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20 साल में भी नहीं सुधरी झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था, 8,500 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर

झारखंड बनने से लेकर आज तक झारखंड स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़ा ही रहा. इन 20 सालों में कई स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई काम हुए, लेकिन जितनी जरूरत थी उससे बहुत कम. 21वीं सदी के अत्याधुनिक युग में विकास के लिए अलग राज्य बना झारखंड आज पिछड़ा हुआ क्यों है देखिए पूरी रिपोर्ट...

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Published : Nov 18, 2020, 5:09 PM IST

रांची: झारखंड को बिहार से अलग हुए 20 साल हो गए, लेकिन आज भी राज्य कई मायनों में अन्य राज्यों से पीछे है. खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य की जनता को बेहतर इलाज के लिए बाहर के अस्पतालों में जाना पड़ता है.

देखिए पूरी खबर

6 मेडिकल कॉलेज का निर्माण

अब तक राज्य में कुल मिलाकर छह मेडिकल कॉलेज का निर्माण हो पाया है, जिसमें सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज ही पूर्ण रूप से चल रहे हैं बाकी तीन मेडिकल कॉलेज में सुविधाओं की कमी है. वहीं, रांची जिले की बात करें तो रांची जिले में सरकारी अस्पतालों से ज्यादा निजी अस्पतालों पर लोगों का ज्यादा भरोसा है. हालांकि, राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स में मरीजों की सुविधा के लिए सभी चीजों की संसाधन उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन मैन पावर की कमी से अस्पताल जूझ रहा है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

2 हजार डॉक्टर्स के पद खाली

जानकारी के अनुसार, पूरे राज्य में सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की संख्या मात्र 15 से 20 है, जबकि हजारों निजी अस्पताल अपने-अपने स्तर से काम कर रहे हैं. वहीं, राज्य के 400 से 450 अस्पतालों में आयुष्मान योजना का लाभ मरीजों को मिल पाता है बाकी के अस्पतालों में मरीजों को अपने खर्च पर इलाज कराना पड़ता है. अगर डॉक्टरों की बात करें तो राज्य में वर्तमान समय में मात्र 1300 से 1400 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. वहीं, दो हजार से ज्यादा पद पर अभी भी चिकित्सकों की बहाली नहीं हो पायी है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

पीएचसी और सीएचसी केंद्र में कमी

झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधारभूत संरचना की भारी कमी है. देश की तुलना में झारखंड अभी भी काफी पीछे है. राज्य में 23 सदर अस्पताल हैं. आबादी और क्षेत्र के हिसाब से राज्य में कुल 1376 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की जरूरत है, लेकिन वर्तमान में मात्र 500 से भी कम ही पीएचसी कार्यरत हैं. इनमें भी लगभग 150 से भी कम पीएचसी ही अपने भवन में चलते हैं. शेष अभी भी किराये के भवन में संचालित होते हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

इसी तरह राज्य में लगभग 344 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) की जरूरत है. पर मात्र 188 ही कार्यरत हैं. वहीं, 8813 हेल्थ सब सेंटर की जरूरत है, लेकिन राज्य में इससे आधे से भी कम 3958 हेल्थ सब सेंटर कार्यरत हैं. इन सारे अस्पतालों में एक वर्ष में लगभग डेढ़ करोड़ मरीजों का इलाज होता है यानी झारखंड की लगभग आधी आबादी की निर्भरता सरकारी अस्पतालों पर है. कई सीएचसी पीएचसी और सब सेंटर में पानी और बिजली जैसी आधारभूत सुविधा भी नहीं है, जिससे मरीजों को काफी दिक्कतें होती हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

साढ़े आठ हजार लोगों पर एक डॉक्टर

पूरे देश में जहां लगभग 1324 लोगों के इलाज के लिए एक डॉक्टर है. वहीं, झारखंड में लगभग साढ़े आठ हजार व्यक्ति पर एक डॉक्टर है. राज्य में इस समय तीन मेडिकल कॉलेज (रिम्स, एमजीएम और पीएमसीएच) हैं. वहीं, पलामू, दुमका और हजारीबाग मेडिकल कॉलेज की शुरुआत तो हो चुकी है, लेकिन अभी यहां पर कई तरह की तकनीकी समस्या है, जिसके कारण कॉलेज बेहतर तरीके से क्रियान्वयन नहीं कर रहा है. यहां से प्रतिवर्ष 350 डॉक्टर निकलते हैं. झारखंड में कुल 3500 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं. पर यहां 1300 से 1400 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. लगभग दो हजार डॉक्टरों की अब भी कमी है. विभाग द्वारा कई बार बहाली के प्रयास किये गये. दूर-दराज इलाकों में पदस्थापित किये जाने के बाद डॉक्टर या तो अस्पताल जाते नहीं या नौकरी ही छोड़ देते हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

