ETV Bharat / city

कर्म के महत्व को दर्शाता है करम पर्व, आज सरना स्थलों में विधि-विधान से होगी पूजा

झारखंड में करम का पर्व लोगों के चेहरों में अपनी छटा बिखेर रहा है. अपने भाइयों के लिए व्रत रखने वाली बहनें त्योहार की तैयारी में जुटी हैं. करम पेड़ की डाली को पूजे जाने वाले इस पर्व का बेहद खास महत्व है.

डिजाइन इमेज
author img

By

Published : Sep 9, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Sep 9, 2019, 3:59 PM IST

रांचीः हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाए जाने वाला पर्व करम का आदिवासियों की परंपरा में बहुत ही खास महत्व है. इस दिन आदिवासी पुरूष और महिलाएं मिलकर कर्म देव की पूजा करते हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-ISRO ने खोज निकाला लैंडर 'विक्रम', संपर्क साधने की कर रहे हैं कोशिश

करम की डाली की होती है पूजा

आदिवासी करम पर्व की पूर्व संध्या से ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस दिन करम पेड़ की डाली की पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार करम की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखड़ा में लाया जाता है, जिसे बीच अखाड़े में जगह देकर विधिपूर्वक स्थापित किया जाता है. जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है.

अलग-अलग अनाज इकट्ठा कर जौ बनाती है लड़कियां

पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूम कर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती है. जिससे जौ बनाया जाता है. पूजा के बाद जौ को सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. जिसे लोग एक-दूसरे के बाल में लगाकर करमा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.

करमा की कहानी कर्म के महत्व को समझाती है

पूजा के दौरान करमा और धरमा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार कर्म के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली लौटती है. करमा के दिन घर-घर में कई प्रकार के व्ंयजन भी बनाए जाते हैं. करमा का यह पर्व भाई-बहन के प्यार को भी दर्शाता है. महिलाएं खासतौर पर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती हैं.

रांचीः हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाए जाने वाला पर्व करम का आदिवासियों की परंपरा में बहुत ही खास महत्व है. इस दिन आदिवासी पुरूष और महिलाएं मिलकर कर्म देव की पूजा करते हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-ISRO ने खोज निकाला लैंडर 'विक्रम', संपर्क साधने की कर रहे हैं कोशिश

करम की डाली की होती है पूजा

आदिवासी करम पर्व की पूर्व संध्या से ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस दिन करम पेड़ की डाली की पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार करम की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखड़ा में लाया जाता है, जिसे बीच अखाड़े में जगह देकर विधिपूर्वक स्थापित किया जाता है. जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है.

अलग-अलग अनाज इकट्ठा कर जौ बनाती है लड़कियां

पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूम कर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती है. जिससे जौ बनाया जाता है. पूजा के बाद जौ को सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. जिसे लोग एक-दूसरे के बाल में लगाकर करमा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.

करमा की कहानी कर्म के महत्व को समझाती है

पूजा के दौरान करमा और धरमा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार कर्म के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली लौटती है. करमा के दिन घर-घर में कई प्रकार के व्ंयजन भी बनाए जाते हैं. करमा का यह पर्व भाई-बहन के प्यार को भी दर्शाता है. महिलाएं खासतौर पर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती हैं.

Intro:रांची
स्पेशल खबर.....
बाइट---जगलाल पहान मुख्य पहान
बाइट--1-महिला
बाइट--2-महिला

प्रकृति का महापर्व कर्मा आदिवासियों की प्रमुख त्योहारों में से एक हैं।हिंदू पंचांग के भादो मास की एकादशी को झारखंड छत्तीसगढ़ सहित देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की एक अनोखी कहानी है जो प्रकृति से जुड़ा है।



कहा जाता है कर्मा और धर्मा दो भाई थे दोनों बहुत मेहनती और दयावान थे। वही कर्मा की पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी यहां तक कि धरती माँ का भी अपमान कर देती थी जिससे कर्मा बहुत दुखी हो गया ।और वह एक दिन घर छोड़कर चला गया। इसके जाते ही पूरे इलाके की कर्मो किस्मत उनके साथ चला गया। पूरा इलाका अकाल में तब्दील हो गया। सभी जीव जंतु परेशान रहने लगे इसको देख धर्मा अपने भाई कर्मा को ढूंढने निकल गया जब धर्मा अपने भाई कर्मा को ढूंढ कर गांव वापस आने लगा तो सभी जीव जंतु अपनी पीड़ा बताने लगे तभी कर्मा सभी को किये अपने कर्म को बताया और दूसरों को परेशान नहीं करने की सलाह दिया। घर लौटने के बाद करम डाल को पोखर में गाड़ कर पूजा किया उसके बाद पूरे इलाके में खुशहाली लौटाई और सभी खुशी-खुशी आनंद से रहने लगे इसी को याद कर करमा पूजा मनाए जाने लगा।। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कर्म के अनुरूप ही फल मिलती है।
Body:करमा पर्व की कई विशेषताएं हैं इसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति इनके परम्पराओ में देखने को मिलती है । इस पर्व में खानपान गीत संगीत का खास महत्व होता है । पर्व का आगमन से पहले ही लोगों के दिलो-दिमाग में कर्मा गीत की परवान इस कदर चढ़ने लगती है। कि लोग अपने जुबान को रोक नहीं पाते हैं और गाने गुनगुनाने लगते हैं।वही करमा पर्व के पहले लोग अपने घरों में डुस्का, पुआ जैसे लजीज व्यंजन भी बनाते हैं और एक दूसरे को बांटते हैं। वही करमा पूजा भाई-बहनो का अटूट रिश्ता को भी दर्शाती है।कुवारी और नवविवाहित बहने अपने भाई के उज्जवल भविष्य के लिए व्रतकर पूजा करती है।और करम वृक्ष की तरह अपने भाई की दीर्घायु आयु और परिवार में खुशहाल जीवन यापन के लिए कामना करती है।


तीज बीतने बाद से ही युक्तियां गांव मोहल्ला के हर एक घरों में घूम घूम कर चावल, गेहूं,मक्का जैसे 9 तरह के अनाज इकट्ठा करती है और उसे टोकरी में रखकर गांव के अखड़ा में रखती है ।भादो मास का एकादशी के दिन शाम का समय युवक युक्तियां इकट्ठा होकर पहन के साथ करमा डाल को काटकर नाचते झूमते गाते अखड़ा लाते हैं और अखड़ा में गाड़ कर पाहन द्वारा विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।जिसमें व्रत रखी युवतियां और नव विवाहित महिलाएं, बुजुर्ग समेत गांव मोहल्ले के सभी शामिल होते हैं और पूजा संपन्न होने के पश्चात नाचते गाते हैं और खुशियां मनाते हैं। दूसरे दिन लोग अपने घर में धरती मां की पूजा करते हैं और अच्छी फसल होने के साथ खुशहाल जीवन यापन और घर में धन से भरा रहने की कामना करते हैं। इसी दिन गांव के पाहन.. युवक युक्तियां संग कर्मा की डाल को लेकर नाचते गाते गांव के हरे घरों में घूमते हैं और एक दूसरे को जावा फुल खोंसकर कर्मा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं।इसके बाद गांव के तालाब या नदी में बहाने के उपरांत अपने जीवन की सभी दुख दर्द और कष्ट से मुक्ति होने की कामना करते हैं

Conclusion:आदिवासियों को प्रकृति का पूजक कहा जाता है।जो इनके त्योहारों में देखने को मिलती है।करमा पर्व आपसी भाईचारगी और साथ मे मिलकर रहने का संदेश देती ही है। बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। संसार के जीव जंतुओं से ही मनुष्य का जीवन यापन चला आ रहा है। यही कारण है कि मनुष्य और प्रकृति का अटूट संबंध रहा है ।इसलिए करमा पर्व को प्रकृति का महापर्व कहा जाता है।



Last Updated : Sep 9, 2019, 3:59 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.