रांची: साल 2019 की तरह ही साल 2021 भी जेएमएम के लिए उपलब्धियों भरा रहा. साल 2019 में पार्टी जहां बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर 29 दिसंबर को सत्तारूढ़ हुई. वहीं 2021 में मधुपुर उपचुनाव ने ये साबित किया कि हेमंत सोरेन राजनीतिक रूप से कितने परिपक्व हैं.
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मधुपुर उपचुनाव में चला हेमंत का जादू
जेएमएम के वरीय और कद्दावर नेता हाजी हुसैन अंसारी के निधन के बाद खाली हुई मधुपुर विधानसभा सीट पर 2021 में उपचुनाव हुआ. विपक्ष की घेराबंदी के बीच हेमंत ने जो चाल चली उससे विरोधी चुनाव में धाराशायी हो गए. हेमंत ने हाजी हुसैन अंसारी के बेटे हफीजुल हसन को बिना विधायक रहते मंत्री पद की शपथ दिला दी. हेमंत के इस मास्टर स्ट्रोक का असर हुआ और बेहद नजदीकी मुकाबले में जीत के बाद हफीजुल हसन विधायक बन गए. इसके साथ ही हेमंत जेएमएम के कुशल रणनीतिकार के रूप में अपनी पहचान को पुख्ता किया.
जेएमएम को अपनों से भी मिली चुनौती
2021 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को अपनों से भी चुनौती मिलती दिखी. कभी सोशल मीडिया तो कभी पार्टी के स्तर पर लोबिन हेम्ब्रम और सीता सोरेन मुश्किलें खड़ी करती दिखी. लोबिन हेम्ब्रम की बात करें तो विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान शराब के बहाने सरकार की नीति पर ही सवाल खड़ा कर दिया. वहीं शिबू सोरेन की बड़ी बहू विधायक सीता सोरेन ने पार्टी संगठन पर कुछ खास लोगों का प्रभाव बताकर राजनीतिक हमला किया और सरकार के कार्यकलाप को किसी नंबर के लायक नहीं बताया.
2021 में पार्टी का 12वां महाधिवेशन
जेएमएम में साल 2021 इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इस वर्ष में ही पार्टी का 12 वां महाधिवेशन कोरोना की वजह से सीमित प्रतिनिधियों के साथ संपन्न हुआ. जिसमें शिबू सोरेन को फिर से केंद्रीय अध्यक्ष और हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया. राज्य में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2021 में संगठन विस्तार पर जोर दिया तो शहरी इलाकों में पार्टी के जनाधार बढ़ाने पर भी पार्टी का जोर रहा. पार्टी ने वर्ष 2022 में पार्टी को उन सभी इलाको में पार्टी संगठन विस्तार का संकल्प लिया तो हेमंत सोरेन ने पार्टी के अंदर की सहमति असहमति को पार्टी फोरम में ही रखने की अपील की. ऐसे में अब देखना होगा कि झारखंड में वर्ष 2022 मुक्ति मोर्चा के लिए कितना खास होता है.