नर्सों की कमी

राज्य में नर्सों की भी भारी कमी है. राज्य के 3958 स्वास्थ्य उपकेंद्र केवल नर्सों के भरोसे हैं. राज्य में एएनएम-जीएनएम की बात करें तो अभी भी 2900 से ज्यादा एएनएम के पद खाली पड़े हैं. एएनएम मीरा कुमारी बताती हैं कि पिछले कई वर्षों से स्थायीकरण और कई मांगों को लेकर राज्यभर की नर्स सरकार से उम्मीद लगाई है, लेकिन सरकार स्वास्थ्य कर्मियों के सुविधा देने में चुप्पी साधी हुई है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

ये भी पढे़ं: साइबर अपराध का शिकार होने पर क्या करें, कहां करें शिकायत, किससे मिलेगी मदद

कोरोना काल की बात करें तो पिछले 8 महीनों में राज्य सरकार की तरफ से सवा तीन करोड़ की जनता में मात्र अब तक लगभग चार लाख लोगों का ही जांच हो पाया है. हालांकि, कोरोना काल में राज्य का स्वास्थ्य विभाग तत्पर दिखा और कोरोना से निपटने के लिए हर संभव प्रयास भी किया गया. झारखंड हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स के अध्यक्ष जोगेश गंभीर बताते हैं कि झारखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए निजी अस्पतालों को कई तरह की छूट राज्य सरकार की तरफ से देने की आवश्यकता है. जैसे कि सुरक्षा, जमीन, बिजली और सड़क. कई बार झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बेहतर अस्पताल का निर्माण नहीं हो पाता है, क्योंकि राज सरकार की तरफ से बेहतर सुरक्षा नहीं मिल पाती.

पिछले 20 वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई तरह की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं, लेकिन राज्य सरकार के कार्यों की गति स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी धीरे है जैसे कि राजधानी के रिम्स अस्पताल में सुपर स्पेशलिटी ट्रामा सेंटर सहित कई तरह के व्यवस्थाओं का इंतजाम किया गया है. वहीं, राज्य में 23 सदर अस्पताल कार्यरत हैं, लेकिन अभी भी कई सदर अस्पताल मूलभूत सुविधा से महरुम हैं.

रांची: झारखंड को बिहार से अलग हुए 20 साल हो गए, लेकिन आज भी राज्य कई मायनों में अन्य राज्यों से पीछे है. खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य की जनता को बेहतर इलाज के लिए बाहर के अस्पतालों में जाना पड़ता है.

देखिए पूरी खबर

6 मेडिकल कॉलेज का निर्माण

अब तक राज्य में कुल मिलाकर छह मेडिकल कॉलेज का निर्माण हो पाया है, जिसमें सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज ही पूर्ण रूप से चल रहे हैं बाकी तीन मेडिकल कॉलेज में सुविधाओं की कमी है. वहीं, रांची जिले की बात करें तो रांची जिले में सरकारी अस्पतालों से ज्यादा निजी अस्पतालों पर लोगों का ज्यादा भरोसा है. हालांकि, राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स में मरीजों की सुविधा के लिए सभी चीजों की संसाधन उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन मैन पावर की कमी से अस्पताल जूझ रहा है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

2 हजार डॉक्टर्स के पद खाली

जानकारी के अनुसार, पूरे राज्य में सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की संख्या मात्र 15 से 20 है, जबकि हजारों निजी अस्पताल अपने-अपने स्तर से काम कर रहे हैं. वहीं, राज्य के 400 से 450 अस्पतालों में आयुष्मान योजना का लाभ मरीजों को मिल पाता है बाकी के अस्पतालों में मरीजों को अपने खर्च पर इलाज कराना पड़ता है. अगर डॉक्टरों की बात करें तो राज्य में वर्तमान समय में मात्र 1300 से 1400 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. वहीं, दो हजार से ज्यादा पद पर अभी भी चिकित्सकों की बहाली नहीं हो पायी है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

