रांची: कोरोना महामारी के शुरुआती काल से ही झारखंड अभिभावक संघ (Jharkhand Parents Association) की ओर से निजी स्कूलों की फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा है. इसके साथ ही सिर्फ ट्यूशन फीस स्कूलों की ओर से लिए जाने की मांग भी की जा रही है, लेकिन यह मामला अब तक सुलझा नहीं है. अभिभावक राज्य सरकार की ओर देख रहे हैं तो वहीं निजी स्कूल इस मामले पर न तो कुछ कहने को तैयार है और न ही सुनने को ही तैयार है. वहीं, सत्तापक्ष की ओर से इस पूरे मामले को लेकर बेतुका बयान दिया जा रहा है.
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लगातार हो रहे हैं आंदोलन
इन दिनों झारखंड अभिभावक एसोसिएशन (Jharkhand Parents Association) की ओर से राजधानी रांची समेत राज्य के विभिन्न जिलों में निजी स्कूलों के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा है और राज्य सरकार से इस पूरे मामले पर संज्ञान लेने की अपील की जा रही है. इसे लेकर सरकार का ध्यान भी आकृष्ट कराने की कोशिश की जा रही है. विभिन्न निजी स्कूलों की ओर से ट्यूशन फीस के अलावे साल 2021 सत्र में अन्य मदों में भी पैसे लिए जा रहे हैं. जबकि कोरोना काल को देखते हुए साल 2020 में ट्यूशन फीस के अलावा अन्य किसी भी मद में स्कूलों की ओर से पैसों की मांग नहीं की गई थी. लेकिन 2021 में निजी स्कूलों की ओर से तर्क दिया गया कि राज्य सरकार की ओर से इस वर्ष फीस को लेकर कोई रेगुलेशन जारी नहीं किया गया है और इस वजह से निजी स्कूल अपने तरीके से फीस लेंगे.
जबकि बार-बार जनप्रतिनिधियों की ओर से कहा जा रहा है कि अभिभावकों को ध्यान में रखते हुए सिर्फ ट्यूशन फीस ली जाए. लेकिन सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर मामले को लेकर कोई एक्शन नहीं लिया गया है. हालांकि इस मसले को बार-बार झारखंड अभिभावक संघ की ओर से उठाया जा रहा है ताकि अभिभावकों को राहत मिल सके. लेकिन राज्य सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. मामले की गंभीरता को देखते हुए अभिभावक एसोसिएशन की ओर से लगातार आंदोलन भी किया जा रहा है. आंदोलन की कड़ी में राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए हवन पूजन, हस्ताक्षर अभियान, धरना प्रदर्शन के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों से भी मुलाकात की जा रही है.
झामुमो का बेतुका बयान
इस मामले पर राज्य सरकार चुप्पी साधे बैठी हुई है. जबकि निजी स्कूल न तो बोलने को तैयार है और न ही सुनने को ही तैयार है. जब मामले को लेकर सत्तापक्ष झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य से सवाल किया गया तो उन्होंने बेतुका जवाब दे दिया. उनकी मानें तो अगर अभिभावकों को परेशानी हो रही है तो वह निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में शिफ्ट हो जाएं. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकारी स्कूलों की हालत ठीक है तब उनके पास इसका कोई जवाब नहीं मिला.
काश सरकारी स्कूलों की हालत सही होते
राज्य सरकार निजी स्कूलों पर नकेल कसने में सक्षम नहीं है या फिर निजी स्कूलों की मनमानी के आगे राज्य सरकार की नहीं चलती है. दूसरी ओर कहा जा रहा है कि अभिभावक निजी स्कूलों से शिफ्ट होकर सरकारी स्कूलों में आए. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य के सरकारी स्कूलों की हालत सही है. इंफ्रास्ट्रक्चर तो छोड़िए गुणवत्ता युक्त पढ़ाई और सुविधाओं की घोर कमी इन सरकारी स्कूलों में है. अभिभावकों का यही कहना है कि काश राज्य के सरकारी स्कूल आज बेहतर हालत में होते तो उन्हें इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती.