रांची: मांडर में कांग्रेस प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की ने जीत का मांदर बजाकर सभी को चारों खाने चित कर दिया है. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी गंगोत्री कुजूर को 23690 वोट के बड़े अंतर से हराकर यह साबित कर दिया कि मांडर में उनके पिता बंधु तिर्की की पकड़ के आगे कोई नहीं टिक सकता. खास बात यह है कि भाजपा ने इस बार बड़ी उम्मीदें पाल रखी थी. लेकिन फिर उस पर पानी फिर गया.
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2019 के विधानसभा चुनाव के बाद दुमका, बेरमो और मधुपुर में नकारे जाने के बाद भाजपा ने मांडर में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. एक तरफ राजनीति के दांव पेंच से अनजान शिल्पी नेहा तिर्की थी तो दूसरी तरफ भाजपा के अर्जुन मुंडा, अन्नपूर्णा देवी, बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, धर्मपाल, दीपक प्रकाश के अलावा कई सांसद और विधायक कमल खिलाने के लिए पसीना बहा रहे थे. भाजपा को पूरी उम्मीद थी कि मांडर की जनता जरूर आशीर्वाद देगी लेकिन जीत का आशीर्वाद नहीं मिला.
दूसरी तरफ शिल्पी नेहा तिर्की के लिए महा गठबंधन धर्म का पालन करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सिर्फ एक दिन चुनाव प्रचार कर पाए थे. हालांकि, सरकार में शामिल कांग्रेस के मंत्री रामेश्वर उरांव, आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख के अलावा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने काफी मेहनत की थी लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं कि मांडर में जीत बंधु तिर्की की हुई है ना की किसी पार्टी की.
शिल्पी ने पिता बंधु को भी छोड़ दिया पीछे: मांडर के चुनावी मैदान में शिल्पी नेहा तिर्की ने अपने पिता बंधु तिर्की को भी पीछे छोड़ दिया. 2019 के चुनाव में जेवीएम के टिकट पर बंधु तिर्की ने भाजपा के प्रत्याशी रहे देव कुमार धान को 23,127 वोट के अंतर से हराया था. लेकिन उपचुनाव में उनकी बेटी शिल्पी ने भाजपा की गंगोत्री कुजूर को 23690 वोट के अंतर से हराकर साबित कर दिया कि मांडर में इस परिवार की पकड़ कितनी मजबूत है. खास बात है कि पंडरा बाजार समिति स्थित मतगणना केंद्र पर निर्णायक बढ़त मिलते ही शिल्पी नेहा तिर्की ने गंगोत्री कुजूर का पैर छूकर आशीर्वाद लेकर सबका दिल जीत लिया.
मांडर में है बंधु की जबरदस्त पकड़: झारखंड बनने के बाद डोमिसाइल विवाद ने बंधु तिर्की को एक अलग पहचान दी थी. मांडर विधानसभा क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय बंधु तिर्की ने 2005 और 2009 का चुनाव जीता था. लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की आंधी में गंगोत्री कुजूर कमल खिलाने में सफल रही थी. लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा ने गंगोत्री कुजूर की जगह देव कुमार धान को मैदान में उतार दिया था. लेकिन बंधु तिर्की के सामने देव कुमार धान नहीं टिक पाए थे. दरअसल मांडर विधानसभा क्षेत्र का चाहे बेड़ो का इलाका हो या लापुंग, इटकी, चान्हो का इलाका, बंधु तिर्की हमेशा अपने समर्थकों के बीच सक्रिय रहते हैं. वोटर किसी भी पार्टी का हो और अगर वह किसी मुसीबत में हो तो बंधु तिर्की उसकी सहायता करने से पीछे नहीं हटते.
चारों उपचुनाव में परिवारवाद की हुई जीत: 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दुमका सीट छोड़ दी थी. उनकी जगह उनके भाई बसंत सोरेन मैदान में उतरे थे. वही बेरमो में कांग्रेस के राजेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र जय मंगल उर्फ अनूप सिंह मैदान में थे. मधुपुर में पूर्व मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के निधन के बाद उनके पुत्र हफीजुल हसन मैदान में थे. उन तीनों उपचुनाव में भाजपा ने परिवारवाद का मुद्दा उठाया था लेकिन जनता ने नकार दिया था. मांडर उपचुनाव के दौरान परिवारवाद के साथ-साथ भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से भाजपा ने उठाया था लेकिन जनता ने उसे नकार दिया.
ओवैसी नहीं दिखा पाए करिश्मा: इस उपचुनाव में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी ताकत लगाई थी. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी देव कुमार धान के लिए चुनाव प्रचार किया था. अहम बात है कि देव कुमार ध्यान से पहले शिशिर लकड़ा ने एआईएमआई एम के टिकट पर पर्चा भरा था लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. 10 जून को रांची में हुई हिंसा के बाद ओवैसी के चुनाव प्रचार से राजनीति के जानकार अनुमान लगा रहे थे कि हार जीत में निर्णायक भूमिका अदा करने वाले अल्पसंख्यक वोटरों के बंटने पर भाजपा को फायदा होगा. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. देव कुमार धाम को सिर्फ 22,395 वोट मिले. जबकि 2019 के चुनाव में एआईएमआई एम के प्रत्याशी शिशिर लकड़ा को 23,000 से ज्यादा वोट मिले थे.