पीएचसी और सीएचसी केंद्र में कमी

झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधारभूत संरचना की भारी कमी है. देश की तुलना में झारखंड अभी भी काफी पीछे है. राज्य में 23 सदर अस्पताल हैं. आबादी और क्षेत्र के हिसाब से राज्य में कुल 1376 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की जरूरत है, लेकिन वर्तमान में मात्र 500 से भी कम ही पीएचसी कार्यरत हैं. इनमें भी लगभग 150 से भी कम पीएचसी ही अपने भवन में चलते हैं. शेष अभी भी किराये के भवन में संचालित होते हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

इसी तरह राज्य में लगभग 344 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) की जरूरत है. पर मात्र 188 ही कार्यरत हैं. वहीं, 8813 हेल्थ सब सेंटर की जरूरत है, लेकिन राज्य में इससे आधे से भी कम 3958 हेल्थ सब सेंटर कार्यरत हैं. इन सारे अस्पतालों में एक वर्ष में लगभग डेढ़ करोड़ मरीजों का इलाज होता है यानी झारखंड की लगभग आधी आबादी की निर्भरता सरकारी अस्पतालों पर है. कई सीएचसी पीएचसी और सब सेंटर में पानी और बिजली जैसी आधारभूत सुविधा भी नहीं है, जिससे मरीजों को काफी दिक्कतें होती हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

साढ़े आठ हजार लोगों पर एक डॉक्टर

पूरे देश में जहां लगभग 1324 लोगों के इलाज के लिए एक डॉक्टर है. वहीं, झारखंड में लगभग साढ़े आठ हजार व्यक्ति पर एक डॉक्टर है. राज्य में इस समय तीन मेडिकल कॉलेज (रिम्स, एमजीएम और पीएमसीएच) हैं. वहीं, पलामू, दुमका और हजारीबाग मेडिकल कॉलेज की शुरुआत तो हो चुकी है, लेकिन अभी यहां पर कई तरह की तकनीकी समस्या है, जिसके कारण कॉलेज बेहतर तरीके से क्रियान्वयन नहीं कर रहा है. यहां से प्रतिवर्ष 350 डॉक्टर निकलते हैं. झारखंड में कुल 3500 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं. पर यहां 1300 से 1400 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. लगभग दो हजार डॉक्टरों की अब भी कमी है. विभाग द्वारा कई बार बहाली के प्रयास किये गये. दूर-दराज इलाकों में पदस्थापित किये जाने के बाद डॉक्टर या तो अस्पताल जाते नहीं या नौकरी ही छोड़ देते हैं.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

नर्सों की कमी

राज्य में नर्सों की भी भारी कमी है. राज्य के 3958 स्वास्थ्य उपकेंद्र केवल नर्सों के भरोसे हैं. राज्य में एएनएम-जीएनएम की बात करें तो अभी भी 2900 से ज्यादा एएनएम के पद खाली पड़े हैं. एएनएम मीरा कुमारी बताती हैं कि पिछले कई वर्षों से स्थायीकरण और कई मांगों को लेकर राज्यभर की नर्स सरकार से उम्मीद लगाई है, लेकिन सरकार स्वास्थ्य कर्मियों के सुविधा देने में चुप्पी साधी हुई है.

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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था

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कोरोना काल की बात करें तो पिछले 8 महीनों में राज्य सरकार की तरफ से सवा तीन करोड़ की जनता में मात्र अब तक लगभग चार लाख लोगों का ही जांच हो पाया है. हालांकि, कोरोना काल में राज्य का स्वास्थ्य विभाग तत्पर दिखा और कोरोना से निपटने के लिए हर संभव प्रयास भी किया गया. झारखंड हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स के अध्यक्ष जोगेश गंभीर बताते हैं कि झारखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए निजी अस्पतालों को कई तरह की छूट राज्य सरकार की तरफ से देने की आवश्यकता है. जैसे कि सुरक्षा, जमीन, बिजली और सड़क. कई बार झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बेहतर अस्पताल का निर्माण नहीं हो पाता है, क्योंकि राज सरकार की तरफ से बेहतर सुरक्षा नहीं मिल पाती.

पिछले 20 वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई तरह की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं, लेकिन राज्य सरकार के कार्यों की गति स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी धीरे है जैसे कि राजधानी के रिम्स अस्पताल में सुपर स्पेशलिटी ट्रामा सेंटर सहित कई तरह के व्यवस्थाओं का इंतजाम किया गया है. वहीं, राज्य में 23 सदर अस्पताल कार्यरत हैं, लेकिन अभी भी कई सदर अस्पताल मूलभूत सुविधा से महरुम हैं.

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