रांचीः झारखंड का राजभवन सुर्खियों में है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस राजभवन में बतौर राज्यपाल छह साल एक महीना और 18 दिन गुजारे हैं. इस दौरान उन्होंने राजभवन कैंपस में एक अटूट छाप छोड़ी है. उनके झारखंड आने से पहले यहां के राजभवन की पहचान शानदार इमारत और गुलाब फुलों के गार्डन की वजह से होती थी. लेकिन अब इसकी पहचान शौर्य, शांति, बलिदान और प्रकृति प्रेम के प्रतीक के रूप में भी होने लगी है.
द्रौपदी मुर्मू ने राजभवन को कैसे संवाराः ओडिशा के रायरंगपुर की रहने वाली द्रौपदी मुर्मू साल 2015 में झारखंड की राज्यपाल बनी थीं. आदिवासी समाज के होने के नाते प्रकृति से उनका अटूट जुड़ाव रहा. यहां आते ही उन्होंने 52 एकड़ में फैले राजभवन में सबसे पहले खेती और बागवानी में इस्तेमाल होने वाले यूरिया, केमिकल और पेस्टिसाइड पर पाबंद लगायी. उनकी बदौलत अब राजभवन परिसर में सिर्फ ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल होता है. कृषि के परंपरागत तरीकों पर उन्होंने जोर दिया. यहां बर्मी कंपोस्ट की व्यवस्था करायी. एक तालाब भी खुदवाया ताकि वर्षा जल का संरक्षण हो सके. राजभवन में बारिश का पानी जाया नहीं जाता.
शौर्य का प्रतीक T-55 टैंक को कराया स्थापितः शौर्य के प्रतीक के रूप में उन्होंने रक्षा मंत्रालय से संपर्क कर पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की जंग में इस्तेमाल T-55 टैंक को पुणे से मंगवाकर स्थापित करवाया. यह टैंक सेना के गौरव का प्रतीक है. इस टैंक ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ाए थे. इस वजह से इसे BATTLE HONOUR OF CHHAMB और THEATRE HONOUR OF JAMMU AND KASHMIR से सम्मानित किया गया था. यह टैंक उन बहादुर पराक्रमी सैनिकों की याद दिलाती है. जिन्होंने विकट हालात में देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था.
शांति का प्रतीक है बापू का चरखाः राजभवन में मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अशोक गार्डन में एक विशाल चरखा देखने को मिलता है. शांति के इस प्रतीक को द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपिता बापू की 150वीं जयंती के मौके पर 3 अगस्त 2020 को स्थापित करवाया था. यह चरखा स्टील से बना हुआ है. गुलाब गार्डन के एक छोर में स्थापित यह चरखा राजभवन की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है. उनकी यह सोच बताती है कि वह गांधी जी की विचारधारा से किस कदर प्रभावित हैं.
स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानः राजभवन के मुख्य भवन के ठीक सामने एक मूर्ति पार्क है. यहां अंग्रेजों के जमाने से ही एक छोटी सी बच्ची की मूर्ति लगी हुई है. जब द्रौपदी मुर्मू को पता चला कि इसका मूर्ति पार्क नाम है तो उन्होंने उसके चारों ओर चबूतरा बनवाकर झारखंड के वीर बलिदानियों की आदमकद प्रतिमा लगवाने का फैसला लिया. उनके राजभवन से विदाई के समय तक सिर्फ तिलका मांझी की मूर्ति बन पाई थी, जिसका उन्होंने उद्घाटन किया था. यह वही तिलका मांझी है जिन्होंने 1784 में भागलपुर के कलेक्टर क्लीवलैंड को मार गिराया था. बाद में अग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी थी. बहुत जल्द अन्य विभूतियों की मूर्तियां भी स्थापित कर दी जाएंगी.
प्रकृति पूजा का गवाह बना राजभवनः द्रौपदी मुर्मू विशुद्ध शाकाहारी हैं. लहसून-प्याज तक नहीं खाती हैं. अहले सुबह उठना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. उन्होंने राजभवन में कुछ वर्ष पहले एक पीपल का पौधा लगाया था जो अब काफी बड़ा हो गया है. राजभवन के गार्डनर नीलेश ने ईटीवी भारत को बताया कि हर सुबह मैडम इस जगह आती थीं और जल अर्पित करती थीं. इसके बाद केले के पेड़ में भी जल डालती थीं. नीलेश महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि मैडम जी ने ही उन्हें ऑर्गेनिक को बढ़ावा देने के लिए यहां नियुक्त किया था. उन्होंने बताया कि इस कैंपस में मौजूद गौशाला में हर दिन गायों को रोटी और गुड़ खिलाया करती थीं. देश की राष्ट्रपति चुने जाने पर झारखंड के राजभवन में काम करने वाले सभी कर्मी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.