेती
विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर खेतों की मिट्टी की सेहत सुधार कर उसका ट्रीटमेंट किया जाए. उसके बाद खेती की जाए तो 20-30% उपज बढ़ जाएगी. वहीं किसानों को खेती में भी कम लागत लगेगी, क्योंकि अभी किसान बिना जाने उन सभी उर्वरकों और रसायन का प्रयोग करते हैं. जिसकी जरूरत भी उनके खेत की मिट्टी को नहीं होती.
जल्द मिनी सॉयल हेल्थ टेस्ट लैब शुरू होने का दिया भरोसा
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बादल पत्रलेख और सॉयल हेल्थ कार्ड अभियान के नोडल अधिकारी डॉ सुभाष सिंह ने भरोसा दिलाया कि सरकार ने 9492 रिफिल के लिए 27 करोड रुपये जारी किए हैं. इसके साथ-साथ अब मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना को और ज्यादा कारगर बनाने के लिए इसे भूमि पोषण योजना का नाम देकर बड़ा रूप दिया जाएगा.