रांची: कोरोना के इस भीषण संकट के घड़ी में आर्थिक संकट से जूझ रहे. झारखंड के 35,000 अधिवक्ताओं के आर्थिक सहयोग के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने से झारखंड हाई कोर्ट ने इंकार कर दिया है.
अधिवक्ता राम सुभाग सिंह और अन्य ने आर्थिक सहयोग को लेकर जनहित याचिका दायर की थी. उसी याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए किसी भी प्रकार का सरकार को निर्देश नहीं देने की बात कहते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया है. वहीं अधिवक्ता के लिए एक राहत भरी खबर है कि ट्रस्टी कमेटी जरूरतमंदों को इस आर्थिक संकट में 5-5 हजार रुपए देंगे.
झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई
कोरोना के इस विकट परिस्थिति में आर्थिक संकट से जूझ रहे जरूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक सहायता देने को लेकर दायर जनहित याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद ने अपने आवासीय कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दौरान अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के उपरांत याचिका को निष्पादित करने का आदेश दिया है. सुनवाई के दौरान झारखंड अधिवक्ता वेलफेयर ट्रस्टी कमिटी की ओर से बताया गया कि ट्रस्टी कमेटी की ओर से बैठक किया गया है. उसने एक रूल पास कर बार काउंसिल के पास सहमति के लिए भेजा है. स्टेट बार काउंसिल की ओर से उस रूम में कुछ सुझाव के साथ अप्रूवल दे दिया है.
वे इस संकट की घड़ी में आर्थिक संकट से जूझ रहे जरूरतमंद अधिवक्ताओं को 5-5 हजार रुपए मुहैया कराएंगे. वहीं अधिवक्ता लिपिक के वेलफेयर के लिए कहा गया है कि शीघ्र एडवोकेट जनरल उसका नियम बना लें. नियम बनने के उपरांत अदालत में याचिका दायर होने के समय जिस प्रकार अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए 15 रुपये का कल्याण टिकट लगाया जाता है. उसी तरह अधिवक्ता लिपिक की कल्याण फंड के लिए 5 रुपये का टिकट लगाया जाएगा.
बता दें, कि कोरोना के इस संकट में राज्य के सभी न्यायालय में सिर्फ अति महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई की जा रही है. वह भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जिसके कारण अधिवक्ता अपना काम नहीं कर पा रहे हैं. जिससे उनके समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई है. इसे दूर करने को लेकर अधिवक्ता राम सुभाग सिंह सहित अन्य अधिवक्ताओं ने जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर किया था. उसी याचिका पर सुनवाई के उपरांत हाई कोर्ट ने सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इनकार करते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया है.