रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जमाबंदी, लगान निर्धारण और म्यूटेशन के आवेदनों पर 90 दिनों के अंदर विचार नहीं करना गंभीर मामला है (High Court serious on Jamabandi mutation case). इससे प्रतीत होता है कि राजस्व विभाग के कर्मचारियों की कार्यशैली कैसी है. अदालत ने संबंधित अधिकारियों को इस पर गौर करने का निर्देश दिया, साथ ही गढ़वा के उपायुक्त को निर्देश दिया के वह राजस्व विभाग के कर्मियों के कार्यों की जांच करें. अगर जमाबंदी या जमीन के रसीद से संबंधित आवेदन 90 दिनों से ज्यादा समय से लंबित हैं, तो वैसे कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए.
हाई कोर्ट ने गढ़वा के बसारत अली की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. प्रार्थी का कहना है कि जमींदारी प्रथा उन्मूलन के पहले से उनके पूर्वजों को राजा ने जमीन दी थी, उनके पिता इसका लगान भी देते थे और लगान रसीद भी मौजूद है. जमींदारी प्रथा समाप्त होने के बाद भी 1908 के सीएनटी एक्ट में यह जमीन गैर मजरूआ मालिक जंगल- झाड़ के रूप में दर्ज है. प्रार्थी अपने पूरे परिवार के साथ 70 साल से जमीन पर रह रहा है. जमीन को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ और न ही किसी ने आपत्ति ही जतायी है.
अदालत को बताया गया कि प्रार्थी ने जमीन पर जमाबंदी खोलने के लिए संबंधित कार्यालय में 13.2. 2015 को आवेदन दिया था. लेकिन उनके आवेदन पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है और आवेदन अभी तक लंबित हैं. यह आवेदन अभी एलआरडीसी के पास लंबित है. अदालत से एलआरडीसी को जमाबंदी खोलने के लिए निर्देश देने का आग्रह प्रार्थी ने किया. सुनवाई के बाद अदालत ने वर्ष 2015 से आवेदन लंबित रखने पर एलआरडीसी गढ़वा को शो कॉज करने का निर्देश दिया, साथ ही आवेदन को निष्पादित करने को कहा. अदालत ने कहा कि अगर अभी तक आवेदन निष्पादित नहीं किया गया है तो एक माह के अंदर निष्पादन किया जाए.