रांचीः हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाए जाने वाला पर्व करम का आदिवासियों की परंपरा में बहुत ही खास महत्व है. इस दिन आदिवासी पुरूष और महिलाएं मिलकर कर्म देव की पूजा करते हैं.
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करम की डाली की होती है पूजा
आदिवासी करम पर्व की पूर्व संध्या से ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस दिन करम पेड़ की डाली की पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार करम की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखड़ा में लाया जाता है, जिसे बीच अखाड़े में जगह देकर विधिपूर्वक स्थापित किया जाता है. जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है.
अलग-अलग अनाज इकट्ठा कर जौ बनाती है लड़कियां
पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूम कर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती है. जिससे जौ बनाया जाता है. पूजा के बाद जौ को सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. जिसे लोग एक-दूसरे के बाल में लगाकर करमा पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.
करमा की कहानी कर्म के महत्व को समझाती है
पूजा के दौरान करमा और धरमा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार कर्म के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली लौटती है. करमा के दिन घर-घर में कई प्रकार के व्ंयजन भी बनाए जाते हैं. करमा का यह पर्व भाई-बहन के प्यार को भी दर्शाता है. महिलाएं खासतौर पर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती हैं.